Wednesday, November 24, 2010

माई फादर...मेरे बाबूजी....

मां से तो हर कोई प्यार करता है लेकिन उतना ही प्यार हमें अपने पिता से भी होना चाहिए.उसी की बदौलत हमने ये दुनिया देखी.....मां जितनी आसानी से अपने बच्चों से प्यार का इज़हार करती है पिता कभी भी खुले तौर पर अपने प्यार का इजहार नहीं कर पाता.....लेकिन वो अपनी औलाद से बहुत प्यार करता है.....क्या नहीं करता वो अपनी औलाद के लिए......एक मां-बाप मिलकर दस बच्चों को पाल सकते हैं तो फिर दस बच्चे मिलकर अपने मां-बाप को क्यों नहीं पाल सकते.....हमें अपने पेरेंट्स का हर वक्त ख़्याल रखना चाहिए....उनकी जरुरतों को कैसे भी हो पूरा करना हमारा फ़र्ज है.... आप की नज़र में निदा फ़ाज़ली की एक बेहतरीन रचना पेश करने का मन है....उम्मीद है आपको पसंद आएगी....मुझे बेहद पसंद है....क्योंकि बहुत कुछ कहती हैं ये लाइनें....


    तुम्हारी कब्र पर मैं...फ़ातेहा पढ़ने नहीं आया...
    मुझे मालूम था.....तुम मर नहीं सकते......
    तुम्हारी मौत की सच्ची ख़बर जिसने उड़ायी थी....
    वह झूठा था.......वह तुम कब थे.........
    कोई सूखा हुआ पत्ता हवा से हिल के टूटा था....
    मेरी आंखें तुम्हारे मंज़रों में कैद हैं अब तक
    मैं जो भी देखता हूं.....सोचता हुं......वो वही है..
    तुम्हारी नेकनामी और बदनामी की दुनिया थी
    कहीं कुछ भी नहीं बदला........
    तुम्हारे हाथ मेरी उंगलियों में सांस लेते हैं.....
    मैं लिखने के लिए जब भी कलम उठाता हूं
    तुम्हें बैठा हुआ में अपनी ही कुर्सी में पाता हूं
    बदन मेरे जितना भी लहू है........
    वो तु्म्हारी लगजि़शों नाकामियों के साथ बहता है..
    मेरी आवाज में छिपकर तुम्हारा जेहन रहता है....
    मेरी बिमारियों में तुम...मेरी लाचारियों में तुम...
    तुम्हारी कब्र पर जिसने तुम्हारा नाम लिखा है..
    वो झूठा है.....वो झूठा है.......वो झूठा है........
    तुम्हारी कब्र मे दफ़्न हूं...तुम मुझमें जिंदा हो...
    कभी फुर्सत मिले तो फातेहा पढ़ने चले आना....
                           निदा फ़ाज़ली,शायर 

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