Thursday, March 10, 2011

तलाश...


वो बेहद ख़ुबसूरत थी...इतनी खुबसूरत कि देखने वाला देखता रह जाए....उसके चेहरे पर एक अलग सी कशिश थी....बरबस हर किसी को अपनी और खींच लेने वाली....कोई 24-25 की उम्र होगी....सामने की बर्थ पर चुपचाप आईने को निहार रही थी...मैं काफ़ी देर तक उसे यूं ही देखता रहा...कुछ देर बाद मुझे अहसास हुआ कि उसे जैसे किसी से कोई भी मतलब नहीं है...उसने आहिस्ता से आईने को अपने जुट के बैग में दुबका दिया मानो वो कोई अनमोल चीज़ हो...कुछ देर बाद उसने मेरी तरफ़ निगाह डाली....मैने उसकी तरफ़ ऐसे देखा जैसे मुझे उससे कोई वास्ता ही नहीं....अचानक उसने अपनी चादर उठाई और उसमें ऐसे सिमट गई जैसे कछुआ अपने खोल में सिमट जाता है। रात गहरा चुकी थी मुझे नींद नहीं आ रही थी.....करवटें बदल-बदल कर और पानी पी-पी कर मेरा चैनो-अमन ग़ायब था।
     पुरानी यादों की परत एक-एक कर खुलती जा रही थी...याद आ गए वो सब लम्हे...वक्त कैसे गुजर गया कुछ पता ही न चला...परेशानी का सबब ये कि वक्त के साथ उम्र भी गुजर रही थी....अम्मी कहते-कहते थक गई....तौक़ीर मेरे मरने से पहले तुझे दुल्हा बने देखना चाहती हूं मेरे बच्चे....क्या नहीं है हमारे पास सबकुछ तो है...फ़िर...मां कि याद आते ही आंखों से सैलाब उमड़ आया....कितना प्यार करती थी मुझे मां....तीन बहनों का इकलौता भाई था....अब्बा के इंतकाल के बाद अम्मी ने जिस तरीके से हमें पाला....वाकई काबिले-तारीफ़ है....बहनों की शादियां अच्छे घरों में हुई थी और सब अमन से अपनी ज़िंदगी गुज़ार रहीं थीं....आखिर वे भी थक गईं....कहते-कहते शादी के लिए....लेकिन मैं अपनी ही धुन में सवार रहा....कैरियर बनाने की ख़ातिर मैने किसी की मानी ही नहीं....अब कैरियर है तो....शादी की उम्र नहीं....चालीस पार जाने के बाद शादी का क्या फ़ायदा....
     लेकिन ऐसा नहीं था कि गुफ़्तगु न होती हो शादी के लिए....रेहान भी तो कह रहे थे उस दिन जब मैं तक़रीब में ख़िताब कर रहा था....यार तौक़ीर तुझे बड़े ग़ौर से सुन रहीं थी अफ़साना मैडम.....अमा जाओ क्यूं मजाक़ कर रहे हो....छोड़ो भी ये सब....नहीं यार कुछ कशिश तो है उनमें....तू भी न....यार मुझे उनमें कोई दिलचस्पी नहीं है........मैं उनका बहुत एहतराम करता हूं...तो फ़िर कैसी हूर चाहिए तुझे...बता दूंगा जब मिल जाएगी....अमा कब मिल जाएगी....बस जब वक्त मुनासिब होगा...और अल्लाह को मंज़ूर होगा....
     आज पहली बार किसी ने मेरे दिल के दरवाज़े पर दस्तक दी है....कालेज में पढ़ाई से लेकर पढ़ाने तक न जाने कितनी लड़कियों से रुबरु हुआ पर किसी ने भी मुझ पर ऐसी छाप नहीं छोड़ी...नींद कोसों दूर थी....मेरे जेहन में पुराने ख़्यालात वाकये हो रहे थे....मुझे याद है वो दिन जब मैं तरन्नुम से मिला था...भोपाल में लेक्चर था और वो हैदराबाद से प्रोग्राम में शिरकत करने आई थी....उन्होने भी यही सवालात दोहराए थे हालांकि वो खुद तलाकशुदा थीं....मेरे पूछने पर उन्होने तफ़्सील से बताया कि कैसे उनके ख़ाबिंद ने उन्हे इस्तेमाल किया....पढ़ी-लिखी होने के बावजुद भी उन्हे कितना सहना पड़ा....उनकी बातें सुनकर शादी के नाम से और जी उचट गया....लेकिन अब महसूस होता है कि कोई तो होना ही चाहिए ज़िंदगी को अकेले गुजारना कितना मुश्किल है ये मेरा दिल ही जानता है....जब तक अम्मी ज़िंदा थी तो कोई फ़िक्र नहीं थी लेकिन उनके इंतक़ाल के बाद कितना अकेलापन महसूस होता है ये मैं ही जानता हूं...कभी-कभी तो लगता है कि ये पैसा और शोहरत किस काम की है जब हमें सुकून ही न मिले....
      पुरानी यादों में गोते लगाते हुए कब नींद आ गई मुझे एहसास तक नहीं हुआ...सामने देखा तो पाया कि वही ख़ुबसूरत चेहरा एक बार फ़िर से नज़रों के सामने था...जी चाह रहा था कि बस उसे देखता ही रहूं...न जाने क्यों उसके चेहरे से नजरें हटने का नाम नहीं ले रहीं थी....अचानक उसने अपनी आंखें खोली सामने मुझे देखकर भी उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ा मैं हैरान था....इसने पलकें तक नहीं झपकाईं...और....तभी उसने मेरी और देखकर कहा....जी सुनिए....देहली स्टेशन आ गया है क्या....नहीं अभी नहीं... मथुरा आया है....जब आयेगा तो.....जी शुक्रिया जब आए तो मुझे बता देना....जी बेहतर....कितनी मिठास है इसकी आवाज़ में.....अचानक मेरी नज़रें उसकी आंखों पर गईं.....मैंरे शरीर मैं पिन चुभ गए....ये तो....जी आप देख नहीं सकतीं...जी मैं नाबिना हूं...जी मेरा नाम नाज़ है और मैं टीचर हूं... अपने भाई के पास देहली जा रही हूं....स्कूल में छुट्टियां पड़ गई हैं...जी मेरा नाम तौक़ीर है...मैं प्रोफ़ेसर हूं देहली यूनिवर्सिटी में.....माशाल्लाह आप इतने बड़े ओहदे पर हैं....मेरा ख़्वाब भी प्रोफेसर बनना है....लेकिन अपनी आंखों की वजह से.....अरे नहीं ये क्या कह रहीं हैं आप.....बिना आंखों के भी आप बन सकती हैं कोई रुकावट नहीं है....बात करते-करते कब देहली स्टेशन आ गया मुझे पता ही न चला....जी आप कभी आइये हमारे घर... मैं स्टेशन पर अपने भाई से आपको मिलवाउंगी....जी ज़रुर....क्यों नहीं...स्टेशन आ चुका था.... भईया ये हैं तौक़ीर साहब हैं....इन्होने मेरा काफ़ी ख़्याल रखा सफ़र के दौरान....जी आपका बुहत-बहुत शुक्रिया....कोई बात नहीं....कहकर मैं चल पड़ा....
      जी सुनिए....जी कभी आइयेगा हमारे ग़रीबख़ाने पर... जी ज़रुर....जी आफका नंबर....ओके....शुक्रिया....अल्ला हाफ़िज़ कहकर मैं अपनी गाड़ी में बैठ गया....दिल में पता नहीं क्यों अजीब सा महसूस हो रहा था....उससे मिलने के बाद एक अधूरापन लग रहा था मुझे....उसकी आवाज़ अब तक मेरे कानों में गुंज रही थी...मैने तय कर लिया था कि उसके भाई की एक काल आने पर मैं उसके घर ज़रुर जाउंगा...बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था मैं उनकी काल का....
     गुजिश्ता दिनों बाद लेक्चर के वक्त अचानक नाज़ के भाई महबूब की काल आ गई.....जी सर कैसे हैं आप....जी अच्छा हूं आप बताएं....जी वो नाज़ आपसे मिलना चाह रही थी....शाम को आप घर आ सकते हैं....साथ में खाना खा लें तो बेहतर होगा....जी ज़रुर....एक पल गंवाएं मैने हामी भर दी....जैसे मेरे मन की मुराद पूरी हो गई हो....या अल्लाह...तेरा लाख-लाख शुक्रिया....तूने मेरे दिल के हाल को पहचान लिया है....अब बस मुझे इतनी हिम्मत दे कि मैं उसका हाथ मांग सकूं....
     काफ़ी अच्छा घर था महबूब का... एक्सपोर्ट का बिजनेस था उनका...नम आंखों से बता रहा थे वो.....कि उसके कई रिश्ते आए लेकिन नाबिना होने की वजह से बात नहीं बन सकी.... मैं अपने आप पर काबू कर रहा था....एक तो उम्र का फ़ासला कहीं ना न हो जाए यही सोचकर दिल डर रहा था....लेकिन हिम्मत बांधकर मैने अपने दिल की बात कह डाली....देखिए अगर आपकी बहन को कोई एतराज़ न हो तो मैं...मैं .उससे शादी करने के लिए तैयार हूं....मैं वादा करता हूं कि ताउम्र उसे खुश रखुंगा....उसकी आंखें बनकर.....मुझ कितनी ही लड़कियां मिली लेकिन नाज़ ने मेरे जेहन पर गहरा असर किया है....मैं नहीं चाहता कि वो ताउम्र अकेले गुज़ार दे क्योंकि मैं बेहतर तरीके से जानता हूं कि अकेलापन क्या होता है....महबूब मेरे गले लिपट चुके थे.....मेरे दिल में अज़ीब सा सुकूं था....जुबां से अल्लाह का शुक्रिया अदा कर रहा था मैं...
    

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