Tuesday, December 7, 2010

खोया-खोया चांद


चचा बतूलै का मुड आज कुछ उखड़ा सा लग रहा था....मुझे देखते ही घूरने लगे...थोड़ी देर बाद चुप्पी तोड़कर बोले अब तुम क्या सरकारी आदमी हो जो तुमसे बैर करुं....चचा क्या बात है..चची ने बेलन छाप दिए क्या....अबे बात क्या होगी....मेरा दिमाग खराब हो रिया है....कसम उड़ानझल्ले की....क्यों चची ने आज.....अबे चुप कर.....जब देखो चची...चची...क्या चची..चची लगा रिया है.....बात दरअसल यूं है कि देश में रिश्वत और भष्ट्राचार बढ़ता ही जा रिया है.....लेकिन कोई कुछ करने को तैयार नहीं दिख रिया है....राजा ने इतने पैसे हजम कर लिए कि उसकी चौदह पुश्ते आराम से बैठ कै खाएं तो भी खजाना कम न हो.....बात तो एकदम सही है चचा...पर तुम ही कुछ क्यों नहीं करते हम सब तुम्हारे पीछे हैं.....ये बात सुनते ही चचा अपनी औकात में आ गए.....धमाका छाप तंबाकू मुंह के अंदर डालते हुए.....टूटी खटिया पर यूं उचक के बैठे मानो....सरकार इनकी ही बन गई हो......अब फैंकने की बारी चचा की थी....अरे में तो कै रिया हूं कि ऐसी सरकार किस काम की जो अपनी जनता की बार-बार हजामत करती रहे.....मैने कल ही प्रधानमंत्री को फोन लगा कै कैया कि बहुत हो गया सरदार जी अब तो .....डारेक्ट फोन मिला डाला चचा तुमने......पांडू चिल्लाया....और तो क्या.....तो फिर क्या कहा उन्होने चचा....मैने कहा....अबे कैना क्या था.....कैया कि चिंता मत करो....चचा....जल्द ही सरकार इस मामले पर एक कमेटी बैठाएगी.....बस चचा रहने दो.....बहुत हो गई...ये कमेटियां.....मेरी समझ में इनका झोलझाल नहीं आता....तुम ही.लगे रहो....में निकल पड़ा....चचा खिसिया उठे....और मेरा हाथ पकड़ कर कहने लगे.एक बात और में इसके खिलाफ भूख हड़ताल पे बैठने जा रिया हूं....अपनी चची से कईयो कि रात को तीन बजे खाना लेके आ जावे.....ठीक है...चचा...और ये भी कह दूंगा कि खाने में जहर मिला के ले आए...कब तक पकते रहेंगें तुमसे.....कहकर में जोर से भागा......
                                                     आलम इंतिख़ाब

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