Tuesday, November 23, 2010

चंपू बदनाम हुआ....डार्लिंग तेरे लिए

उसे लिखने का बहुत शौक था,समझिए कि बस लेखन का भूत सवार रहता था उस पर...उसे खुद नहीं मालुम था कि वो कब से लिख रहा है। दिन रात बड़ा लेखक बनने का सपना पाले और कुछ लोगों के कहने पर उसने पत्रकारिता में कदम रखने की ठानी..उसे लगता था कि अपने लेखन के दम पर वो मीडिया में छा जाएगा। अब क्या किया जाए....दो चार महानुभावों ने उसे पत्रकारिता का कोर्स करने की सलाह दे डाली...हालांकि उसके परिवारवाले उसे बी.एड. करने को कह रहे थे लेकिन वो अपनी जिद पर अड़ा रहा और उसने कोर्स में दाखिला ले लिया। कोर्स में एडमिशन लेने के बाद वो बेहद खुश रहने लगा, उसे लगता जैसे वो भी कल को टी.वी.खबरें पढ़कर सीधे बडे़-बडे़ लोगों से रुबरु हो सकेगा। ऐसे ही चहलकदमी करते हुए वो दिन भी आ गया जब उसका कोर्स पूरा हो गया।
       अब उसे चिंता सताने लगी कि कैसे नौकरी का जुगाड़ किया जाए लेकिन नौकरी तो दूर उसे इंटर्नशिप भी नहीं मिल पा रही थी। अब क्या होगा इसी उधेड़बुन में वो अपना दिमाग लगाता रहता। तभी एक चमत्कार हुआ उसे एक चैनल में इंटर्नशिप मिल ही गई...अब ये मत पूछना कैसे....बस भई कैसे भी जैसे हर किसी के मिल जाती है...यानि जुगाड़। धन्य हो गुरु बादल आ गए और आप छा गए...लड्डू बंट गए साहब...मानो कोई जंग जीत ली हो...मिंया का कहना साफ था अब देखना कौन माई का लाल रोकता है मुझे।
        खैर पहला दिन और काम शुरु.... अरे....क्या नाम तुम्हारा...नए हो इंटर्न...जरा प्रिंटर से पेज ले आओ तो....सुनो यार कैंटिन में बोल देना कि वर्मा जी ने बिना शक्कर की चाय मंगाई है.....जी सर....अभी कहता हूं...हां....जल्दी जाओ.....ठीक है..सर....दिल को समझाया उसने...ऐसा ही तो लिंक निकलेंगें....क्या फर्क पड़ता है...कोई बात नहीं....सुबह से शाम तक वो अपने आपको दिलासा देकर काम करता रहता...आखिर बडे़ पत्रकारों ने भी यही सब किया होगा। लेकिन ऐसा कब तक चलेगा यहां तो कोई भी कुछ भी सिखाने को राजी नहीं है....क्या ये सब इस बात से डरते हैं कि कहीं...मैं इनसे आगे निकल गया तो......कैसे-कैसे लोग भरे पडे़ हैं यहां...इन्हे तो पत्रकारिता की एबीसीडी भी नहीं आती और रौब देखो.....
      पूरे दो महीने हो गए....काम भी अपने दम पर सीख लिया.....लेकिन अब नौकरी की तलाश की जाए तो बेहतर हो...सोचकर उसने अपना इंटर्नशिप लेटर ले लिया और चक्कर काटने लगा चैनलों के दफ़्तरों के.......लेकिन जनाब की किस्मत बुलंद निकली एक चैनल ने उसे नौकरी दे दी....अब क्या था उसकी तो बल्ले-बल्ले....जो जो चैनल वाले कहते गए मिंया आंख मूंदे हर वो काम करते गए.....लेकिन अपने आपको हर बार ठगा सा महसूस करते गए...ये क्या कर रहा हूं मैं...पत्रकारिता या भड़वागिरी....काम बीस हजार का करवाते हैं और पैसा पांच हजार देते हैं....उपर से कभी भी निकाले जाने का डर..कहां फंस गया.....लेकिन एक दिन तो गजब ही हो गया.....बुलेटिन लेट हो गया...एडीटर ने न्यूज़ डेस्क के सारे बंदों की जमकर क्लास लगाई.....जो भी मुंह पे आया बक दिया....सारे चुपचाप सुन रहे थे....उससे न रहा गया....उबल पड़ा वो....सर इसमें हम लोगों की क्या गलती है....सारी गलती तो आउटपुट और इनपुट की है....हमें टाइम पे न्यूज़ नहीं मिलती....जानता हूं तुम जैसों को अपनी गलती का ठीकरा दुसरे के सिर फोड़ना आसान है.....उसे जैसे करंट लग गया....उससे रहा न गया...अगर ऐसा है तो ये रही तुम्हारी नौकरी.....यहां काम करने के लिए हैं तुम्हारी गाली सुनने के लिए नही...जोश में पांव पटकता हुआ घर चला आया.....
      अब उसने कुछ नया करने की ठानी.....जैसे को तैसा बदल डाला उसने अपने आपको.... आज वो दो साल में ही दबंग पत्रकार माना जाता है.....बडे़-बडे़ लोगों से उठ-बैठ है उसकी.....उसकी नज़र बदल गई.....उसका काम भी बदल गया....वो बैखौ़फ लोगों को डराता धमकाता उनकी ख़बर लीक करने की धमकी देता और जमकर पैसे वसूल करता....चापलूसी में तो उसने महारत हासिल कर ली....अब उसका काम पत्रकारिता कम भड़वागिरी ज्यादा थी.....वो बदनाम हो गया था.....जब भी कोई उससे इस बारे में पूछता वो बड़ी बेशर्मी के साथ बेहिचक कहता चंपू बदनाम हुआ डार्लिंग(पत्रकारिता) तेरे लिए..........
                                            इंतख़ाब आलम अंसारी
           

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