Thursday, December 16, 2010

तासीर........


लाखों में तुने मेरा इंतख़ाब किया....
ख़ुदा का शुक्र है कि तुने ये एहसान किया...
में जी रहा था अब तक गर्दिशों में कहीं
मैं जानता हूं तू है... तो सबकुछ है यहीं
न उजाले की थी उम्मीद मुझे..
न रोशनी का ही सबब......
मेरी तन्हाई में जो....तुने रुख़सार किया...
तेरा करम है तुने एतबार किया.....
न मेरी मंजिल थी कोई.... न कोई रहबर
न आरजू थी कोई... न ही कोई इश्रत
अब तो जीने में कोई शिकवा नहीं....
तेरा साया है तो फ़िर कोई गिला भी नहीं.....



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