Sunday, January 2, 2011

मंहगाई डायन....


बढ़ती मंहगाई के लिए आपकी मीडिया ही जिम्मेदार है भाई साहब...मंडी में तो प्याज़ मंहगी हो न हो आप जरुर मंहगी करवा देते हो..क्या जरुरत है आपको मंहगाई का राग अलापने की..क्या आप सरकार पर दबाव बनाते हो कि मंहगाई कम करो...नहीं न...तो फ़िर...क्यों टीवी पर दिनभर चिल्लाते रहते हैं कि प्याज़ मंहगी...टमाटर मंहगा....नाई की दुकान पर बढ़ती मंहगाई को लेकर चर्चा चल रही थी.. मेरे ये कहने पर कि आजकल तो हर चीज़ मंहगी होती जा रही है...नाई मुझ पर बरस पड़ा..
     बाल कटवाकर जब मैं वापस घर आया तो उसकी बातों ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया..मैने महसूस किया कि कहीं न कहीं उसकी बातों में सच्चाई जरुर है....दुकानदारों को जैसे ही पता चलता है कि हम तो टमाटर 30 रु.बेच रहे हैं लेकिन मीडिया वाले उसे 60 रु. बता रहे हैं वो फौरन एक्टिव हो जाते हैं और फिर मंडी में तेजी का बहाना बनाकर 30 से सीधा 60 कर देते हैं... उपर से तर्क ये कि भई न्यूज़ देखा करो दाम बढ़ गये हैं...मैं समझता हूं कि मंहगाई की ख़बर दिखाने या छापने से पहले कोई भी रिपोर्टर मंडी में जाकर मोल भाव करता हो ऐसा नामुमकिन है...लेकिन फिर भी अपनी जिम्मेदारी से बचते हुऐ मीडिया सारा ठीकरा सरकार के सर फोड़ देता है।
      अगर मीडिया मंहगाई को लेकर वास्तव में संजीदा है तो उसे अपने आपको बदलना होगा उसे सनसनी फैलाने की बजाय हक़ीकत आम जनता को बतानी होगी...होता क्या है कि अक्सर टीआरपी के चक्कर में मीडिया उल-जलूल ख़बरों को प्राथमिकता दे देते हैं वे गहराई से ये नहीं सोचते कि इसका आम लोगों पर क्या असर पड़ेगा...उनका तो कुछ नहीं जाता लेकिन आम लोगों की जेब जरुर कट जाती है...इतना बड़ा देश है भारत वो भी कृषिप्रधान देश.....इस देश से तो लाखों टन सामान गैर मुल्कों में निर्यात किया जाता है...यहां कमी की बात करना अपने आपको धोखे में रखना है।
     हमारे देश में आम रिवाज़ है कि हम दूसरे की कमियां तो निकाल लेते हैं लेकिन खुद की बात आऐ तो हमें बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं होता...यही आज की मीडिया का भी हाल है...अपनी चादर फटी है लेकिन दूसरे की चादर फाड़ने को बेताब है....क्या इसके लिए कुछ किया नहीं जा सकता? आज हमारे मुल्क में करोड़ों लोगों को दो जून की रोटी भी मयस्सर नहीं होती...क्या मीडिया को उनकी भूख दिखाई नहीं देती...?
         मीडिया में इतनी ताकत है कि अगर वो चाहे तो मंहगाई को कुछ पल में ही काबू में करवा सकता है...वो अगर यह कह दे कि मंहगाई सरकार नहीं बल्कि जमाखोर और मुनाफ़ाखोर बढ़ा रहे हैं...उनके ठिकानों पर छापे मार कर इसे भी एक्सक्लूजिव बना कर टीआरपी बटोरी जा सकती है....आखिर आम लोग भी तो जानना चाहते हैं कि मंहगाई का जिन्न अचानक ही क्यों बाहर निकलता है....इसके जिम्मेदार आखिर हैं कौन...किस-किस की इसमें भागीदारी है...केवल सरकार को कोसने से कुछ नहीं होने वाला...क्योंकि सरकार मौसम की तरह आती जाती रहती हैं....पहले तो हक़ीकत की गहराई में उतरना होगा....कारण तलाशने होंगे...रिसर्च करनी होगी...तब जाकर कुछ निर्णय लिया जाऐ तो अच्छा है...मगर यूं हीं टीआरपी के चक्कर में रहे तो लोग ख़बरों से नफ़रत करने लगेंगे जिसका खामियाजा मीडिया को ही भुगतना पड़ सकता है।

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