Saturday, November 27, 2010

पप्पू पास हो गया....


बिहार विधानसभा चुनाव को देखकर लगता है कि अब आम जनता को आसानी से उल्लू नहीं बनाया जा सकता,अब तक कभी जातिवाद के नाम पर तो कभी मंदिर-मस्जिद के नाम पर पार्टियां आम पब्लिक को वोट बैंक समझती थीं। लेकिन देश का सबसे पिछड़ा राज्य घोषित बिहार इस बार सुर्ख़ियों में छा गया। चुनाव तो बिहार में भी इससे पहले होते आए हैं लेकिन बिहारी के नाम पर लोगों को छेड़ने वालों के मुंह वहां कि जनता ने बंद करवा दिए उन्होने जता दिया कि वे अब किसी के भी झांसे में आने वाले नहीं हैं। आप बेहतर जानते हैं कि इस देश में वोट डालने में अधिकतर ग्रामीण तबका आगे रहता है। उन्हे उम्मीद होती है कि नये नेता और नई सरकार उनके हित में कुछ काम कर सकेगें... मगर अफसोस कि नेता और पार्टियां उनके विकास के लिए न तो कोई काम करते हैं न ही चुनाव जीतने के बाद उनसे कोई सरोकार रखते हैं। बिहार में भी वर्षों से ऐसा ही चला आ रहा था जनता उब चुकी थी। चिंदी चोर जैसे दिखने वाले नेता सिर्फ अपना खजाना भरने में ही जुटे रहते थे, लेकिन इस बार वहां की जनता ने उन नेताओं के मुंह पर जोरदार तमाचा मारा जो उन्हे केवल वोटबैंक समझ रहे थे।
         बिहार चुनाव में आम जनता की इसलिए भी तारीफ करनी चाहिए कि उन्होने जाति धर्म से उपर उठकर विकास को वोट दिया। आसानी से समझा जा सकता है कि अगर विकास होगा तो फायदा हर किसी को होगा,विकास के काम अगर होंगे तो पूछकर नहीं होंगे कि ये हिंदु का इलाका है या ये मुसलमान का। खास बात ये रही कि बीजेपी से गठबंधन के बावजूद भी आम मुसलमानों ने जेडीयू को वोट दिए आखिर उन्हे भी तो विकास चाहिए...उन्हे भी सड़क,रोजगार,शिक्षा चाहिए। अपने भड़काउ भाषणों के लिए मशहुर नरेंद्र मोदी और वरुण गांधी जैसों को भी बीजेपी ने बिहार नहीं भेजा जिसका फायदा आखिर उन्हे ही मिला रिजल्ट आने पर वे खुद ताज्जुब में थे।
          कारण साफ है जनता समझ गई है कि अब फालतू बातों का कोई महत्व नहीं है अगर समाज के साथ कदम मिलाकर चलना है तो विकास को चुनना ही होगा। इस चुनाव से जाहिर होता है कि लोगों की विकास में कितनी दिलचस्पी है। हमें उम्मीद करनी चाहिए कि गुजरात,बिहार की तरह अन्य राज्यों में भी जनता विकास को ही चुनें ताकि उनका मुस्तकबिल(भविष्य) बेहतर हो सके।

Friday, November 26, 2010

फैंको मगर प्यार से

चचा बतूलै बेहद खुश नजर आ रहे थे....लगता था आज उनकी सारी चिंताए दूर हो गई हों....मुझे देखते ही बोले और सुनाओ लल्ला....क्या सब चल रहा है....आजकल किसकी मां-बहन एक करने जा रहे हो....क्या मतलब चचा....अरे...तुम मीडिया वाले मतलब बहुत पूछते हो.....हैं......एक तो तुमने अपने चारा छाप पहलवान को हरवा दिया उपर से मतलब हमसे पूछ रहे हो.....लेकिन मैं समझा नहीं चचा क्या बक रहे हो....अब फैंकने की बारी चचा की थी....अबे सुना है लालू बहुत टेंशन में चल रहा है....उसने नितिश से वादा किया था कि उनकी मेहरारु यानि पूज्यनिय भाभी रबड़ी मलाई....मेरा मतलब है...राबड़ी देवी..को अगर हरा दिया तो वो उसकी टांग के नीचे से निकल जाएंगें...अब उन्हे लग रिया है...कि जनता को नितिश ने क्या पाठ पढ़ा दिया....जो उनकी मां-बहन एक हो गई.....वो तो अब तक जनता को उल्लू बना रहे थे इस बार जनता ने उन्हे उल्लू बना दिया.....पर चचा...तुम तो.....अबे पके हुए अमरुद....मैं क्या...मैं तो पैलेई कै रिया था....और तुम मीडिया वालों ने भी तो.....अरे चचा हमारा काम है...जनता को जागरुक करना.....हमने पहले ही बतला दिया था कि इस बार लालू एंड कंपनी की......समझ गया....चचा चिल्लाए....मैं भी तो कै रिया था पर मेरी कोई सुने तब न....अरे चचा....तुम सबको अपनी ही तो सुनाते रहते हो किसी की सुनते भी हो.....चचा ने धमाका छाप तंबाकू मुंह में डालते हुए कहा....हैं...में तो कै रिया हूं....जनता अब समझदार हो गई है.....सोच समझ के ही वोट देती है....चचा अब लाइन पर थे....कि मैने उन्हे छेड़ डाला.....पर चचा सुना है...तुमको भी मुहल्ले से निकाले जाने की बात चल रही है....लोगों का कहना है कि चचा शरद पवार की तरह खूब पकाते हैं....अबे हमें कौन माई का लाल मुहल्ले से निकाल सकता है....है किसी में इतना दम....हैं...हे चचा जनता में है जब जनता जागती है तो तुम जैसों की हवा बंद हो जाती है.........हैं......जब जनता का दिमाग फिरता है तो उसे सामने कोई भी हो नजर नहीं आता....समझे....हैं.....बैग उठाकर में तो चलता बना.....  

Wednesday, November 24, 2010

सुनो सुनाओ....लाइफ़ बनाओ...

रेडियो पर गाना बज रहा था....गोली मार भेजे में...ये भेजा शोर करता है....वाकई आज की भागदौड़ वाली जि़न्दगी में किसी को भी इतनी फुर्सत नहीं कि अपने अंदर झांक कर देख सके कि मैं कर क्या रहा हूं...किसलिए कर रहा हूं....क्यों कर रहा हूं....क्या फर्क पड़ता है भाई....जैसे चल रहा है चलने दो....बात छोटी है और छोटी सी है ये लाइफ... तो फिर टेंशन किस बात की....लेकिन हां एक बात तो है कि अगर हम चाहें तो अपनी लाइफ को और ख़ूबसूरत बना सकते हैं....हम अपने तनाव को कम कर सकते हैं...थोडी सी खुशी के साथ...थोडे में खुश रहना जिसने सीख लिया समझो उसने जंग जीत ली...कोई कुछ कहता है तो कहने दो... क्योकि कुछ तो लोग कहेंगें...लोगों को काम है कहना....अगर दूसरों की बातों पर गए तो समझो गए काम से....दिल की आवाज सुनिए जनाब...दिमाग की नहीं...क्योंकि दिल की आवाज दूर तलक जाती है....

माई फादर...मेरे बाबूजी....

मां से तो हर कोई प्यार करता है लेकिन उतना ही प्यार हमें अपने पिता से भी होना चाहिए.उसी की बदौलत हमने ये दुनिया देखी.....मां जितनी आसानी से अपने बच्चों से प्यार का इज़हार करती है पिता कभी भी खुले तौर पर अपने प्यार का इजहार नहीं कर पाता.....लेकिन वो अपनी औलाद से बहुत प्यार करता है.....क्या नहीं करता वो अपनी औलाद के लिए......एक मां-बाप मिलकर दस बच्चों को पाल सकते हैं तो फिर दस बच्चे मिलकर अपने मां-बाप को क्यों नहीं पाल सकते.....हमें अपने पेरेंट्स का हर वक्त ख़्याल रखना चाहिए....उनकी जरुरतों को कैसे भी हो पूरा करना हमारा फ़र्ज है.... आप की नज़र में निदा फ़ाज़ली की एक बेहतरीन रचना पेश करने का मन है....उम्मीद है आपको पसंद आएगी....मुझे बेहद पसंद है....क्योंकि बहुत कुछ कहती हैं ये लाइनें....


    तुम्हारी कब्र पर मैं...फ़ातेहा पढ़ने नहीं आया...
    मुझे मालूम था.....तुम मर नहीं सकते......
    तुम्हारी मौत की सच्ची ख़बर जिसने उड़ायी थी....
    वह झूठा था.......वह तुम कब थे.........
    कोई सूखा हुआ पत्ता हवा से हिल के टूटा था....
    मेरी आंखें तुम्हारे मंज़रों में कैद हैं अब तक
    मैं जो भी देखता हूं.....सोचता हुं......वो वही है..
    तुम्हारी नेकनामी और बदनामी की दुनिया थी
    कहीं कुछ भी नहीं बदला........
    तुम्हारे हाथ मेरी उंगलियों में सांस लेते हैं.....
    मैं लिखने के लिए जब भी कलम उठाता हूं
    तुम्हें बैठा हुआ में अपनी ही कुर्सी में पाता हूं
    बदन मेरे जितना भी लहू है........
    वो तु्म्हारी लगजि़शों नाकामियों के साथ बहता है..
    मेरी आवाज में छिपकर तुम्हारा जेहन रहता है....
    मेरी बिमारियों में तुम...मेरी लाचारियों में तुम...
    तुम्हारी कब्र पर जिसने तुम्हारा नाम लिखा है..
    वो झूठा है.....वो झूठा है.......वो झूठा है........
    तुम्हारी कब्र मे दफ़्न हूं...तुम मुझमें जिंदा हो...
    कभी फुर्सत मिले तो फातेहा पढ़ने चले आना....
                           निदा फ़ाज़ली,शायर 

Tuesday, November 23, 2010

जानम समझा करो

                            


सामने से चचा बतूलै को आता देख मैने पतली गली पकड़ना ही मुनासिब समझा..लेकिन चचा की पारखी नजर और निरमा सुपर से भला कोई बच सकता है...मुझे देखते ही फेंकने लगे अरे ओ रिपोर्टर की नयी कलम जरा हिंया आओ.....अरे चचा कैसे हैं....क्या चल रहा है.....आजकल....अबे चलना क्या है.....अपने नितिश ने तो कमाल कर दिया...लालू एंड कंपनी को चारों खाने चित्त कर दिया कसम उड़ान झल्ले की.....हां चचा वो तो है...लेकिन हाथ वाली कांग्रेस....अबे क्या कै रिया है...उसे तो सालों लगेंगें बिहार की गद्दी पर बैठने में.....अब चचा ने फैंकना शुरु कर दिया....अरे मैने तो पैले ही राहुल को बतला दिया था कि भईया हिंया तेरी दाल गलने वाली नई....हैं.....तो फिर चचा क्या कैया उसने....अरे कैना क्या था.... लगा मुझसे राय मांगने....चचा अब तुम ही बेड़ा पार लगा सकते हो....सच.....हैं......पर मैने तो साफ कह दिया कि मैं तो उसके साथ हूं जो विकास की बात करेगा....चचा लाईन पर आ रहे थे कि मैने उन्हे छेड़ डाला....पर चचा तुम तो लालू के तरफदार थे....चचा ने धमाका छाप तंबाकू मुंह में डालते हुए कहा...अबे खरबूजे के बीज....लालू से बड़ा जोकर मैने इस दुनिया में नई देखा.....और तुमसे बड़ा मैने नहीं...मैं मन में बुदबुदाया....अरे जब वो भैंसों का चारा खा सकता है तो जनता के पैसों को भी तो पचा सकता है....चचा अब लाइन पर थे....तो चचा क्या विकास ही...हां भई....विकास से ही अब चुनाव जीता जा सकेगा....आंडू-पांडू नेता तो अब सड़क पे भजिया तलेंगें कसम लालकिले की.....तो चचा अब तुम भी अपना बोरिया बिस्तर बांध लो क्योंकि इस मुहल्ले में तुम्हारी बक-बक सुन कर कोई नया चचा न ले आए...कसम लालकिले की.......   

औकात

अरे सुधा जल्दी करो...लेट हो जाएंगें...बस हो गया...सुधीर आज बहुत चहक रहे थे.. उनके बेटे सिद्धार्थ के स्कूल में फादर्स डे के मौके पर फंक्शन था बस उसी में सुधीर को चीफ गेस्ट के तौर पर बुलाया गया था....सुधीर शहर की जानी मानी हस्ती थे...उन्हे भाषण देने के लिए बुलाया गया.....हाल तालियों से गूंज उठा.... वे इस मौके पर जोर शोर सो बोल रहे थे...मां-बाप हमारे भगवान होते हैं उनका सम्मान करना हमारा फर्ज है..उनकी सेवा करने से जीवन सुखी होता है और भी बहुत कुछ....तभी उनका लाड़ला बेटा सिद्धार्थ उठ खड़ा हुआ और तपाक से बोला तो फिर पापा आपने परिवार के झगड़े में दादी को ओल्ड एज होम क्यों भेजा....पूरे हाल में खा़मोशी छा गई....सुधीर को काटो तो खून नहीं....उन्हे लगा कि किसी ने बीच चौराहे पर नंगा कर दिया हो............

चंपू बदनाम हुआ....डार्लिंग तेरे लिए

उसे लिखने का बहुत शौक था,समझिए कि बस लेखन का भूत सवार रहता था उस पर...उसे खुद नहीं मालुम था कि वो कब से लिख रहा है। दिन रात बड़ा लेखक बनने का सपना पाले और कुछ लोगों के कहने पर उसने पत्रकारिता में कदम रखने की ठानी..उसे लगता था कि अपने लेखन के दम पर वो मीडिया में छा जाएगा। अब क्या किया जाए....दो चार महानुभावों ने उसे पत्रकारिता का कोर्स करने की सलाह दे डाली...हालांकि उसके परिवारवाले उसे बी.एड. करने को कह रहे थे लेकिन वो अपनी जिद पर अड़ा रहा और उसने कोर्स में दाखिला ले लिया। कोर्स में एडमिशन लेने के बाद वो बेहद खुश रहने लगा, उसे लगता जैसे वो भी कल को टी.वी.खबरें पढ़कर सीधे बडे़-बडे़ लोगों से रुबरु हो सकेगा। ऐसे ही चहलकदमी करते हुए वो दिन भी आ गया जब उसका कोर्स पूरा हो गया।
       अब उसे चिंता सताने लगी कि कैसे नौकरी का जुगाड़ किया जाए लेकिन नौकरी तो दूर उसे इंटर्नशिप भी नहीं मिल पा रही थी। अब क्या होगा इसी उधेड़बुन में वो अपना दिमाग लगाता रहता। तभी एक चमत्कार हुआ उसे एक चैनल में इंटर्नशिप मिल ही गई...अब ये मत पूछना कैसे....बस भई कैसे भी जैसे हर किसी के मिल जाती है...यानि जुगाड़। धन्य हो गुरु बादल आ गए और आप छा गए...लड्डू बंट गए साहब...मानो कोई जंग जीत ली हो...मिंया का कहना साफ था अब देखना कौन माई का लाल रोकता है मुझे।
        खैर पहला दिन और काम शुरु.... अरे....क्या नाम तुम्हारा...नए हो इंटर्न...जरा प्रिंटर से पेज ले आओ तो....सुनो यार कैंटिन में बोल देना कि वर्मा जी ने बिना शक्कर की चाय मंगाई है.....जी सर....अभी कहता हूं...हां....जल्दी जाओ.....ठीक है..सर....दिल को समझाया उसने...ऐसा ही तो लिंक निकलेंगें....क्या फर्क पड़ता है...कोई बात नहीं....सुबह से शाम तक वो अपने आपको दिलासा देकर काम करता रहता...आखिर बडे़ पत्रकारों ने भी यही सब किया होगा। लेकिन ऐसा कब तक चलेगा यहां तो कोई भी कुछ भी सिखाने को राजी नहीं है....क्या ये सब इस बात से डरते हैं कि कहीं...मैं इनसे आगे निकल गया तो......कैसे-कैसे लोग भरे पडे़ हैं यहां...इन्हे तो पत्रकारिता की एबीसीडी भी नहीं आती और रौब देखो.....
      पूरे दो महीने हो गए....काम भी अपने दम पर सीख लिया.....लेकिन अब नौकरी की तलाश की जाए तो बेहतर हो...सोचकर उसने अपना इंटर्नशिप लेटर ले लिया और चक्कर काटने लगा चैनलों के दफ़्तरों के.......लेकिन जनाब की किस्मत बुलंद निकली एक चैनल ने उसे नौकरी दे दी....अब क्या था उसकी तो बल्ले-बल्ले....जो जो चैनल वाले कहते गए मिंया आंख मूंदे हर वो काम करते गए.....लेकिन अपने आपको हर बार ठगा सा महसूस करते गए...ये क्या कर रहा हूं मैं...पत्रकारिता या भड़वागिरी....काम बीस हजार का करवाते हैं और पैसा पांच हजार देते हैं....उपर से कभी भी निकाले जाने का डर..कहां फंस गया.....लेकिन एक दिन तो गजब ही हो गया.....बुलेटिन लेट हो गया...एडीटर ने न्यूज़ डेस्क के सारे बंदों की जमकर क्लास लगाई.....जो भी मुंह पे आया बक दिया....सारे चुपचाप सुन रहे थे....उससे न रहा गया....उबल पड़ा वो....सर इसमें हम लोगों की क्या गलती है....सारी गलती तो आउटपुट और इनपुट की है....हमें टाइम पे न्यूज़ नहीं मिलती....जानता हूं तुम जैसों को अपनी गलती का ठीकरा दुसरे के सिर फोड़ना आसान है.....उसे जैसे करंट लग गया....उससे रहा न गया...अगर ऐसा है तो ये रही तुम्हारी नौकरी.....यहां काम करने के लिए हैं तुम्हारी गाली सुनने के लिए नही...जोश में पांव पटकता हुआ घर चला आया.....
      अब उसने कुछ नया करने की ठानी.....जैसे को तैसा बदल डाला उसने अपने आपको.... आज वो दो साल में ही दबंग पत्रकार माना जाता है.....बडे़-बडे़ लोगों से उठ-बैठ है उसकी.....उसकी नज़र बदल गई.....उसका काम भी बदल गया....वो बैखौ़फ लोगों को डराता धमकाता उनकी ख़बर लीक करने की धमकी देता और जमकर पैसे वसूल करता....चापलूसी में तो उसने महारत हासिल कर ली....अब उसका काम पत्रकारिता कम भड़वागिरी ज्यादा थी.....वो बदनाम हो गया था.....जब भी कोई उससे इस बारे में पूछता वो बड़ी बेशर्मी के साथ बेहिचक कहता चंपू बदनाम हुआ डार्लिंग(पत्रकारिता) तेरे लिए..........
                                            इंतख़ाब आलम अंसारी
           

Sunday, November 21, 2010

यमुना तेरा पानी अमृत

पिछले दिनों उत्तरकाशी जाना हुआ,यहां एक बेहद खुबसूरत छोटा सा कस्बा है बड़कोट। यहीं मेरा बचपन बीता यहां से 53 किलोमीटर की दूरी पर यमुना का उदगम स्थल हैनाम है यमुनोत्री,पहली नज़र में अगर आप यमुना पर नजर डालें तो पाएंगें कि इसका पानी इतना साफ और स्वच्छ है मानो पानी कह रहा हो कि मुझे देखो तो देखते ही रह जाओगे। यमुना नदी का नीर पानी टेढे़-मेढ़े रास्तों ते होकर गुजरता है। पहाडों तक तो पानी साफ है लेकिन मैदानों में आते ही इसका रंग बदलने लगता है। इसका ये रंग खुदबखुद नहीं बदलता बल्कि बदल दिया जाता है।
      जब भी में दिल्ली में यमुना ब्रिज के उपर से गुजरता हूं तो सिहर जाता हूं,क्या यही वो यमुना है जो मेरे घर के पास बहती है...क्या यही वो यमुना है जो पहाड़ो से साफ जल लेकर मैदानों की प्यास बुझाने की हर मुमकिन कोशिश करती है लाखों लोगों को जीवन देती है। अपने हित की खातिर उसका क्या हाल कर दिया है लोगों ने ..क्या इस जीवनदायिनी नदी पर किसी को तरस नहीं आता। बात-बात पर हो-हल्ला मचाने वाले राजनेता, समाजसेवी,मीडिया,साधु-संत चुप्पी साधे बैठे हैं। तरस आता है ऐसे लोगों की मानसिकता पर।
      दिल्ली में यमुना का हाल कितना बुरा है ये किसी से भी छिपा नहीं है। पूरे देश की गतिविधियों का केंद्र रहने वाली दिल्ली में पावन नदी की तरफ किसी की भी नजरें नहीं टिकती आश्चर्य की बात है। कल्पना करें कि एक दिन नदियां सूख गईं तो.....यकीनन पानी अनमोल है। थोड़ा सा प्रयास तो करें हम जैसों का साथ दें...यमुना को साफ करके ही हम अपना जीवन बचा सकते हैं...कोई शक नहीं कि एक दिन पानी को लेकर पूरी दुनिया में विश्व युद्ध छिड़ेगा। तब देखना हम अपने किए पर कितने पछताएंगे। आने वाली पिढ़ियां हमारी इन कमजोरियों के लिए हमें कभी माफ नहीं करेंगी।    

Saturday, November 13, 2010

आधुनिक शिक्षा भी लें मुसलमान

देश के 22 करोड़ से ज्यादा मुसलमानों की हालत क्या है,ये किसी से भी छिपा नहीं है। ज्यादातर मुसलमान बुनियादी सुविधाओं से महरुम हैं। आज भी वे अलग-अलग फ़िरकों में बंटे हुए हैं, मुझे इसका एक ही कारण नज़र आता है और वो है शिक्षा, आज भी तालीम के मामले में मुसलमान काफी पीछे हैं, जिससे वे दूसरी क़ौम से पिछड़ गए। देखा जाए ते आजादी से पहले मुसलमानों की हालत काफी अच्छी थी लेकिन मुल्क के बंटवारे और आजादी के बाद मुसलमान हाशिए पर चले गए या फिर उन्हे उनके हाल पर छोड़ दिया गया। देश की आजादी के इतने सालों बाद भी वे मुख्यधारा से अलग-थलग पड़े हैं। इसमें गलती किसकी है सरकार, मदरसा शिक्षा,उनके रहनुमा या फ़िर खुद मुसलमानों की। सवाल ये उठता है कि उन्हे संविधान ने बराबरी का हक दिया है तो फिर वे क्यों नहीं मुख्यधारा से जुड़ पाते।
     मुसलमानों से अगर किसी ने बेरुख़ी दिखाई है तो खुद मुसलमानों ने,उनके आला लीडर या उनके नाम पर राजनीति करने वाले लोगों ने उनके शिक्षा,स्वास्थ्य,रोजगार को लेकर कभी भी रुचि नहीं दिखाई,क्योंकि वे नहीं चाहते कि मुसलमान पड़ लिख जाऐं और उनकी राजनीति चौपट हो जाए। मुल्ला-मौलवियों ने अरबी तालीम पर तो जोर दिया लेकिन आधुनिक शिक्षा से दुर रखा। कुछ पढे़-लिखे तालीम याफ्ता लोगों के आवाज़ उठाने पर सरकार ने मदरसों में अंग्रेजी तालीम तो लागू करवा दी लेकिन सही ढंग से प्रसारित नहीं करवा पाई।
       आजादी के बाद कितनी ही सरकारें आयीं और चली गईं लेकिन किसी ने कभी भी मुसलमानों की तरक्की के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किए। बस सिर्फ मुसलमानों को वोट बैंक समझकर उनका इस्तेमाल करते रहे। कांग्रेस सरकार ने एक तरफ शाहबानों केस में कानुन लागू कर मुस्लिमों को खुश करने की कोशिश तो वहीं दूसरी और बाबरी मस्जिद का ताला भी खुलवा दिया। जिसका दंश रह-रह कर मुसलमानों को डसता रहता है। सबसे ज्यादा समय तक सरकार बनाने वाली कांग्रेस ने मुसलमानों को हमेशा अंधेरे में रखा उसने न तो लिब्राहन आयोग की सिफारिश को लागू किया न ही सच्चर कमेटी की सिफारिशों को, वही हाल मुसलमानों के नाम पर राजनीति करने वालों का है। आज भी देश में उच्च पदों पर मुसलमान बैठे हैं लेकिन वे कभी भी मुसलमानों की तरक्की के लिए आवाज़ बुलंद नहीं करते।
        शाह फैसल सबसे बडी़ सर्विस आई.ए.एस. को टाप कर जाते हैं और कोई भी मुस्लिम लीडर या रहनुमा न तो उन्हे सम्मानित करता है न ही उनके बारे में कोई बात करता है। इससे साफ पता चलता है कि ये लोग मुसलमानों की तरक्की की राह में कितना बड़ा रोडा़ हैं। ये लोग नहीं चाहते कि मुसलमान पढ़ लिख जाएं और तरक्की याफ्ता कौम बन जाऐं। 
       अब भी वक्त है जब मुसलमानों को अपने आने वाले भविष्य को सुधारना होगा उन्हे अपने बच्चों को अच्छी से अच्छी तालीम देनी होगी। भावनाओं में बहकर ही उनका अब तक ये हाल है। उन्हे ख़ुद अपना मुस्तकबिल बनाना होगा। इसके लिए उन्हे अरबी तालीम के साथ-साथ आधुनिक तालीम भी लेनी होगी तभी उनका भविष्य रोशन हो सकेगा । और वे भी समाज की मुख्यधारा से जुड़ सकेंगें। 
             
  

Tuesday, November 9, 2010

कहो तो फ़िर से..............

1.रुमानियत और मुहब्बत,हैं दो लफ़्ज़ या कुछ और
कहो तो फ़िर से.....
ये बात है या जज्बात,पुरानी ये मुलाकात
कहो तो फ़िर से....
ज़िन्दग़ी जीने का ये ढंग,और सब्र का परचम
पी रहे हो इसे क्यूं..... कहो तो फ़िर से....
वो तुम ही थे जो कहते थे महफ़िल में
प्यार करता हूं...बेपनाह इनसे......
कहो तो फ़िर से.........

2..चेहरा तुम्हारा......
चेहरा तुम्हारा देखकर कहता है आईना
तुम हूर हो,नूर हो या फ़िर परी हो कोई

3..तेरा चेहरा......
तेरा चेहरा गुलाब हो जाए
रुहे-शब आफ़ताब हो जाए
ये आंधिया भी रुक जाएंगी गर
तेरे रुख़ से नकाब हट जाए

4..तेरे करीब...
तेरे क़रीब आके महसूस हुआ यूं
जैसे हसीं वादी,और वादियों में तू

5..तेरे बिन...
अब न रह पाउंगा में तो तेरे बिन
अब न जी पाउंगा में तो तेरे बिन

Monday, November 8, 2010

दिल जीता ओबामा ने

अपने 3 दिन के दौरे से अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने हिंदुस्तानियों का दिल जीत लिया। संसद में अपने भाषण के दौरान उन्होने भारतीय संस्कृति की जमकर तारीफ की। 3 दिन में ही कितने घुलमिल गए थे भारतियों से ओबामा ये आसानी से देखा जा सकता था । अपने भाषण में उन्होने जितनी भी बातें कहीं वे निसंदेह हर भारतीय के लिए सुकून भरी साबित हुई। इस दौरान पूरे संसद में कई बार जमकर तालियों की आवाज भी सुनाई दी।
     ओबामा जितने आकर्षक व्यक्ति हैं उतनी ही उनकी पत्नि मिशेल...बच्चों के साथ उनका डांस करना उनके व्यक्तित्व को ही दर्शाता है। महात्मा गांधी को और मार्टिन लूथर किंग को अपना आदर्श मानने वाले ओबामा भारतीय संस्कृति और सभ्यता को देखकर अभिभूत हो गए। कहना चाहिए कि राजघाट पर वे चकित थे कि दुबला पतला और सदा एक ही कपडे़ में रहने वाला ये इंसान किस माटी का बना होगा।
      ओबामा के भारत दौरे से साफ है कि अब अमेरिकियों ने भारतीयों का लोहा माना है,और हो भी क्यों न आज हर क्षेत्र में भारतीय किसी से पीछे नहीं हैं। अब लगता है कि भारत और अमेरिका के संबंधों में एक नया मोड़ आयेगा और दोनों देशों के संबंध पहले की अपेक्षा और अधिक मजबूत होंगे। उम्मीद तो की ही जानी चाहिए...
                                           इंतख़ाब आलम अंसारी      

Friday, November 5, 2010

बराक आओ ओबामा

अमेरिका के राष्टपति बराक हुसैन ओबामा 6 नवंबर को भारत आ रहे हैं। पूरे देश में उत्सुकता का माहौल है। हो भी क्यों न विश्व के सबसे मजबूत देश के प्रतिनिधि हैं ओबामा...भारत के साथ मिलकर अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करना उनकी प्राथमिकता में शामिल है। पिछले साल ही अमेरिका की मंदी ने समूचे विश्व में हलचल पैदा कर दी थी। लाखों लोगों को अपना रोजगार खोना पडा़ था। इसका असर हमारे देश पर में भी पड़ा,यहां भी कई लोगों को अपनी नौकरियां गंवानी पड़ीं।
       मैं बराक ओबामा को विश्व का सबसे बेहतरीन नेता मानता हूं। केवल उनके भाषण ही नहीं बल्कि उनके व्यक्तित्व से भी प्रभावित हूं। अमेरिका जैसे नस्लवादी देश में एक काले का सर्वोच्च पद पर पहुंचना आसमान छूने जैसा है। उनके राजकाज में कम से कम अमेरिका अन्य देशों पर अपनी धौंस तो नहीं जमाता। दक्षिण एशियाई नीति को लेकर भी उनकी तारीफ की जानी चाहिए। उन्होने न केवल भारत को उभरती महाशक्ति के तौर पर स्वीकार किया बल्कि ये भी माना कि भारत जैसे देश में यौग्य लोगों की भरमार है। और इसी को लेकर वे भारत से कई मुद्दों पर बातचीत को लेकर उत्सुक हैं।
       गांधी जी की विचारधारा से प्रभावित ओबामा अपने चार दिवसीय दौरे पर बापू को श्रद्धांजलि देगें। शान्ति के लिए नोबेल पा चुके ओबामा भारतीय दौरे को लेकर काफी उत्सुक दिखलाई पड़ते हैं। हमें पूरी उम्मीद है कि ओबामा भारत की अर्थव्यवस्था को मजबुत करने को लेकर कडे़ कदम उठा सकते हैं। उनका साफ कहना है कि मैं एशिया में अपने देश के हितों के मामले में केवल भारत को ही सबसे मजबूत आधार मानता हूं,मैं मानता हूं कि भारत आने वाले समय में विश्व की आर्थिक महाशक्ति के रुप में सामने आने वाला है।
       नि:संदेह हमें बराक ओबामा की यात्रा का स्वागत करना चाहिए। ओबामा अगर कोई भी कदम भारत के हित के लिए उठाते हैं तो ये हमारे लिए अच्छा ही होगा। अमेरिका के साथ मिलकर भारत के रोजगार और बाजारीकरण को मजबूती मिल सकती है। साथ ही आंतकवाद के मामले में भी भारत अमेरिका से दो टूक बात करने को तैयार है,अमेरिका पहले ही पड़ौसी देश पाकिस्तान को आंतकवाद रोकने को लेकर चेतावनी दे चुका है। अब देखना ये हे कि भारत और अमेरिका कैसे एक-दूसरे के मामलों को समझकर सही कदम उठा पाऐंगें......
                               इंतख़ाब आलम अंसारी     

Tuesday, November 2, 2010

कुछ शेर आपके नाम

१..वो जो कहते हें मुनासिब हें उनका कहना
पहले झांको गिरबान में फिर बात करो

२..तुमको देखा हें तो महसूस किया हें मैंने
बात फूलों की तो खुशबु की भी होती हें

३..बस्तियां उजड़ रही थी और वो देख रहे थे
पानी न आँखों में कलेजे में गम न था

४..ये इश्क न होता जो कभी यार न होता
न प्यार ही होता न ऐतबार ही होता

५..आप तो रात सो लिए साहिब
हमने तकिये भिगो लिए साहिब
इंतखाब आलम

शर्म हमको मगर आती नहीं

आजाद मुल्क है हिंदुस्तान,और आजाद है यहां के लोग उन्हीं लोगों में शामिल हैं हमारे देश के कर्णधार यानि राजनेता और उन्ही लोगों में शामिल हैं हमारे देश के गरीब। लेकिन कितना अंतर, कितना विरोधाभास है कि एक तो आसमान की बुलंदियों को छू रहा है और दूसरा जमीन की। इन्ही गरीबों का हक मारकर ये नेता ऐशो-आराम की जिन्दगी जी रहे हैं। क्या नहीं है आज इनके पास गाड़ी,बंगला,धन-दौलत। जी हां सबकुछ, वो सबकुछ जिसे पाने की चाहत हर किसी की होती है,लेकिन बहुत कम ही ऐसे भाग्यवान होते हैं जिन्हे ये सब नसीब हो पाता है। लेकिन हमारे देश के नेताओं के तो भाग्य ही खुले हुऐ हैं,बस एक बार चुनाव जीत जाऐं फिर तो बल्ले ही बल्ले।

शायद आप समझ नहीं पा रहे हैं कि मेरा इशारा आदर्श सोसाइटी घोटाले तरफ है। मुंबई में हुऐ आंतकी हमले में मारे गऐ जवानों के परिजनों के लिऐ बनाऐ गऐ आशियाने पर न जाने कब से नेता और बड़े अधिकारी अपनी गिद्द दृष्टि जमाऐ बैठे थे। मौका पाते ही उन्होने हाथ मार लिया,लेकिन वो खुद ही अपने जाल में फंस गऐ। हैरानी वाली बात ये है कि इस बंदर बांट में सूबे के मुख्यमंत्री भी शामिल हैं। अपनी फजीहत होते देख उन्होने अपना इस्तीफा देना बेहतर समझा लेकिन घोटालों की सरदार रही कांग्रेस पार्टी ने उनका इस्तीफा न तो स्वीकार किया, न ही इस मामले पर कोई फैसला सुनाया।

जनता के प्रतिनिधि कहलाने वाले राजनेता किस तरीके से आम लोगों के खून पसीने से कमाई दौलत की खुलेआम लूटखसौट में लगे हैं,इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि करोड़ों रुपऐ होने के बावजूद भी इनकी नीयत किस कदर खराब है। इन लोगों ने राजनिती को धंधा बना डाला। एक ऐसा धंधा जिसमें सिर्फ कमाई ही कमाई है। देश में हजारों लोग भूख से मर जाते हैं और इनकी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता किस बात के जनप्रतिनिधि हैं ये ? क्या इनकी संवेदना मर चुकी है,क्या ये मानसिक रुप से इतने परिपक्व हैं कि इन्हे किसी की भूख और गरीबी से जूझते लोग दिखलाई नहीं पड़ते। अगर ऐसा है तो फिर इनको आम लोगों की आवाज बनने का कोई हक नहीं।

इंतख़ाब आलम अंसारी