Thursday, March 31, 2011

कलमा-ए-तय्यैब पर हो अमल.....


इमामे-हरम के दौरा-ए-हिंदुस्तान को आलमे-इस्लाम के नज़दीक निहायत अक़ीदत व एहतराम दिया गया... इमामे-हरम डा.शेख़ अब्दुल रहमान अस सुदैस के दौरा-ए-हिंद को मुख़्तलिफ़ उमूर की बुनियाद पर हिंदुस्तान में इज़्जत और तौक़ीर की निगाह से देखा गया। अपने क़याम के दौरान हिंद-सउदी ताल्लुकात बेहतर बनाने और हिंदुस्तानी मुसलमानों को वैहदानियत और रिसालत के परचम तले मुत्तहिद वमुअज़्जम रहने और इस्लामी जब्ते-हयात के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारने के जो जरुरी पैग़ामात दिए,इनकी बुनियाद पर बेसाख़्ता ये बात कही जा सकती है कि ये दौरा न सिर्फ़ उन लोगों के लिए जो मेजबानी के फ़राइज़ को अंजाम दे रहे थे या उन मुस्लिम इदारों में जहां भी वे तशरीफ़ ले गए उनके लिए तारीख़ी रहा।
     इमामे-हरम मक्की इससे क़ब्ल भी ज़मीने-हिंद पर तशरीफ़ ला चुके हैं,लेकिन डा.शेख़ अब्दुर रहमान अस सुदैस का ये सफ़र इसलिए भी यादगार और तारीख़ी कहा जाएगा कि इसकी हर-पल ये कोशिश रही कि मसलकी इख़्तलाफ़ात को फरामोश करके कलमा-ए-तैयबा पर इमानो-अक़ीदा रखने वालों को एक ही प्लेटफार्म पर लाकर खड़ा कर दिया जाए और तमाम इख़्तेलाफ़ की दीवारों को मुनहदिम कर दिया जाए। उन्होने जमियत उलेमा,जमियत-एहले-हदीस और जमात इस्लामी जाकर यही पैग़ाम देने की कोशिश की।
     इमामे-हरम ने देवबंद में जाकर भी जियारत की औऱ कई लाख अक़ीदतमंदों को ख़िताब करते हुए इस नतीजे पर पंहुचे कि हिंदुस्तान में अपने मजहबी क़ायदीन के लिए जो जोश और अक़ीदत पायी जाती है,वो कैफ़ियत दुनिया के किसी भी हिस्से में नज़र नहीं आती। इमामे-हरम ने अपने तरजो अमल से मुसलमान-ए-हिंद को जो पैग़ाम देने की कोशिश की है,इसे समझने के लिए मुख़्तलिफ़ मक्तबे फिक्र के उलेमा,क़ारी,अकाबरीन को सर जोड़कर बैठने की ज़रुरत है। और यही वक्त का तक़ाजा है,इस एक नुकाती फार्मुले पर गौर करने की अहम ज़रुरत है....चूंकि अल्लाह एक है और जो पैग़ाम और जैसी ज़िंदगी हमारे हुजूर सल्लाहुअलैयही वसल्लम ने इख़्तयार की वो निहायत ही क़ाबिले दाद है....अल्लाह के रसूल ने अपनी ज़िंदगी में न जाने कितनी तकलीफें बर्दाश्त कीं लेकिन कभी भी हिम्मत नहीं हारी....जिसका नताइज़ है कि आज इस्लाम आलमी दुनिया में अपना परचम लहरा रहा है। इमाम-ए-हरम ने अपने ख़ुतबे में मुसलमानों को जो नसीहतें फराइम की वो भी वाकई काबिले दाद हैं....उनके ख़ुतबे पर हर मुसलमान को इत्तेफ़ाक होना चाहिए क्योंकि आख़िरत की दुनिया में अल्लाह के आगे हमें अपनी दुनियावी ज़िंदगी का हिसाब देना है। सभी इदारों और तंज़ीमों के साथ-साथ मुख़्तलिफ़ अफ़कार और नज़रियात रखने वाली ज़मातें हुकूमत के लिए माज़ी की तल्खियां भुलाकर कम से कम मुश्तरका प्रोग्राम के ज़रिए मंज़िल तक पंहुच सकती है। तो फिर आखिर हम क्यों नहीं....अपने 2 मसलक पर क़ायम होते हुए सिर्फ़ मसायल पर मुत्तहिद क्यों नहीं हो सकते।
    इमामे-हरम के प्रोग्राम इत्तहाद को न सिर्फ़ हिंदुस्तान के तनाज़ुर में बल्कि बर्रे-सग़ीर हिंदो-पाक दुनिया-ए-अरबो-अज़म और बैनुल-अक़वामी सतहों पर हमारी सताइश करते हुए हिंदो-अरब के बेहतर मुस्तक़बिल का इशारा भी किया है।शहर मक्का में हज के दौरान लाखों जायरीन को जो सहुलियात फराइम की जाती है उसमें वहां की हुकूमत की जितनी भी तारीफ़ की जाए वो कम है....अगर यही सिलसिला जारी रहा तो सउदी से मुसलमानों के रिश्ते में मजबूती बरकरार रहेगी। इसी तरह बैनुल-अक़वामी सतह पर उभरने वाली एक बड़ी कुव्वत की हैसियत से हिंदुस्तान को भी सउदी अरब से दैरिना रिश्तों का लिहाज़ रखते हुए इसके तहफ़्फुज और तामीर में अहम किरदार अदा करना होगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि इमामे-हरम का ये तारीख़साज़ दौरा सरज़मीने-हिंद को देर तक याद रहेगा,हालांकि अब ये माज़ी का अहम हिस्सा हो चुका है।
     
     

Tuesday, March 29, 2011

उप्स..माई फेवरेट...


बस एक बार मुझे उससे मिलवा दे यार राजू.....क्या जबरदस्त एंकर है भाई...बिल्कुल हिरोइन माफ़िक....बोलती है तो लगती है जैसे फूल झड़ रहे हों....यार मेरा कैसे भी हो अपने चैनल में जुगाड़ करवा दे....तू बहुत लक्की है भाई... कसम से....यार कुछ तो कर...कम से कम उसे देखने का मौका तो मिलता रहेगा...अबे यार कुछ नहीं तू भी फालतू में.....अबे तू इनकी सच्चाई नहीं जानता...बाहर से कुछ अंदर से कुछ....नहीं यार हर कोई एक जैसा नहीं होता....
    राजू और मिलन पक्के दोस्त थे.....मिलन एक चैनल में ड्राइवर था....अक्सर एक दुसरे से मिलते तो एक दूसरे के बारे में बातें किया करते....राजू को मिलन के चैनल में काम करने वाली एंकर तान्या बहुत पसंद थी...जब भी तान्या कोई बुलेटिन करती राजू उसे देखना न भूलता....यूं तो उसके चैनल में भी कई एंकर थीं लेकिन उसे लगता कि तान्या की बात ही कुछ और है....और एक दिन अचानक उसकी किस्मत का दरवाजा खुल गया.....जब उस चैनल में मिलन ने उसे नौकरी पर रखवा दिया....रात काटे नहीं कट रही थी राजू की...रात भर सोचता रहा कि सबसे पहले जाते ही तान्या का दीदार करुंगा....
   अरे राजू तुम शूट पर निकलो जल्दी....ओबी ले जाओ फटाफट... पास के इलाके में जो झुग्गी बस्ती है वहां जबरदस्त आग लग गई है.....इनपुटहेड ने कहा...जी सर..अरे शंभु रुको ज़रा....मैं कुछ सामान भूल आईं अंदर....जी मैडम...अरे ड्राइवर कौन है...राजू है....कौन राजू....जी नया आया है....ओके...चलो....कब तक पहुचेंगें.... मैडम यही कोई दो घंटे में...आगे की सीट पर बैठी तान्या बोली....ओके....पीछे की सीट पर ओबी इंजिनियर और कैमरामैन शंभू बैठे थे....एसी में भी पसीना आ रहा था राजू को....
   नमस्कार...आप देख रहें हैं....और मैं हूं तान्या....इस इलाके में लगी जबरदस्त आग ने एक बार फिर से प्रशासन की पोल खोल दी है....लगातार लाइव दे रही थी तान्या....दूर से ओबी में बैठा राजू उसे एकटक निहार रहा था....ये जली लाशें बतला रही हैं कि कितना दर्दनाक मंज़र रहा होगा यहां...चेहरे पर ग़म लिए लगातार एंकरिंग कर रही थी तान्या....यार अंदर से भी कितनी अच्छी है ये....कितना ग़म महसूस कर रही है....अंदर ही अंदर सोच रहा था राजू...तभी अचानक...चलो यार हो गया....ये सब फालतू का है....आग लग गई...ये हो गया वो हो गया....ये सब गरीबो के धंधें हैं...हमें क्या...इनको खुद ही अपनी ज़िंदगी जीना नहीं आता....कीड़े-मकोड़ों की तरह रहते हैं....कितनी बदबू है यहां अगर कुछ देर और रुकी तो बेहोश हो जाउंगी....
    राजू को लगा जैसे किसी ने उसके सीने में ख़ंजर उतार दिया हो....परदे पर मासुमियत दिखाने वाली इतनी पत्थरदिल होगी उसे मालूम नहीं था....नफ़रत हो रही थी उसे उसके पास बैठने से....इतनी तेजी से गाड़ी दौड़ा रहा था कि तान्या भी डर गई....अरे ये क्या पागल हो क्या तुम...कैसे गाड़ी चला रहे हो....लग गया न डर मैडम...क्या मतलब...मतलब ये कि हम ग़रीबों को मरने से भी डर नहीं लगता आखिर हमारे पास जीने के लिए होता ही क्या है....क्या बकवास कर रहे हो तुम....बकवास...मैं बकवास कर रहा हूं...बकवास तो आप जैसे लोग करतो हो दिनभर....बेवकुफ़ बनाते हो लोगों को....तुम्हारा कोई इमान-धर्म नहीं...चकाचौंध की ज़िदगी में तुम इंसानियत तक को भूल जाते हो...तुम आफिस चलो अगर तुम्हे नौकरी से न निकलवा दिया तो मेरा नाम....अरे छोड़ो मैडम आप क्या निकलवाओगी हम खुद ही छोड़ देंगे ये नौकरी....ऐसी जगह काम नहीं करना जहां....तुम जैसे लोग रहते हों....

Friday, March 18, 2011

औक़ात.........


ये सब उस कमीनी का किया धरा है,अगर वो न होती तो न मेरी कुर्सी खतरे में होती और न ही कुमार मुझसे निगाहें फेरता....अरे कितना चाहता था वो मुझे....मेरा कितना ख़्याल रखता था तुम्हे तो सब मालूम है। मुझे एंकर बनाने में कितना बड़ा हाथ है उसका शायद तुम नहीं जानती....किस-किस से नहीं लड़ा वो मेरी ख़ातिर लेकिन उस चुड़ैल के आते ही बदल गया वो इसने न जाने क्या जादू कर दिया कुमार पर... वो मेरी तरफ़ देखता तक नहीं....यहां तक कि मुझसे बोल भी नहीं रहा कितना बैचेन हूं मैं आजकल...अरे मुझसे प्यार न करे मगर मुझसे बात तो कर सकता है। एक ही सांस में बोले जा रही थी कुसुम.....देख कुसुम इसमें गलती तेरी भी है....कितना समझा रहा था वो उस दिन मेरे सामने तुझे....अरे तू एंकर है....कोई चव्वनी छाप नहीं....कई बार कुमार ने मुझसे खुद कहा कि समझाओ कुसुम को ये सब बुरा लगता है मुझे....हर किसी से इतना....अरे कोई तो मौरल वैल्यू होनी चाहिए इंसान की ये क्या हर किसी के साथ....बस-बस रहने दे तू भी उसी का फेवर कर रही है....चुप करा दिया रोशनी को....जाओ अपने बुलेटिन पर ध्यान दो टाइम हो रहा है।
      गहरी दोस्ती थी कुसुम और रोशनी में....दोनों ने एक साथ सवेरा चैनल को ज्वाइन किया था। रोशनी की किस्मत अच्छी थी उसे कुछ दिनों बाद ही एंकरिंग का चांस मिल गया,लेकिन कुसुम न्यूज़ डेस्क पर ही काम करती रही। लेकिन फ़िर भी दोनों की दोस्ती बरकरार रही। रोशनी को देख-देख कर कुसुम को भी एंकरिंग करने की चाहत होने लगी...लेकिन काफ़ी कोशिशों के बाद भी उसे चांस नहीं मिल पा रहा था। भले ही वो हर किसी से घुलमिल कर बात करती हो लेकिन उसका यही एट्टीटयूड उसकी राह का रोड़ बन रहा था। रोशनी लगातार बेहतर एंकरिंग कर रही थी,कुसुम न चाहते हुए भी कभी-कभी उससे एंकर बनने की बात कह डालती।
      धीरे-धीरे उसने भी रोशनी की राह पकड़ ली,वीओ करना शुरु कर दिया लेकिन आवाज़ में दम नहीं था। रोशनी से सीख-सीख कर रोजाना वीओ करने लगी। कुछ दिनों बाद उसकी आवाज में थोड़ा सुधार हुआ लेकिन इतना नहीं कि वो वीओ कर सके। और एक दिन तो बवाल मच गया जब एक पैकेज का वीओ कुसुम ने कर डाला एडीटर भड़क गया और उसके वीओ करने पर रोक लग गई। अरमान एक ही झटके में टूट गए....
      लेकिन उसकी किस्मत में शायद एंकर बनना लिखा था,कुमार नाम के एक प्रोग्रामिंग प्रोडयूसर को नया कंसेप्ट सौंपा गया....कुसुम को जैसे ही इस बात की भनक लगी....वो एक्टीव हो गई...आखिर रोशनी को एंकर बनाने में कुमार का ही तो हाथ था....वो इस मौके को खोने नहीं देना चाहती थी....वो कुमार के आगे-पीछे घुमने लगी...हल्का प्यार का इशारा देकर उसने कुमार से बातचीत का सिलसिला काफी बढ़ा लिया...कुमार आप ही मेरा सपना पूरा कर सकते है....मेरी दिली तमन्ना है कि मैं भी एंकर बनूं आप ही बताइए क्या कमी है मुझमें क्या मैं खुबसूरत नहीं हूं....क्या मैं टेलेंटेड नहीं हूं....मुझे एक चांस दे दिजिए....में आपका ये अहसान सारी ज़िंदगी नहीं भूलुंगी....मैं वक्त आने पर आपके लिए अपनी जान भी दे सकती हूं.... उधर कई नई एंकरों के ओडिशन में कुमार ने कुसुम का भी ओडिशन करवा दिया....और इस बात पर जोर दिया कि कुसुम का न्यूज़ सेंस काफी अच्छा है....औऱ हमें नई एंकर की बजाए अपने इनहाउस को प्रमोट करना चाहिए ताकि और लोग भी बेहतर काम कर सकें।
     सर मैं कह रहा हूं न आप मुझपे विश्वास किजिए....मैं ज़िम्मेदारी लेता हूं उसकी....कच्चा घड़ा है सर वो अभी रोशनी को देखिए वो भी तो मेरे ही सामने....ठीक है कुमार लेकिन तुम....कहीं भावनाओं में बहकर या फ़िर कुछ और.....नहीं सर मेरा एसा कुछ नहीं है....रोशनी के बाद मैं चाहता हूं कि कुसुम को भी चांस दिया जाए....नई लड़की है जोश से काम करती हैं...बेहतर कर सकती हैं....पर कुमार...सर मेरे उपर छोड़ दिजिए आप....ठीक है उसका ओडिशन लो और मुझे दिखाओ....जी सर.....देखो अब बाजी तुम्हारे हाथ में है....अगर तुम...पास हो गईं तो.....कुमार मैं तुम्हे कैसे शुक्रिया अदा करुं....शुक्रिया बाद में अदा करना पहले रियाज़ करना शुरु कर दो....रोजाना चार से पांच घंटे तक... मैं तुम्हारी हेल्प करुंगा....कुमार.... मैं चाहती थी कि इस संडे को हम कहीं काफी पीने चलें तो....ठीक है चलते हैं अगर कुछ काम न निकला तो....अब मैं चलता हूं...रियाज़ पर फोकस कर दो..डू एंड डाई....ओके.....सर ये हैं ओडिशन....अच्छा है....इतना भी बुरा नहीं है चल जाएगी....कब से ओपनिंग है प्रोग्राम की....बस सर नेक्ट वीक से... ठीक है....अच्छा करो....
     प्रोग्राम चल निकला....एक फोटो और खींच न यार घर मैं दिखाना.... सबको दिखाना...अरे कुसुम अब तो तुम हमें भाव भी नहीं दोगी...एंकर जो बन गई हो....एक पुराना ईंटर्न चिल्लाया...नहीं यार कैसी बात करते हो तुम... कैसे भुल जाउंगी तुम्हे.....धीरे-धीरे वक्त बीतता गया.....देखो कुसुम तुम्हारी शिकायत आ रही है कि तुम टीपी रीड नहीं करती हो....अपना ध्यान काम की बजाए अपना रुतबा दिखाने में लगी रहती हो....फोटो खिंचवाने का क्या मतलब है...तुम अब एंकर हो...कुछ तो सोचो.....इस तरह सब से मिलना-जुलना ठीक नहीं रोशनी को देखो सीखो कुछ उससे....मिलो लोगों से... लेकिन कुछ फासला तो हो ये क्या कि सबसे.....समझी कुछ.....
     ये सब क्या हो रहा है कुमार इतनी फ़ंबलिंग क्यों जा रही है प्रोग्राम में.....सवाल क्यों नहीं पूछ पाती ये रिपोर्टर से...तुम पीसीआर से सवाल क्यों नहीं बताते उसे.....सर मैं कोशिश करुंगा....देखो बहुत हो गया कुसुम अब सुधर जाओ वरना.....अरे वरना क्या एंकरिंग से हटवा दोगे........ये क्या सुन रहा हूं मैं कुमार... तुम कुसुम से बात नहीं करते हो...किसने कहा...कुसुम आई थी मेरे पास....कह रही थी कि सर मुझसे बात नहीं कर रहे हैं....देखो ये सब नहीं चलेगा यहां... ये सब बाहर करो जो भी करना है....
    सर ये माही हैं.....एंकर हैं.. अब ये ही प्रोग्राम करेंगी....औऱ कुसुम....सर उसे कितना समझाया मैने पर वो मानने को ही तैयार नहीं है.....मैं प्रोग्राम को कचरा बनते देखना नहीं चाहता.....ठीक है जैसे तुम्हारी मर्जी....बेहतर करो....मुझे दवाब न देना पड़े....सर बहुत अच्छा किया आपने कुसुम के साथ यही होना चाहिए था.....घमंडी कहीं की....हालांकि मेरी दोस्त है पर पता नहीं किस इगो में रहती है.....आजकल बैचेनी बढ़ गई है उसकी.....मुझसे तो नज़रें तक नहीं मिला पा रही है....आजकल....खैर छोड़ो....मुझे माही के साथ शूट पर निकलना है फ़िर मिलते हैं.....  

Tuesday, March 15, 2011

मां.....


हो दुनिया पराई तो कुछ ग़म नहीं
इस दौलतो-शोहरत में कुछ दम नहीं
अगर कुछ ज़मीं पर है अनमोल
वो मां है....मां है...सिर्फ़ मां है...
एक तस्वीर धुंधली, मैली सी चादर
सिमटा है उसमें मेरी मां का आंचल
वो बचपन की यादें, वो बेपरवाह लम्हे
दरख़्तों के पत्ते,पुराना सा आंगन
वो गांव की यादें,वो पैदल के रस्ते
निकलते थे जब हम अपने घर से
मेरी मां की उंगली हाथों में होती
वो ऐसे मुझे ले के चलती थी जैसे
ख़्वाबों की उसके तामीर हूं जैसे
जो बदला ये मौसम,बदला सफ़र है
मैं हूं इस शहर मैं वो तन्हा मग़र है
है अब भी अजब सी कशिश मेरे दिल में
मेरी मां के जैसा कोई भी नहीं है...

Monday, March 14, 2011

तस्वीर....


नज़र-नज़र में फ़र्क होता है...
यूं हीं नहीं हर कोई बदगुमां होता है।
तुझे एहसास हो तो मिल शायद...
देखना कौन क्या पाता और क्या खोता है।
तेरी तस्वीर मुक्ममल थी मेरे सीने में
मेरे ज़ख्मों पे अब भी कोई हंसता है।

उम्र यूं हीं गुज़ार दी उसने
कभी हंसता तो कभी रोता है।

ग़मों की आंधियों में वो बह न जाए
यही सोचके मेरा दम निकलता है।

वो बात करता है तो,फूल जैसे झड़ते हैं
तेरे एहसास ने ही उसको ज़िंदा रखा है।

कोई जो आए इस पहलू में आलम
मेरे हमदम ने उसे संभाल रखा है।

Sunday, March 13, 2011

तड़प...


यक़ीनन तड़प तेरे सीने में भी होगी
मुझसे बिछड़ जाने की....
यूं ही तो कोई जाम नहीं छलकता
य़ूं ही तो कोई पैमाना नहीं झलकता।
गुजिश्ता कुछ दिनों से तुम सो नहीं पायीं
मेरी आवारगी और अपनी तन्हाई में।
सोचते-सोचते रात कब काट लेती हो
तुम्हे इसका इल्म हो न हो पर मुझे तो है।
मुझे मालुम है तुम्हारी सारी बेचारगियां
आख़िर तुम किस-किस से लड़ती।
और वो कमबख़्त वक्त ही ऐसा था जब
तुमने और हमने अपनाई अलग-अलग राहें।
ख़ैर,कोई बात नहीं खुशी तो है इस बात की है
कि तुम ज़िंदा हो यक़ीनन मेरे दिल में हमेशा के लिए....


Friday, March 11, 2011

शार्टकट....


क्या बकवास कर रही हो तुम....मुझे ऐसी बातें बिल्कुल भी पसंद नहीं हैं....तुम इतना गिर सकती हो मैने कभी सपने में भी नहीं सोचा था....क्यों.. क्या सपने देखना ही बंद कर दिए है तुमने...और हां... ज़ाहिर सी बात है अब तुम एंकर तो हो नहीं जो बड़े-बड़े सपने देखो वापस अपनी जगह आ गए....जहां थे वहीं पंहुच गए एक ही झटके में...तो क्या हुआ...ज़िंदगी खत्म तो नहीं हुई....फ़िर से ट्राई करुंगा...और बेहतर करने की कोशिश करुंगा….अरे कब तक...ट्राई करते फिरोगे...मुझे देखो एक ही झटके में कहां से कहां पंहुच गईं...और सुनो कैरियर की ख़ातिर मैं कुछ भी कर सकती हूं..कुछ भी....साइड प्लीज़....
    तिलमिलाकर रह गया मानस....किनारे की कुर्सी पर धम्म से जा बैठा....दोनों हाथों से अपना सिर पकड़े उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि टीना कैरियर की खातिर अपना सबकुछ दांव पर लगा देगी...दोनों ने साथ-साथ मिडिया कोर्स किया था....एक दूसरे को चाहते भी थे दोनों.... इंटर्न से शुरुआत करके धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे...मानस काफ़ी टेलेंटेड था...जो भी काम करता परफेक्ट करता....ऐसा कि लोग कहते कि बंदा बहुत आगे जाएगा...जबरदस्त जर्नलिस्ट बनेगा एक दिन....अपने बेहतरीन लुक और दिलकश आवाज़ की बदौलत चैनल में जल्द ही उसके एंकर बनने की सुगबुगाहट शुरु हो गई थी....जो भी उससे मिलता कहता अरे यार तुम एंकरिंग में ट्राई करो काफ़ी अच्छा कर सकते हो तुम...जी कोशिश कर रहा हूं....
    किस्मत ने जल्द ही मानस का साथ दिया...चैनल में नए एडीटर की इंट्री हुई....पहली ही नज़र में भा गया मानस....जिसके पास भी यूनिक आयडिया हो मेरे पास लेकर आए...मैं कुछ नए और बेहतर प्रोग्राम बनाना चाहता हूं....सबको चांस देना चाहता हूं....चैनल को आगे बढाने के लिए आपको तैयार हो जाना चाहिए....पुराना ढकोसला बिल्कुल नहीं चलेगा.....आई विल्ल चेंज एवरीथिंग....अंडरस्टेंड....किसी को भी डरने की कोई ज़रुरत नहीं सीधा मेरे केबिन में आकर मुझसे बात करे...नए आयडिया देने वालों को प्रमोट किया जाएगा....
    मानस....जी...किसने रखा तुम्हारा नाम...जी मेरी नानी ने....गुड....क्या करते हो....जी न्यूज़ डेस्क पर हूं.....आयडिया अच्छा है....और यूनिक भी....कब से काम कर सकते हो...जी जल्द ही....गुड...देखो मानस....अगर तुमने अच्छा काम करके दिखा दिया तो तुम बहुत आगे जाओगे....थैंक्यू सर....फ़िर जुट जाओ...और सुनो जिसे चाहो अपने साथ ले सकते हो... बोलो...जी...रोहित और टीना....बुलाओ....रोहित और टीना आप लोग तीनों...इस प्रोग्राम को संभालोगे....ओके सर....
   कड़ी मेहनत से प्रोग्राम चल निकला ऐसा कि इसकी गुंज पूरे चैनल में गुंजने लगी....टीआरपी में भी शामिल हो गय़ा प्रोग्राम....आउटपुट,इनपुट,प्रोग्रामिंग प्राडयूसर और सब-एडीटर की मीटिंग में.....टीना को भी चांस दे सकते हैं लुक काफ़ी अच्छा है उसका....नहीं सर मुझे नहीं लगता कि उसको न्यूज़ सेंस होगा....मैने ही उसका इंटरव्यू लिया था जब वो इंटर्न के लिए आई थी....उसे चांस नहीं दिया जा सकता....आउटपुट हेड रंजन बोला....उसके साथ दूसरे भी एक सुर में बोले....मानस.....जी मानस बेहतर कर सकता है....लेकिन ये सब आप पर डिपेंड करता है....और फ़िर मिटिंग में...देखो मानस में तुम्हे एक और ज़िम्मेदारी सौंप रहा हूं....इस प्रोग्राम की एंकरिंग भी तुम्हे करनी होगी ताकि प्रोडयूसर होने के नाते तुम बेहतर कर सको....चीज़ों को निकाल सको....जी सर...थैंक्यू....थैंक्यू वैरी मच....यस....कैबिन से बाहर निकल कर मुठ्ठी भींच कर एक साथ दस सिढ़ियां कूद गया मानस....
    शुरु हो गई एंकरिंग....कुछ दिनों बाद....मानस मजा नहीं आ रहा है....सर मैं क्या कर सकता हूं....मुझे एंकरिंग की प्रैक्टिस के लिए वक्त ही नहीं मिलता...पूरा दिन प्रोग्राम में लगा रहता हूं...कम-से-कम कुछ वक्त मिल जाए तो....ठीक है...कल मीटिंग में तय हुआ है कि तुम और टीना एक साथ एंकरिंग करोगे....ओके सर नो प्रोब्लम....
    और एक दिन....मानस तुम बहुत ज्यादा फ़ंबलिंग करते हो...ये सब नहीं चलेगा....तुम्हे कुछ दिन एकंरिंग से हटाया जा रहा है....फिलहाल तुम अपना पूरा ध्यान प्रोडक्शन पर दो ....उसके बाद तुम फ़िर से तैयार होकर वापसी करना मेरे ब्वाय....ओके सर....मायुस हो गया....मानस....यार मुझसे ज्यादा तो टीना फंबलिंग करती है....फ़िर...उसे क्यू नहीं.... रात भर सोचता रहा मानस...या इलाही ये माज़रा क्या है...कहीं आउटपुट हेड..तो नहीं है इसके पीछे...उसे शायद लगता हो कि ज़िंदगी घुसड़ गई...कलम चलाते-चलाते और कल का छोकरा एंकर बन गय़ा...लेकिन उसने तो खुद मुझे रिकमेंड किया था...आखिर चक्कर क्या है.... और फ़िर सर दस दिन पूरे हो गए....तो क्या... रुख़े लहजे में बोला एडीटर....देखो अब तुम एंकरिंग नहीं करोगे पूरा ध्यान प्रोडक्शन पर ही लगाओ....समझे....
     यार रोहित ये टीना मुझसे सीधे मुंह बात क्यों नहीं कर रही...कहीं न कहीं कुछ तो दाल में काला है....शक सही साबित हुआ....और एक सच ऐसा भी जिसे सुनकर उसके पांव तले ज़मीन खिसक गई....क्या कह रहे हो रोहित वो ऐसा कैसे कर सतती है....यार कैरियर की ख़ातिर कुछ भी कर गुजरेगी वो.... रोहित एक सुर में बताता चला गया कि कैसे वो रंजन से होते हुए आगे तक पंहुची...एक दिन जब तुम एडीटिंग में थे तो रंजन से उसने कहा कि सर मैं कुछ भी कर सकती हूं....कुछ भी बस आप एक मौका दिलवा दिजिए....कुटिल मुस्कान बिखेरते हुए चला गया था रंजन उस दिन और दो दिन बाद ही उसे....तू सही कह रहा है मेरे दोस्त....मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा है....में ही कुछ करता हूं....
    टीना मुझे तुमसे कुछ बात करनी है....हां बोलो....क्या ये सच है कि तुमने मुझे रास्ते से हटाने के लिए ये सब....हां तो क्या....यही तो पालिसी है....आगे बढ़ने की...और सुनो मेरी तरक्की की राह में जो भी आयेगा उसे मैं....जाते हुए पीछे से देखता रह गया मानस....कोई इतना भी गिर सकता है....
    सर ये मेरा रिजाइन है...कितना भरोसा करता था मैं आप पर....पर आप...क्या सिर्फ़ लड़कियां ही....क्या मतलब है तुम्हारा....मतलब ये कि अगर लड़कियां समझौता कर लें तो उन्हे टाप पर पंहुचाने में आफ जैसे लोग कोई कमी नहीं छोड़ते आखिर क्या ख़ता है मेरी....छह महीने हो गए हैं मुझे एंकरिंग से हटाए हुए क्या मैं अबतक इंप्रुव नहीं कर पाता जवाब दिजिए....क्या टीना में आप कोई बदलाव ला पाए नहीं न....किसी की मेहनत को क्यों नहीं देखते आप एक ही चश्मे से सभी को देखना चाहिए....लेकिन मैं हार नहीं मानुंगा.....एक दिन दिखा दुंगा सबको कि मैं क्या हूं....मेरे इरादों के नहीं रोक सकते आप जैसे लोग....ठंडी सांस भरकर निकल पड़ा मानस अपनी नई मंज़िल की तलाश में.....
    

Thursday, March 10, 2011

तलाश...


वो बेहद ख़ुबसूरत थी...इतनी खुबसूरत कि देखने वाला देखता रह जाए....उसके चेहरे पर एक अलग सी कशिश थी....बरबस हर किसी को अपनी और खींच लेने वाली....कोई 24-25 की उम्र होगी....सामने की बर्थ पर चुपचाप आईने को निहार रही थी...मैं काफ़ी देर तक उसे यूं ही देखता रहा...कुछ देर बाद मुझे अहसास हुआ कि उसे जैसे किसी से कोई भी मतलब नहीं है...उसने आहिस्ता से आईने को अपने जुट के बैग में दुबका दिया मानो वो कोई अनमोल चीज़ हो...कुछ देर बाद उसने मेरी तरफ़ निगाह डाली....मैने उसकी तरफ़ ऐसे देखा जैसे मुझे उससे कोई वास्ता ही नहीं....अचानक उसने अपनी चादर उठाई और उसमें ऐसे सिमट गई जैसे कछुआ अपने खोल में सिमट जाता है। रात गहरा चुकी थी मुझे नींद नहीं आ रही थी.....करवटें बदल-बदल कर और पानी पी-पी कर मेरा चैनो-अमन ग़ायब था।
     पुरानी यादों की परत एक-एक कर खुलती जा रही थी...याद आ गए वो सब लम्हे...वक्त कैसे गुजर गया कुछ पता ही न चला...परेशानी का सबब ये कि वक्त के साथ उम्र भी गुजर रही थी....अम्मी कहते-कहते थक गई....तौक़ीर मेरे मरने से पहले तुझे दुल्हा बने देखना चाहती हूं मेरे बच्चे....क्या नहीं है हमारे पास सबकुछ तो है...फ़िर...मां कि याद आते ही आंखों से सैलाब उमड़ आया....कितना प्यार करती थी मुझे मां....तीन बहनों का इकलौता भाई था....अब्बा के इंतकाल के बाद अम्मी ने जिस तरीके से हमें पाला....वाकई काबिले-तारीफ़ है....बहनों की शादियां अच्छे घरों में हुई थी और सब अमन से अपनी ज़िंदगी गुज़ार रहीं थीं....आखिर वे भी थक गईं....कहते-कहते शादी के लिए....लेकिन मैं अपनी ही धुन में सवार रहा....कैरियर बनाने की ख़ातिर मैने किसी की मानी ही नहीं....अब कैरियर है तो....शादी की उम्र नहीं....चालीस पार जाने के बाद शादी का क्या फ़ायदा....
     लेकिन ऐसा नहीं था कि गुफ़्तगु न होती हो शादी के लिए....रेहान भी तो कह रहे थे उस दिन जब मैं तक़रीब में ख़िताब कर रहा था....यार तौक़ीर तुझे बड़े ग़ौर से सुन रहीं थी अफ़साना मैडम.....अमा जाओ क्यूं मजाक़ कर रहे हो....छोड़ो भी ये सब....नहीं यार कुछ कशिश तो है उनमें....तू भी न....यार मुझे उनमें कोई दिलचस्पी नहीं है........मैं उनका बहुत एहतराम करता हूं...तो फ़िर कैसी हूर चाहिए तुझे...बता दूंगा जब मिल जाएगी....अमा कब मिल जाएगी....बस जब वक्त मुनासिब होगा...और अल्लाह को मंज़ूर होगा....
     आज पहली बार किसी ने मेरे दिल के दरवाज़े पर दस्तक दी है....कालेज में पढ़ाई से लेकर पढ़ाने तक न जाने कितनी लड़कियों से रुबरु हुआ पर किसी ने भी मुझ पर ऐसी छाप नहीं छोड़ी...नींद कोसों दूर थी....मेरे जेहन में पुराने ख़्यालात वाकये हो रहे थे....मुझे याद है वो दिन जब मैं तरन्नुम से मिला था...भोपाल में लेक्चर था और वो हैदराबाद से प्रोग्राम में शिरकत करने आई थी....उन्होने भी यही सवालात दोहराए थे हालांकि वो खुद तलाकशुदा थीं....मेरे पूछने पर उन्होने तफ़्सील से बताया कि कैसे उनके ख़ाबिंद ने उन्हे इस्तेमाल किया....पढ़ी-लिखी होने के बावजुद भी उन्हे कितना सहना पड़ा....उनकी बातें सुनकर शादी के नाम से और जी उचट गया....लेकिन अब महसूस होता है कि कोई तो होना ही चाहिए ज़िंदगी को अकेले गुजारना कितना मुश्किल है ये मेरा दिल ही जानता है....जब तक अम्मी ज़िंदा थी तो कोई फ़िक्र नहीं थी लेकिन उनके इंतक़ाल के बाद कितना अकेलापन महसूस होता है ये मैं ही जानता हूं...कभी-कभी तो लगता है कि ये पैसा और शोहरत किस काम की है जब हमें सुकून ही न मिले....
      पुरानी यादों में गोते लगाते हुए कब नींद आ गई मुझे एहसास तक नहीं हुआ...सामने देखा तो पाया कि वही ख़ुबसूरत चेहरा एक बार फ़िर से नज़रों के सामने था...जी चाह रहा था कि बस उसे देखता ही रहूं...न जाने क्यों उसके चेहरे से नजरें हटने का नाम नहीं ले रहीं थी....अचानक उसने अपनी आंखें खोली सामने मुझे देखकर भी उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ा मैं हैरान था....इसने पलकें तक नहीं झपकाईं...और....तभी उसने मेरी और देखकर कहा....जी सुनिए....देहली स्टेशन आ गया है क्या....नहीं अभी नहीं... मथुरा आया है....जब आयेगा तो.....जी शुक्रिया जब आए तो मुझे बता देना....जी बेहतर....कितनी मिठास है इसकी आवाज़ में.....अचानक मेरी नज़रें उसकी आंखों पर गईं.....मैंरे शरीर मैं पिन चुभ गए....ये तो....जी आप देख नहीं सकतीं...जी मैं नाबिना हूं...जी मेरा नाम नाज़ है और मैं टीचर हूं... अपने भाई के पास देहली जा रही हूं....स्कूल में छुट्टियां पड़ गई हैं...जी मेरा नाम तौक़ीर है...मैं प्रोफ़ेसर हूं देहली यूनिवर्सिटी में.....माशाल्लाह आप इतने बड़े ओहदे पर हैं....मेरा ख़्वाब भी प्रोफेसर बनना है....लेकिन अपनी आंखों की वजह से.....अरे नहीं ये क्या कह रहीं हैं आप.....बिना आंखों के भी आप बन सकती हैं कोई रुकावट नहीं है....बात करते-करते कब देहली स्टेशन आ गया मुझे पता ही न चला....जी आप कभी आइये हमारे घर... मैं स्टेशन पर अपने भाई से आपको मिलवाउंगी....जी ज़रुर....क्यों नहीं...स्टेशन आ चुका था.... भईया ये हैं तौक़ीर साहब हैं....इन्होने मेरा काफ़ी ख़्याल रखा सफ़र के दौरान....जी आपका बुहत-बहुत शुक्रिया....कोई बात नहीं....कहकर मैं चल पड़ा....
      जी सुनिए....जी कभी आइयेगा हमारे ग़रीबख़ाने पर... जी ज़रुर....जी आफका नंबर....ओके....शुक्रिया....अल्ला हाफ़िज़ कहकर मैं अपनी गाड़ी में बैठ गया....दिल में पता नहीं क्यों अजीब सा महसूस हो रहा था....उससे मिलने के बाद एक अधूरापन लग रहा था मुझे....उसकी आवाज़ अब तक मेरे कानों में गुंज रही थी...मैने तय कर लिया था कि उसके भाई की एक काल आने पर मैं उसके घर ज़रुर जाउंगा...बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था मैं उनकी काल का....
     गुजिश्ता दिनों बाद लेक्चर के वक्त अचानक नाज़ के भाई महबूब की काल आ गई.....जी सर कैसे हैं आप....जी अच्छा हूं आप बताएं....जी वो नाज़ आपसे मिलना चाह रही थी....शाम को आप घर आ सकते हैं....साथ में खाना खा लें तो बेहतर होगा....जी ज़रुर....एक पल गंवाएं मैने हामी भर दी....जैसे मेरे मन की मुराद पूरी हो गई हो....या अल्लाह...तेरा लाख-लाख शुक्रिया....तूने मेरे दिल के हाल को पहचान लिया है....अब बस मुझे इतनी हिम्मत दे कि मैं उसका हाथ मांग सकूं....
     काफ़ी अच्छा घर था महबूब का... एक्सपोर्ट का बिजनेस था उनका...नम आंखों से बता रहा थे वो.....कि उसके कई रिश्ते आए लेकिन नाबिना होने की वजह से बात नहीं बन सकी.... मैं अपने आप पर काबू कर रहा था....एक तो उम्र का फ़ासला कहीं ना न हो जाए यही सोचकर दिल डर रहा था....लेकिन हिम्मत बांधकर मैने अपने दिल की बात कह डाली....देखिए अगर आपकी बहन को कोई एतराज़ न हो तो मैं...मैं .उससे शादी करने के लिए तैयार हूं....मैं वादा करता हूं कि ताउम्र उसे खुश रखुंगा....उसकी आंखें बनकर.....मुझ कितनी ही लड़कियां मिली लेकिन नाज़ ने मेरे जेहन पर गहरा असर किया है....मैं नहीं चाहता कि वो ताउम्र अकेले गुज़ार दे क्योंकि मैं बेहतर तरीके से जानता हूं कि अकेलापन क्या होता है....महबूब मेरे गले लिपट चुके थे.....मेरे दिल में अज़ीब सा सुकूं था....जुबां से अल्लाह का शुक्रिया अदा कर रहा था मैं...
    

Friday, March 4, 2011

देर आए दुरुस्त आऐ.......


जामिया मिल्लिया इस्लामिया को अल्पसंख्यक का दर्ज़ा मिलने पर जब में जामिया में लोगों और स्टूडेंट से उनकी राय लेने पंहुचा तो ये जानकर हैरान रह गया कि कई लोगों को इसकी कोई भी खुशी नहीं है। एक स्टुडेंट से जब मैने सवाल पूछा कि अब जामिया में उन बच्चों का सपना भी पूरा हो सकेगा जो कि गांव में रहते हैं और बुनियादी सहुलियात से महरुम होकर भी जामिया में पढ़ाई का सपना देखते हैं तो उसने तपाक से जवाब दिया कि इसमें जामिया की क्या गलती है। अगर आप टेलेंटेड हैं तो कहीं भी आपका एडमिशन हो सकता है। मैने दूसरा सवाल उसके जवाब से निकालकर उससे पूछा कि अगर आपका सपना जेएनयू है लेकिन अगर आपका एडमिशन वहां नहीं हो पाता तो आप क्या करेंगें भले ही आप लाख टेलेंटेड क्यों न हों तो उसने कहा कि में रिजर्वेशन का सहारा लेकर कोशिश करुंगा। मुझे मेरा जवाब मिल चुका था....लोग चाहते तो हैं कि रिजर्वेशन न हो लेकिन जब अपने पर बन आए तो उसका फ़ायदा उठाने से भी नहीं चूकते। अगर ऐसा न होता तो इतनी लंबी जद्दोजहद के बाद जामिया को ये फ़तह हासिल न होती। इसके लिए न सिर्फ़ लंबी लड़ाई लड़ी गई बल्कि उन सब चीज़ों का भी हवाला दिया गया जिसको लेकर इसको स्थापित करने वाले लोगों ने इसका ख़्वाब देखा था।
      दरअसल जब जामिया को अलीगढ़ में 1920 में स्थापित किया गया उस वक्त इसकी सोच उन लोगों के लिए थी जो तालिमी तौर पर पिछड़े हुए और गरीब तबके से जुड़े हुए थे। अगर ऐसा न होता तो महात्मा गांधी खुद इसको बेहतर इंस्टिटयूट बनाने की पहल न करते। जब गांधी जी को मालूम हुआ कि मौलाना मौहम्मद अली जौहर,डा.जाकिर हुसैन,मुख़्तार अहमद अंसारी,हक़ीम अज़मल खां,अब्दुल मज़ीद ख़्वाजा जैसे पढ़े लिखे लोग इसको बेहतर तालिम देने वाली यूनिवर्सिटी बनाने का सपना देख रहे हैं तो उन्होने इससे जुड़े लोगों की हौसला अफ़ज़ाई की। 1925 में यह इदारा अलीगढ़ से देहली के करोल बाग में शिफ़्ट हो गया। महज चार कमरों से शुरु हुआ ये इदारा आज हजारों तलबा को बेहतर तालिम दे रहा है। कई जाने-माने दानिश्वर इस इदारे से पढ़लिख कर मुल्क के अहम ओहदे तक पंहुचे।
    जामिया की स्थापना ये सोचकर की गई थी कि इस इदारे में वे मुसलमान बच्चे जो किन्ही वजहों से अपनी आगे की तालीम से महरुम रह जाते हैं,और गुरबत में ज़िंदगी जीने को मजबूर हैं उन्हे भी बेहतर तालीम मुहैया हो सके। आजादी के 65 साल बाद भी मुसलमान तरक्कीयाफ़्ता क़ौम नहीं बन सकी,इसकी कुछ वजह हैं जिनमें सबसे पहली वजह है उनकी बेहतरीन नुमाइंदग़ी न होना। कितने ही मुसलमान लीडर हुए लेकिन किसी ने भी सही तरीके से मुसलमानों के मसायल को हल करने की ठोस पहल नहीं की,आज हालात ये हैं कि मुसलमान अपने आपको दोराहे पर खड़ा पाता है तो सोचता है कि उसका गुनाह आख़िर है क्या ?
      मुल्क की जानी-मानी यूनिवर्सिटी में तब्दील हो गया है जामिया मिल्लिया लेकिन अगर ग़ौर करें तो अच्छी फैकल्टियों में मुस्लिम तलबा कम ही नज़र आते हैं। इसका सीधा मतलब है कि उन्हे रिजर्वेशन की सख्त ज़रुरत है। ज्यादातर मुस्लिम तलबा की बुनियादी तालीम मदरसों तक ही सिमित है। शहरों को छोड़ दिया जाए तो गांव में आज भी मदरसों में अंग्रेजी और कम्प्यूटर तलबा के लिए ख़्वाब से कम नहीं है। तालीम को लेकर भी मुसलमानों ने संज़ीदगी नहीं दिखाई,इसका पहली वजह है उनका आर्थिक तौर पर कमजोर होना। तंगहाली की वजह से भी मुसलमान तालीम में पिछड़ गए। उन्होने अपने बच्चों को पढ़ाने की बजाए काम धंधों से जोड़ना मुनासिब समझा। दूसरी ख़ास वजह रही हुकूमत की लापरवाही,मुसलमानों की तरक्की को लेकर सिर्फ़ कमेटियां ही बनाई गईं उनकी सिफ़ारिशों पर कोई तवज्जों नहीं दी गई न ही उस पर कोई ग़ौर-ओ-फ़िकर की गई। अगर हुकूमत चाहती तो अलग से भी मुसलमानों की तालीम पर ज्यादा तवज्जो दे सकती थी लेकिन उसने सिर्फ़ मुसलमानो को वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल किया। उसे लगा कि अगर मुसलमान आगे बढ़ गये तो उसके वोट बैंक को खतरा हो सकता है।
    मुसलमानों को आधुनिक तालीम से दुर रखने में हमारे मुल्ला मौलवियों का भी बड़ा हाथ रहा है। उन्होने सिर्फ़ इस्लामी तालीम को ही तवज्जो दी रोजगार से जुड़ी तालीम को नज़रअंदाज करना मुसलमानों को भारी पड़ गया,जिससे वो पिछड़ते चले गए। हालांकि इसमें मुसलमान भी कम कसूरवार नहीं हैं,वे सिर्फ़ हुकूमत को कोसते रहते हैं। उन्हे इस बात का ज़रा भी इल्म नहीं कि अपना मुस्तक़बिल रोशन करने के लिए उन्हे खुद ही आगे आना होगा। जब तक वो तालीमयाफ़्ता नहीं होंगे उनका मुस्तक़बिल कैसे रोशन होगा सोचने वाली बात है। बिना तालीम के वो कैसे अपने आपको समाज में क़ायम रख पाएंगे,ज़ाहिर सी बात है कि अगर कोई सिर्फ़ दूसरे को कोसता रहे तो वो कैसे क़ामयाब ज़िंदगी जी पाएगा।
    जामिया मिल्लिया हो या फ़िर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी या फ़िर आन्ध्रा प्रदेश का उस्मानिया यूनिवर्सिटी ये मुस्लिम तलबा की तालीम के लिए ही जाने जाते रहे हैं। बेशक हिंदुस्तान धर्मनिरपेक्ष मुल्क है,और यहां दूसरे मुल्क की बजाए मुसलमान बेहद महफ़ूज़ हैं। लेकिन कहीं न कहीं मुसलमानों को समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए ये पहल बेहद ज़रुरी आन पड़ती है। इशके लिए अगर जामिया को अल्पसंख्यक का दरजा दिया गया है तो इसमें क्या बुराई है। अब कम से कम वे बच्चे जो जामिया में पढ़ाई का सपना पाले बैठे हैं,इस 50 फीसद रिजर्वेशन की वजह से उका सपना पूरा हो सकता है।
    50 फीसद सीटों के रिजर्व हो जाने से अगर जामिया में पढ़ने वाले मुस्लिम तलबा की तादात में इज़ाफ़ा होता है,तो इसमें खुशी जाहिर होनी चाहिए क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो शायद मुस्लिम तालीम में कुछ हद तक सुधार की गुंजाइश हो। लेकिन रिजर्वेशन का फ़ायदा तभी है जब इसका सही तरीक़े से इस्तेमाल किया जाए। इसमें कोई भी बंदरबांट न हो,खुले तरीके से जिसका इस पर लहक़ है उसे उसका हक़ मिलना ही चाहिए चाहे वो ग़रीब ही क्यों न हो। जामिया में आने वाले हर उस बच्चे को जिसका सपना आगे जाकर कुछ बनने का है,पूरी सहुलियात मिलनी चाहिए इसके लिए जामिया को पूरी कोशिश करनी होगी कि अल्पसंख्यक का दर्ज़ा मिलने का बावजुद भी जामिया तालीम के मामले में पीछे न रहे। साथ ही इसकी साख पर भी कोई आंच न आए,ये कोशिश की जानी चाहिए एक नई शुरुआत के साथ।      
    

Thursday, March 3, 2011

कौन करे आग़ाज़....


घोटालों पे घोटाले.... सरकार मस्त...जनता पस्त... बजट में कोई भी ख़ास बदलाव नहीं...फ़िर पकड़ाया झुनझुना....पेट्रोल मंहगा गाड़ी सस्ती....गरीबी हटाओ नहीं जनाब गरीबों को ही हटा दो...न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी....ऐसी ख़बरें आए दिन सुनते-सुनते हमारे कान पक गए....लेकिन आम जनता को तो आदत पड़ गई है सबकुछ झेलने की... मंहगाई झेल सकती है...गरीबी झेल सकती है...बेरोजगारी... सबकुछ... जी हां सबकुछ....तो फ़िर क्या किया जाए। कुछ नहीं.. कोसा जाए चाय की दुकान पर चाय का गिलास पकड़ कर सरकार पर कटाक्ष किया जाए...एक दुसरे से भिड़ा जाए...तू कांग्रेसी...तू बीजेपी...तू वाम दल वाला....तेरी पार्टी ऐसी...तेरी वैसी....चाय ख़त्म किस्सा ख़त्म...जब तक चाय चली तब तक चर्चा चली...चल मेरे भाई तू अपनी गली मैं अपनी गली...फ़िर मिलेंगें....ख़ुदा हाफ़िज़
     आजादी के 65 साल बाद भी हमने अपने हक को पहचानना नहीं सीखा,क्यों पहचाने हमें क्या पड़ी है जब हर काम रिश्वत से हो जाए तो फ़िर क्यों फालतू की टेंशन ली जाए... दो रिश्वत निकालो काम...पहले मेरा काम हो जाए बाकी भाड़ में जाएं ये मानसिकता बन चुकी है हमारी। कभी भी हम ये नहीं सोचते कि इसका हमारी ज़िंदगी पर क्या असर पड़ने वाला है। एक दिन ऐसा भी आता है जब हम ख़ुद अपने ही जाल में फंस जाते हैं हमारा काम बिगड़ जाता है तो लगते हैं कोसने सरकार और उसके नुमाइंदों को। क्यों भई क्यों न लें रिश्वत जब तुमने ही इसकी लत उन्हे लगाई अब इसमें बुरा क्या है। अब अपने पर बन आई तो लगे कोसने।  
     राजा एक लाख नब्बे हज़ार करोड़ रुपए का घोटाला करके भी चैन की बंसी बजा रहे हैं। लेकिन एक ग़रीब एक रोटी को चुरा ले तो उसका कोई पुरसाने हाल नहीं वो चोर है। लेकिन राजा क्या है....सुखराम क्या है...कोड़ा क्या है....ये चोर नहीं महाचोर है...जो आम लोगों के खुन-पसीने से कमाई हुई दौलत को अपना समझ कर लूटने में लगे हुए हैं। कितनी बेशर्मी से ये लोग जेल में रहकर अपनी कारगुज़ारियों पर पर्दा डाल देते हैं वो किसी से भी छिपा नहीं है। इन लोगों ने मुल्क को इतना लूट लिया है कि अगर ये पैसा इनके खाते में न होता तो शायद सोने की चिड़िया कहलाने वाला हिंदुस्तान वास्तव में सोने की चिड़िया हो गया होता, लेकिन घोटालों,भष्ट्राचार और रिश्वत की आदत के चलते हिंदुस्तान बदनाम है। करे कोई भरे कोई,इन लोगों के किए का ख़ामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ता है। कभी प्याज़ मंहगी होती है तो कभी टमाटर कभी तेल मंहगा तो कभी रोजाना इस्तेमाल की चीज़ें।    
     आज हमारे मुल्क में करोड़ों लोगों को दो जून की रोटी तक मयस्सर नहीं और सरकारी दावे बढ़चढ़ कर सुनने को मिल जाएंगें। नरेगा से लेकर अंत्योदय योजना सब की सब भष्ट्राचार की चादर में लिपटी हुईं। क्या किसी को भी भूख से बिलबिलाते ग़रीब का पेट नहीं दिखाई देता ? वोट मांगने के लिए ग़रीब सबसे पहले माईबाप, लेकिन चुनाव जीतते ही हम आपके हैं कौन ? लाखों लोग सड़कों पर अपनी ज़िंदगी जीने को मजबूर हैं और नेता और अधिकारियों के कई जगह बंगले होने के बावजुद भी उनका पेट खाली है। इतनी बुरी नज़र हो गई है कि वक्त आए तो नदी नालों पर भी अपना हक जमा लें। खुलेआम दोनों हाथों से लूट सको तो लूट का धंधा बना दिया गया है।
     दरअसल इसमें हम लोग भी काफ़ी हद तक कसूरवार है,एक तो हम नेता ही ऐसे चुनते हैं। दूसरा ये कि हमें किसी भी बात का सब्र नहीं, हमें दुसरे की परेशानी अब अपनी परेशानी नहीं लगती। एक दूसरे से आगे निकलने की होड़,स्टेट सिंबल तनाव,जलन कुछ ऐसी चीज़ें हैं जो हमें धरातल की तरफ़ ले जा रही हैं। हमें न तो अपने अधिकारों का पता है, न ही अपने वजूद का,बस भागे जा रहें हैं आधुनिकता की चमक-दमक में,हमारे मां-बाप हमारी राह देख रहे हैं और हम अपना वक्त माल्स और सिनेमा में बिता रहे हैं। कुल मिलाकर कहें तो ख़ुदगर्ज़ हो गए हैं हम। हमें बस अपने से ही मतलब है दुसरा मरता रहे हमें क्या? हम तो भई ऐसे हैं ऐसे रहेंगें।
    आग़ाज़ हमें ही करना होगा हमें बुलंद करनी होगी अपनी आवाज़,मिस्र के लोगों ने एकजुट होकर हुस्नी मुबारक को गद्दी छोड़ने को मजबूर कर दिया तो फ़िर हमारे देश के निकम्मे नेता किस खेत की मूली हैं। एकजुट होना ही होगा अपने हक के ख़िलाफ़ आवाज़ उठानी ही होगी। पहले खुद को बदलना होगा फ़िर बदलाव की आंधी से शायद कोई न बच पाए। एक नई आजादी की ज़रुरत है हमें आज....कोशिश तो कर ही सकते हैं....आग़ाज़ तो करें....