Thursday, March 31, 2011

कलमा-ए-तय्यैब पर हो अमल.....


इमामे-हरम के दौरा-ए-हिंदुस्तान को आलमे-इस्लाम के नज़दीक निहायत अक़ीदत व एहतराम दिया गया... इमामे-हरम डा.शेख़ अब्दुल रहमान अस सुदैस के दौरा-ए-हिंद को मुख़्तलिफ़ उमूर की बुनियाद पर हिंदुस्तान में इज़्जत और तौक़ीर की निगाह से देखा गया। अपने क़याम के दौरान हिंद-सउदी ताल्लुकात बेहतर बनाने और हिंदुस्तानी मुसलमानों को वैहदानियत और रिसालत के परचम तले मुत्तहिद वमुअज़्जम रहने और इस्लामी जब्ते-हयात के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारने के जो जरुरी पैग़ामात दिए,इनकी बुनियाद पर बेसाख़्ता ये बात कही जा सकती है कि ये दौरा न सिर्फ़ उन लोगों के लिए जो मेजबानी के फ़राइज़ को अंजाम दे रहे थे या उन मुस्लिम इदारों में जहां भी वे तशरीफ़ ले गए उनके लिए तारीख़ी रहा।
     इमामे-हरम मक्की इससे क़ब्ल भी ज़मीने-हिंद पर तशरीफ़ ला चुके हैं,लेकिन डा.शेख़ अब्दुर रहमान अस सुदैस का ये सफ़र इसलिए भी यादगार और तारीख़ी कहा जाएगा कि इसकी हर-पल ये कोशिश रही कि मसलकी इख़्तलाफ़ात को फरामोश करके कलमा-ए-तैयबा पर इमानो-अक़ीदा रखने वालों को एक ही प्लेटफार्म पर लाकर खड़ा कर दिया जाए और तमाम इख़्तेलाफ़ की दीवारों को मुनहदिम कर दिया जाए। उन्होने जमियत उलेमा,जमियत-एहले-हदीस और जमात इस्लामी जाकर यही पैग़ाम देने की कोशिश की।
     इमामे-हरम ने देवबंद में जाकर भी जियारत की औऱ कई लाख अक़ीदतमंदों को ख़िताब करते हुए इस नतीजे पर पंहुचे कि हिंदुस्तान में अपने मजहबी क़ायदीन के लिए जो जोश और अक़ीदत पायी जाती है,वो कैफ़ियत दुनिया के किसी भी हिस्से में नज़र नहीं आती। इमामे-हरम ने अपने तरजो अमल से मुसलमान-ए-हिंद को जो पैग़ाम देने की कोशिश की है,इसे समझने के लिए मुख़्तलिफ़ मक्तबे फिक्र के उलेमा,क़ारी,अकाबरीन को सर जोड़कर बैठने की ज़रुरत है। और यही वक्त का तक़ाजा है,इस एक नुकाती फार्मुले पर गौर करने की अहम ज़रुरत है....चूंकि अल्लाह एक है और जो पैग़ाम और जैसी ज़िंदगी हमारे हुजूर सल्लाहुअलैयही वसल्लम ने इख़्तयार की वो निहायत ही क़ाबिले दाद है....अल्लाह के रसूल ने अपनी ज़िंदगी में न जाने कितनी तकलीफें बर्दाश्त कीं लेकिन कभी भी हिम्मत नहीं हारी....जिसका नताइज़ है कि आज इस्लाम आलमी दुनिया में अपना परचम लहरा रहा है। इमाम-ए-हरम ने अपने ख़ुतबे में मुसलमानों को जो नसीहतें फराइम की वो भी वाकई काबिले दाद हैं....उनके ख़ुतबे पर हर मुसलमान को इत्तेफ़ाक होना चाहिए क्योंकि आख़िरत की दुनिया में अल्लाह के आगे हमें अपनी दुनियावी ज़िंदगी का हिसाब देना है। सभी इदारों और तंज़ीमों के साथ-साथ मुख़्तलिफ़ अफ़कार और नज़रियात रखने वाली ज़मातें हुकूमत के लिए माज़ी की तल्खियां भुलाकर कम से कम मुश्तरका प्रोग्राम के ज़रिए मंज़िल तक पंहुच सकती है। तो फिर आखिर हम क्यों नहीं....अपने 2 मसलक पर क़ायम होते हुए सिर्फ़ मसायल पर मुत्तहिद क्यों नहीं हो सकते।
    इमामे-हरम के प्रोग्राम इत्तहाद को न सिर्फ़ हिंदुस्तान के तनाज़ुर में बल्कि बर्रे-सग़ीर हिंदो-पाक दुनिया-ए-अरबो-अज़म और बैनुल-अक़वामी सतहों पर हमारी सताइश करते हुए हिंदो-अरब के बेहतर मुस्तक़बिल का इशारा भी किया है।शहर मक्का में हज के दौरान लाखों जायरीन को जो सहुलियात फराइम की जाती है उसमें वहां की हुकूमत की जितनी भी तारीफ़ की जाए वो कम है....अगर यही सिलसिला जारी रहा तो सउदी से मुसलमानों के रिश्ते में मजबूती बरकरार रहेगी। इसी तरह बैनुल-अक़वामी सतह पर उभरने वाली एक बड़ी कुव्वत की हैसियत से हिंदुस्तान को भी सउदी अरब से दैरिना रिश्तों का लिहाज़ रखते हुए इसके तहफ़्फुज और तामीर में अहम किरदार अदा करना होगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि इमामे-हरम का ये तारीख़साज़ दौरा सरज़मीने-हिंद को देर तक याद रहेगा,हालांकि अब ये माज़ी का अहम हिस्सा हो चुका है।
     
     

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