Friday, December 3, 2010

औंस


नंगे पांव औंस पे चलना
उनका संवरना उनका मचलना
मौसम भी ये कैसा मौसम
शायद मिलना और बिछड़ना
देखा उनको सुबह सवेरे
रात कटी न कटे न अंधेरे
लब पे तबस्सुम जुल्फ़ घनी सी
आंखों मे काजल रुत बदली सी
देख के उनको रुक जाए मौसम
अब तो शायद फिर जाए मौसम
        आलम इंतिख़ाब........

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