Tuesday, March 15, 2011

मां.....


हो दुनिया पराई तो कुछ ग़म नहीं
इस दौलतो-शोहरत में कुछ दम नहीं
अगर कुछ ज़मीं पर है अनमोल
वो मां है....मां है...सिर्फ़ मां है...
एक तस्वीर धुंधली, मैली सी चादर
सिमटा है उसमें मेरी मां का आंचल
वो बचपन की यादें, वो बेपरवाह लम्हे
दरख़्तों के पत्ते,पुराना सा आंगन
वो गांव की यादें,वो पैदल के रस्ते
निकलते थे जब हम अपने घर से
मेरी मां की उंगली हाथों में होती
वो ऐसे मुझे ले के चलती थी जैसे
ख़्वाबों की उसके तामीर हूं जैसे
जो बदला ये मौसम,बदला सफ़र है
मैं हूं इस शहर मैं वो तन्हा मग़र है
है अब भी अजब सी कशिश मेरे दिल में
मेरी मां के जैसा कोई भी नहीं है...