Monday, December 6, 2010

ख़ामोशी


किसी के लब जो ख़ामोश हों
बात कह जाते हैं..........
कहीं अजनबी भी कभी...
अपने हो जाते हैं.......
सलीका हो तो चलूं तेरे साथ वरना
हम तो बात पर ही....
मुतमईन हो जाते है....
वे तारे झोली में फैलाके दे रहे थे मुझको
हाथ फैलाउं भी तो कैसे....
वे जख़्म भी दे जाते हैं...
मेरी जरा सी भी बात उन्हे गंवारा नहीं
वो हर बात में अपनी ही कहे जाते हैं..
मेरा तसव्वुर है...या फिर मेरा माज़ी अपना
कोई उन्हे समझाए तो वो क्यूं बड़बडाते हैं...
                      आलम इंतिख़ाब





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