Monday, December 6, 2010

हौंसला

मैने सुना कि तुम रात सो नहीं पायी....
सारी रात देखती रहीं मेरा ही ख़्वाब
चेहरे पे तुम्हारे दिखाई दी.......
शबनम की कुछ बूंदें.....और चमक
ये क्या मेरा नसीब था या फिर.....
तुम्हारा बेपनाह हुस्न.......कुछ भी हो..
अब जब राज खुल ही गया...तो फिर
मुझसे नजर क्यों चुरा रही हो.......क्या
हौंसला नहीं है....कुछ कह पाने का.....
क्या हौंसला नहीं है....जमाने से लड़ जाने का
देखो शाम ढलने को है....शमां जलने को है..
कुछ तो कह दो...ताकि मैं भी देख सकूं...
तुम्हारा ख्वाब..में सोना चाहता हूं सारी रात...
                          आलम इंतिख़ाब अंसारी

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