Wednesday, December 15, 2010

एहसास.....


काली जुल्फें...आंखें कत्थई....
होंठ शबनमी...लगते हैं....
दूर कहीं एक उजला चेहरा
पास से हमदम लगते हैं....
रातें लम्बी....बात मुख़्तसर..
देखते हैं..उनको जी भर....
बस ये उनका कहना है...
कोई तो है जो अपना है...
कभी तो ख़ुशबू महकेगी
कभी तो चांदनी फैलेगी...
बात यहीं तक हो तो शायद
वो सह लेते हैं इंतिख़ाब
तु जो कह दे बात सही है
तेरा हर अल्फ़ाज़ सही है...
कोशिश अब मुमकिन है कि
मैं न हो जाउं आवारा कहीं..
तेरा साथ मिले तो शायद
मैं न बन जाउं नूर कहीं......



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