Tuesday, December 14, 2010

लम्हा...............


 पकडूं में उनका हाथ और साये को थाम लूं
रुख़सती का वक्त है, बस उनका नाम लूं
बागे-ए-वफ़ा में जिन्दगी गुज़ारी थी उम्रभर
छूटा नहीं था कोई भी लम्हा तेरे बगैर
ये कौन सी है जुस्तजू ये कौन सा है फ़ैसला
ये कौन सी है आरजू़ ये कौन सा हौंसला
आज भी तुम यक़ीनन हो वही 'इंतिख़ाब'
लब भले ख़ामोश हैं कह रहा है आफ़ताब
तुम हमेशा साथ हो तो में रहूंगा बेफिक्र
में तुम्हारी शायरी तुम मेरा अस्क़ाम हो
जो भी हो अब वायदा ये हो ऐ नाज़नीन
तुम मेरी और में तुम्हारा हूं अशफ़ाक़

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