Saturday, November 27, 2010
पप्पू पास हो गया....
Friday, November 26, 2010
फैंको मगर प्यार से
Wednesday, November 24, 2010
सुनो सुनाओ....लाइफ़ बनाओ...
माई फादर...मेरे बाबूजी....
Tuesday, November 23, 2010
जानम समझा करो
औकात
चंपू बदनाम हुआ....डार्लिंग तेरे लिए
Sunday, November 21, 2010
यमुना तेरा पानी अमृत
Saturday, November 13, 2010
आधुनिक शिक्षा भी लें मुसलमान
Tuesday, November 9, 2010
कहो तो फ़िर से..............
Monday, November 8, 2010
दिल जीता ओबामा ने
Friday, November 5, 2010
बराक आओ ओबामा
Tuesday, November 2, 2010
कुछ शेर आपके नाम
पहले झांको गिरबान में फिर बात करो
२..तुमको देखा हें तो महसूस किया हें मैंने
बात फूलों की तो खुशबु की भी होती हें
३..बस्तियां उजड़ रही थी और वो देख रहे थे
पानी न आँखों में कलेजे में गम न था
४..ये इश्क न होता जो कभी यार न होता
न प्यार ही होता न ऐतबार ही होता
५..आप तो रात सो लिए साहिब
हमने तकिये भिगो लिए साहिब
इंतखाब आलम
शर्म हमको मगर आती नहीं
आजाद मुल्क है हिंदुस्तान,और आजाद है यहां के लोग उन्हीं लोगों में शामिल हैं हमारे देश के कर्णधार यानि राजनेता और उन्ही लोगों में शामिल हैं हमारे देश के गरीब। लेकिन कितना अंतर, कितना विरोधाभास है कि एक तो आसमान की बुलंदियों को छू रहा है और दूसरा जमीन की। इन्ही गरीबों का हक मारकर ये नेता ऐशो-आराम की जिन्दगी जी रहे हैं। क्या नहीं है आज इनके पास गाड़ी,बंगला,धन-दौलत। जी हां सबकुछ, वो सबकुछ जिसे पाने की चाहत हर किसी की होती है,लेकिन बहुत कम ही ऐसे भाग्यवान होते हैं जिन्हे ये सब नसीब हो पाता है। लेकिन हमारे देश के नेताओं के तो भाग्य ही खुले हुऐ हैं,बस एक बार चुनाव जीत जाऐं फिर तो बल्ले ही बल्ले।
शायद आप समझ नहीं पा रहे हैं कि मेरा इशारा आदर्श सोसाइटी घोटाले तरफ है। मुंबई में हुऐ आंतकी हमले में मारे गऐ जवानों के परिजनों के लिऐ बनाऐ गऐ आशियाने पर न जाने कब से नेता और बड़े अधिकारी अपनी गिद्द दृष्टि जमाऐ बैठे थे। मौका पाते ही उन्होने हाथ मार लिया,लेकिन वो खुद ही अपने जाल में फंस गऐ। हैरानी वाली बात ये है कि इस बंदर बांट में सूबे के मुख्यमंत्री भी शामिल हैं। अपनी फजीहत होते देख उन्होने अपना इस्तीफा देना बेहतर समझा लेकिन घोटालों की सरदार रही कांग्रेस पार्टी ने उनका इस्तीफा न तो स्वीकार किया, न ही इस मामले पर कोई फैसला सुनाया।
जनता के प्रतिनिधि कहलाने वाले राजनेता किस तरीके से आम लोगों के खून पसीने से कमाई दौलत की खुलेआम लूटखसौट में लगे हैं,इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि करोड़ों रुपऐ होने के बावजूद भी इनकी नीयत किस कदर खराब है। इन लोगों ने राजनिती को धंधा बना डाला। एक ऐसा धंधा जिसमें सिर्फ कमाई ही कमाई है। देश में हजारों लोग भूख से मर जाते हैं और इनकी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता किस बात के जनप्रतिनिधि हैं ये ? क्या इनकी संवेदना मर चुकी है,क्या ये मानसिक रुप से इतने परिपक्व हैं कि इन्हे किसी की भूख और गरीबी से जूझते लोग दिखलाई नहीं पड़ते। अगर ऐसा है तो फिर इनको आम लोगों की आवाज बनने का कोई हक नहीं।
इंतख़ाब आलम अंसारी