Friday, April 29, 2011

दरमियां.....


कब तक क़याम रहेगा जनाब का देहली में....यही दो रोज़....गुजिश्ता काफ़ी रोज़ से सोच रहा था कि देहली में आपसे मुख़ातिब होउं लेकिन मसरुफ़ियात की वजह से आपसे न तो मुलाकात हुई और न ही कोई गुफ़्तगु.....अब सोच रहा हूं के देहली में क़याम के दौरान आपसे मिलकर पुरानी यादों को एक बार फ़िर से ताज़ा कर लिया जाऐ.....जी बेहतर....कब तशरीफ़ ला रहे हैं जनाब देहली में.....आइंदा हफ़्ते....जी बेहतर... आपका यहां कोई बड़ी ही बेसब्री से इंतज़ार कर रहा है.....कौन है...ज़रा हमें भी तो मालुम चले....बस इसे सीक्रेट ही रहने दें...जब आप ख़ुद मुख़ातिब हों तो कहिए...फ़िर भी ज़रा बताओ तो सही..... कम-अज़-कम इस बहाने आप हमारे ग़रीबख़ाने पर कुछ दिन तो क़याम कर पाऐंगें..... अरे कालेज के दिनों में एक तुम ही तो थे जिसने मेरी ज़िंदगी को बदलने में अहम रोल अदा किया.....तो ठीक है देहली रवाना होने से क़ब्ल में आपको इत्तला कर दूंगा....बेहतर-बेहतर....अल्लाह हाफ़िज़....
     तनवीर से ऐहसान की बड़ी दोस्ती थी....ये दोस्ती उस वक्त परवान चढ़ी जब तनवीर और ऐहसान देहली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया में कैंटिन में मिले...दोनों की मुलाकात मरियम ने करवाई थी....तनवीर मास काम कर रहे था और ऐहसान फ़ाइन आर्टस का कोर्स...तनवीर के अब्बा का देहली में एक्सपोर्ट का काम था....किसी हीरो से कम नहीं था तनवीर.. कालेज के दिनों में मरियम और तनवीर एक दूसरे के काफ़ी क़रीब थे....लेकिन फाइन आर्ट में होने की वजह से ऐहसान और मरियम का आपस में काफ़ी मिलना जुलना होता था। वक्त गुज़र रहा था और तनवीर के अब्बा उसका शादी को लेकर फ़िक्रमंद होने लगे थे...चूंकि तनवीर की अम्मी की तबियत अक्सर नासाज़ रहती थी....मरियम से जब तनवीर ने शादी के बारे में बताया तो उसने इंकार कर दिया वो अभी शादी नहीं करना चाहती थी....लेकिन तनवीर को शादी की जल्दी थी....ख़ैर बात आई गई हो गई....तनवीर को लगा कि कहीं मरियम ऐहसान की वजह से तो शादी से इंकार नहीं कर रही.....तनवीर ऐहसान से कटने लगा....मरियम और ऐहसान को साथ-साथ देखकर वो सुलग जाता..उसे लगता कि राह का रोड़ा ऐहसान ही है....और एक दिन तनवीर ने सबके सामने ऐहसान को ख़री-खरी सुना दी.....ऐहसान हैरानगी से तनवीर को देखता रह गया...उसे समझ ही नहीं आया कि आख़िर माज़रा क्या है....वो कभी मरियम की तरफ़ देखता तो कभी तनवीर की तरफ़....मरियम भी वहां से दबे पांव निकल गई....ऐहसान ने ख़ामोश रहकर ही तनवीर को जवाब दे दिया..... खैर तनवीर की शादी रिहाना से हो गई....शादी में ऐहसान का न होना....इस बात का सबूत था तनवीर और ऐहसान के रिश्ते कितने तल्ख़ हो चुके थे....हालांकि ऐहसान खुद नहीं समझ पा रहा था कि तनवीर को आख़िर हो क्या गया है...उधर ऐहसान कोर्स पूरा कर दुबई निकल गया....वक्त बीतता गया लेकिन कभी हिंदुस्तान न आना हुआ.....अरे मरियम कैसी हो...जी रही हुं आप बताऐं....मुझे मुआफ़ कर दो मरियम उस दिन मैं बहक गया था....मुझे लगा शायद तुम्हारे और ऐहसान के दरमियान कुछ....कितने ग़लत थे तुम.....अरे मुझे शादी नहीं करनी थी....तो तुमने ऐहसान को क्यों बदनाम किया....सिर्फ़ इसलिए कि वो मेरे साथ कोर्स करता था....मुझे एक बार प़िर मुआफ़ कर दो मरियम मैं..... उससे रहा न गया दोस्ती की ख़ातिर उसने ऐहसान के वालिद से उसका फोन नंबर लिया...और फ़िर दो दोस्त आपस में ऐसे बात करने लगे जैसे उनके दरमियान कुछ हुआ ही न हो....तुम बिल्कुल नहीं बदले ऐहसान और तुम भी तो नहीं बदले तनवीर....यार मुझे मुआफ़ कर दो....मैने तुम्हारा दिल दुखाया है.....अच्छा ये बताओ शादी की अभी तक या नहीं....अभी तक तो नहीं ....फ़िर ठीक है.....क्यों क्या हुआ...अरे यार मरियम....मरियम वो मरियम...हां यार ...वो तेरे इंतज़ार मैं कुंवारी बैठी है अबी तक...अबे कैसी बातें करता है.....जोर से हंसकर गाड़ी मैं बैठ गऐ दोनों ....और बता सिर्फ़ दो दिन के लिए ही आया है यार....ऐसे कैसे चलेगा..तेरी भाभी और बच्चे कितनी बेसब्री से तेरा इंतज़ार कर रहे हैं....शायद तुझे नहीं मालुम....बातों बातों में कब घर आ गया मालुम ही नहीं चला....ये रेहाना है...हमारी शरीके-हयात और ये तुफैल और ये नाजिश....बेटे अंकल को सलाम करो....कैसी हैं भाभी आप....जी अच्छी हूं....अच्छा फ्रेश हो जाओ...फ़िर नाश्ता करते हैं....ओके.....उसके बाद तुम्हे किसी से मिलवाना भी है...किससे....मरियम से अमां रहने दो मियां....एक पेंटर की ज़िंदगी में कोई रंग नहीं होता....क्या फ़ायदा...नहीं यार ऐसी बात नहीं फ़िर भी तेरा क्या जाता है.....ठीक है.....मरियम कोई मिलने आया है आपसे कौन....जाओ....गार्डन में हैं खुद ही मिल लो....मैं यहीं रुकता हूं....अरे.....ऐहसान तुम....इतने दिनों बाद....अचानक.....कैसी हैं आप....बस जी रही हूं.....आप कैसे हैं....देख लो....जबसे आप जामिया से गये...लगता मानो सारी रौनक ही चली गई....ऐसा नहीं है...ये सब आपको लगता है.....क्या कर रहीं हैं आजकल.....जामिया मे ही पढ़ा रही हूं.....बहुत ख़ुब....कैसा है दुबई......बहुत उम्दा....कभी याद भी नहीं किया आपने....जी बस मसरुफ़ियात....मालुम हुआ बहुत मसरुफ़ रहते हैं आप.....जी नहीं ऐसी बात नहीं....ये ख़ास आपके लिए.....बहुत ख़ुबसूरत है....इसे देखकर लगता है इसे तुमने ही बनाया है.....तुम्हे कैसे मालुम....देखो ये....जब हम साथ में पेंटिंग्स बनाया करते थे तो तुम इस जगह....यो निशानात छोड़ दिया करते थे.....शादी कर ली....नहीं अभी तक नहीं...क्यों कोई मिली नहीं दुबई में नहीं बहुत मिलीं लेकिन तुम जैसी नहीं.....मजाक अच्छी कर लेते हो.....ये सच है.....मुस्कुरा भर दी मरियम....मरियम पैसा शोहरत बहुत कमा ली लेकिन सुकूं नहीं कमा पाया....तुम शायद नहीं जानती कि तनवीर की एक काल से मैं कितना खुश हुआ...भागा चला आया इससे मिलने....लेकिन तनवीर ने तो.....कोई बात नहीं मरियम गुस्से में हमें इसने जो कहा था.....वो सब मैं भुला चुका हूं आख़िर अच्छे दोस्त क़िस्मत से जो मिलते हैं.....ख़ैर छोड़ो....ये बताओ तुमने शादी क्यों नहीं की क्या तुम्हे भी कोई नहीं मिला...मैं तलाकशुदा हूं ऐहसान...ठंडी सांस भरते हुऐ...मरियम ने कहा....बिजली सी दौड़ गई......क्या हुआ....ऐहसान....मैं कुछ समझा नहीं तुम्हारे जैसी लड़की को कोई तलाक क्यों देगा भला.....मैं ये जानकर हैरां हूं कि....तुम जैसों को कितनी तकलीफ़ों का सामना करना पड़ता है.....मैं माज़ी को भूल चुकी हूं ऐहसान....मेरे ज़िंदगी अब सिर्फ़ टाइमपास है और कुछ नहीं....मेरी ज़िंदगी बेरंग हो चुकी है.....मैं नहीं चाहती की किसी और से शादी करके मैं अपना माज़ी याद करुं....मुझसे भी नहीं....नहीं तुमसे भी नहीं.....मैं अब शादी नहीं करना चाहती....हम अच्छे दोस्त हैं...और मैं चाहती हूं कि हमारी ये दोस्ता ताक़यामत क़ायम रहे.....ठीक है.....हल्की मुस्कुराहट लेकर अलविदा कह गया ऐहसान....नहीं यार मुझे शाम की फ़्लाइट से ही निकलना है....कुछ ज़रुरी काम आन पड़ा है इंशाल्लाह फ़िर आउंगा....मुझे जल्दी से एयरपोर्ट छोड़ दो.....
       


















  

Monday, April 25, 2011

मीडिया और बाज़ारवाद.....


बाज़ार से मीडिया या मीडिया से बाज़ार,ये एक ऐसा सच है जो नि:संदेह मीडिया की खोखली तस्वीर पर कटाक्ष के लिए काफ़ी है। अब जब सभी को अपनी संपति घोषित करने का फ़रमान जारी किया जा चुका है,तो भला ऐसे में पत्रकार या मीडियापर्सन को भी क्यों बख़्शा जाए। आख़िर दूसरे की फटी में जब ये लोग अपनी टांग अड़ा सकते हैं तो फ़िर उनकी भी बखिया क्यों न उधेड़ी जाए,उनके बारे में भी पता लगाया जाए कि उनके पास कितनी अघोषित संपति जमा है। लेकिन बहुत कठिन है डगर पनघट की। आज देश में कितने पत्रकार ऐसे हैं जिन्हे न तो वक्त पर तनख़्वाह मिलती है और न ही वो सुविधाऐं जिनके वो सही मायनों में हक़दार होते हैं,हालात ये हैं कि उन्हे मान्यताप्राप्त बनाने में ही सरकार सालों लगा देती है। दूसरे की आवाज़ बनने वाला पत्रकार खुद की आवाज़ नहीं उठा पाता,गली मौहल्ले के स्टिंगर से लेकर मीडिया में काम करने वालों को रोजाना कितने तनाव से गुज़रना पड़ता है,शायद आम लोगों को नहीं मालुम।हालात तो ये है कि खुद कई साल गुज़र जाने के बाद भी अगर कुछ अग्रणी पत्रकारों को छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर पत्रकार एक सामान्य दुकानदार से भी कम कमा पाते हैं।
     मीडिया में ग्लैमर की वजह से लोग आ तो जाते हैं लेकिन कुछ दिनों के बाद ही अपने आप को ठगा सा महसूस करते हैं,यहां की हक़ीक़त जानकर वो अपना सिर पकड़ लेते हैं। मीडिया में ज्यादातर ऐसे लोग काम कर रहे हैं जिनको पत्रकारिता कम अपना रौबदाब ज्यादा झाड़ना आता है। अगर एक सर्च करा ली जाए तो सबके कपड़े उतर जाऐंगे,टीवी पर सिक्योरिटी में बैठकर चिल्लाने वाले ज़रा सड़क पर चिल्लाकर दिखाऐं। बिना पैंदी के लौटे की तरह इस चैनल से उस चैनल इस अख़बार से उस अख़बार दौड़ते रहते हैं सारी उम्र...जो थोड़ा चालाक और तेज होता है वो बाज़ी मार लेता है लेकिन जिसका कहीं कोई लिंक नहीं वो ताउम्र कलम घिसकर और अच्छे की उम्मीद में ज़िंदगी गुज़ार देता है। ख़बर को आज नमक मिर्च लगाकर परोसा जा रहा है,ख़बर के नाम पर विज्ञापन बटोरे जा रहे हैं,पैसा लाओ चाहे पेड न्यूज़ कैसी भी हो चलाओ मत दौड़ाओ,बाज़ार में टिका रहना है तो ख़बर को माल बनाओ और अच्छी पैकिंग कर बाज़ार में उतार दो,चाहे इससे किसी का भला हो या न हो चैनल और अख़बार का भला तो है ही।
     मीडिया इंडस्ट्री का बाज़ार इस वक्त 30 हज़ार करोड़ रुपए से भी ज़्यादा का है,जिसमें कि न्यूज़ चैनल और अख़बार की हिस्सेदारी तक़रीबन 30 से लेकर 35 फीसद तक है। अब ऐसे में आप ख़ुद अनुमान लगा सकते हैं कि विज्ञापन से कितना बड़ा पैसा इसके हिस्से में आ रहा है,लेकिन टीरआरपी के चक्कर में और सबसे तेज और सबसे आगे निकलने की होड़ में ख़बरों से समझौता करना कितना आसान और फ़ायदे का सौदा है ये शायद आम लोग नहीं जानते। अब ऐसे में जो पत्रकार बाज़ार और न्यूज़ चैनल या अख़बार के दांव पेंच समझ गया वो आगे बढ़ गया,लेकिन जिसने ईमानदारी के साथ पत्रकारिता करनी चाही उसे उसकी क़ीमत का अंदाज़ा इतनी जल्दी हो जाता है जितनी कि दिन से रात।
      मीडिया में अगर सभी को अपनी संपति का खुलासा करना पड़ गया तो यहां भी अमीर-गरीब वाली खाई सामने आ जाएगी,सच्चाई तो ये है कि मीडिया में पैसा है ही नहीं, और है तो बहुत है अब ये आप निर्भर करता है कि आप किस दायरे में रहना चाहते हैं। आप अपनी ज़िंदगी अभाव में गुज़ार देना चाहते हैं या फ़िर बड़ी और लंबी गाड़ियों और नेताओं, मंत्रियों से संबधों की बदौलत बेशुमार दौलत कमाकर अपना रौबदाब बना सकते हैं। अब जब फ़रमान जारी हो चुका है तो सभी पत्रकारों को चाहे वो ट्रैनी हो या स्ट्रिंगर या फ़िर बड़ा पत्रकार सभी को अपनी संपति का खुलासा करना चाहिए फ़िर जो हकीक़त सामने आएगी उससे मुंह मोड़ना शायद हमारी सरकार और हमारे आकाओं को भारी पड़ जाएगा।

Thursday, April 21, 2011

साजिश.....


सर मैं सच कह रहा हूं इसमें मेरा कोई हाथ नहीं है.....ये सब साजिश है मेरे खिलाफ़....मैं तो सिर्फ़ बीचबचाव करने में लगा था.....झूठ बोलते हो तुम सफेद झूठ...गुस्से में चिल्ला पड़ा एडीटर....जानते हो डायरेक्टर ने तीन दिन की मोहलत दी है मुझे.....मामला क्लियर करने की....शर्म आनी चाहिए तुम्हे....ऐसा काम करते हुए....क्या ये सच नहीं है कि…. तुम....एकता और रिजवान तीनों हाई-फाई चैनल में काम करते थे....क्या ये सच नहीं है कि तुम ही एकता के बारे में रिजवान को ख़बर दिया करते थे....क्या ये सच नहीं है कि तुमने ही रिजवान को यहां बुलवाया.....कम-से-कम झूठ तो मत बोलो .महेंद्र....सर मैं....मैं कुछ नहीं सुनना चाहता तुम्हारी वजह से चैनल को कितनी बदनामी उठानी पड़ी इसका इल्म है तुम्हे.....आख़िर तुम चाहते क्या थे इस चैनल की बदनामी या फिर कुछ और.....सर मैं.....देखो मैनेजमेंट का सख़्त आर्डर है कि तुमको चैनल के आसपास फटकने भी न दिया जाऐ.....तुम मेरे ख़ास आदमी थे इसलिए मैं अब तुमसे दूरियां अख़्तियार कर लूं इसमें ही मेरी भलाई है....आखिर मैं बुढ़ापे में कहां नौकरी तलाश करुंगा....गेट आउट फ्राम हियर....
      जी सर निकाल बाहर किया है मैने महेंद्र को साला इतना हरामी है कि झूठ पे झूठ बोले जा रहा था....जी सर बिल्कुल सर....हो जाएगा सर....आप टेंशन न लें सर मैं हूं न....डायरेक्टर के सामने मिमिया रहा था एडीटर....आओ वर्मा....बैठो....यार इस हरामी महेंद्र ने चैनल की एक झटके में बदनामी करवा दी.....साला दूसरे की फटी में क्यों टांग अड़ा रहा था मुझे समझ नहीं आ रहा है.....यार मैं समझ नहीं पा रहा आख़िर मामला है क्या.....इस बारे में सर एक ही आदमी बता सकता है और वो है.....रितेश....आफ़ताब का जिगरी दोस्त....अपनी कुर्सी बचाने के लिए सच उगल देगा वो.....बुलवाइये उसे.....
      देखो सब सच-सच बता दो तुम पर भी तलवार लटक रही है....लेकिन मैं तुम्हे बचा लूंगा.....प्रामिस....सर किसी को पता नहीं चलना चाहिए कि मैने आपको सच बताया....यार विश्वास करो....बिलीव मी....टेंशन मत लो.....और फिर तोते की तरह बोलने लगा रितेश......सर महेंद्र रिजवान और एकता तीनों हाई-फाई चैनल में काम करते थे....महैंद्र वहां जोब पर था और रिजवान ट्रेनी....और एकता…. जी वो इंटर्न थी.....वो सर रिजवान को चाहती थी.....दोनों का चक्कर चलने लगा........जी सर फ़िर....महेंद्र यहां आ गया.....और रिजवान ओके चैनल में चला गया....एकता और रिजवान आपस में खुब मिला करते थे...लेकिन एक दिन एकता की बहन ने उसे बाइक पर घर छोड़ते देख लिया और उसकी काफी पिटाई कर डाली....साथ ही उसके घर से बाहर निकलने पर भी पाबंदी लगा दी.....कुछ दिनों बाद फोन पर रिजवान ने उसे किसी भी चैनल में ज्वाइन करने को कहा जिससे कि वो आपसे में खुलकर मिल सकें .....अपनी बहन से कसमें खाकर एकता ने महैंद्र से कान्टेक्ट किया और फिर महैंद्र ने उसे यहां लगवा दिया....फिर...फिर सर....एकता का हमारे यहां के एक इंटर्न आफ़ताब से चक्कर चलने लगा....दोनों साथ-साथ आने-जाने लगे....महेंद्र को ये बात नागवार गुज़री.....क्योंकि महैंद्र आफ़ताब से जलता था....और उसने रिजवान को सारी हकीकत बयां कर दी....फोन पर रिजवान को गुस्से में एकता ने काफी बुरा भला कह दिया....फिर....
       रिजवान ने एकता को समझाने की काफ़ी कोशिश की लेकिन वो नहीं मानी........अब महैंद्र और रिजवान ने आफ़ताब को सबक सिखाने का प्लान बनाया....और आफ़ताब को पीटने के लिए तैयारी शुरु कर दी....और वो इस चैनल मैं आ गया....महैंद्र ने उसे बाइज्जत गेस्ट रुम में बिठवा दिया....और फिर....आफ़ताब को किसी से मिलवाने का बहाना करके उसे चैनल से बाहर ले गया....वहां थोड़ी देर रुकने के बाद वो वापस अंदर आया और रिजवान को बाहर भेज दिया....आफ़ताब का सारा हुलिया भी बता दिया....और खुद चैनल के अंदर ही रुक गया.....रिजवान ने बाहर आते ही आफ़ताब से बहस करनी शुरु कर दी....जिस पर आफ़ताब ने उसे थप्पड़ मार दिया....गुस्से में आगबबूला होकर रिजवान वहां से चला गया....फिर क्या हुआ....
      फिर आफ़ताब ने ये सब मुझे बताया....मैं लंच के बहाने चैनल के आसपास घूम आया लेकिन रिजवान कहीं नज़र नहीं आया....कुछ देर बाद हमने सोचा कि मामला ठंडा पड़ गया है....लेकिन सड़क पर थोड़ी दूर हम जैसे ही चले रिजवान और उसके दोस्तों ने आफ़ताब पर हमला कर दिया...मैने आफ़ताब को चैनल की तरफ़ भागने को कहा...क्योंकि वहीं उसकी जान बच सकती थी....इसके बाद हम रिपोर्ट दर्ज कराने थाने पंहुचे....पीछे से महैंद्र एकता और रिजवान को लेकर वहां पंहुच गए और दरोगा पर रिपोर्ट दर्ज कराने का दवाब डालने लगे....जिस पर आफ़ताब और रिजवान को लाकअप में बंद कर दिया गया.....थाने में एकता और रिजवान पुरानी बातों को लेकर कुत्ते-बिल्ली की तरह लड़ रहे थे....तब मुझे और आफ़ताब को सारा माज़रा समझ में आ गया.....सर एक बात कहूं ये सब कमीने महैंद्र का ही किया धरा है.....किसी को भी चैन से नहीं बैठने देता था वो.....खुद अपने खोदे गढ्ढे में जा गिरा.....ठीक है तुम जाओ.....ओके...सर....समझे वर्मा सारा मामला ये है....यानि मुझसे झूठ बोल रहा था कि मैं रिजवान को नहीं जानता...जी सर.....हो गया है सर क्लियर हो गया है.....तीनों को निकाल दिया गया है सर.....पूरी बात भी पता चल गई है.....ये सब महैंद्र का किया धरा था....नहीं सर चैनल की रैपो पर कोई आंच नहीं आएगी....आप टेंशन न लें सर....

Thursday, April 14, 2011

इंसानी फ़ितरत और दरकते रिश्ते…..


दो बहनें थी अनुराधा और सोनाली दोनों पढ़ी लिखी फैमिली से ताल्लुक रखती थीं.....पिता फौज में कर्नल थे....देश की राजधानी दिल्ली में रहता था परिवार....अचानक इस परिवार पर किसी की नज़र लग गई....पहले पिता फ़िर मां की मौत हो गई....दोनों बहने इस सदमें को बर्दाश्त कर सकने में नाकाम हो गईं....लेकिन उम्मीद अभी भी बाकी थी....वो उम्मीद थी उनका छोटा,लाड़ला और प्यारा भाई...दोनों ने चाहा कि शायद अपने इस भाई के बूते ही वो अपनी सारी ज़िंदगी गुजार देंगी....उसे पढ़ा-लिखा कर इस लायक बनाया कि वो अपनी ज़िंदगी बेहतर तरीके से गुज़ार सके.... और साथ ही कुर्बानी दी कि अगर उन्होने शादी की तो शायद उनका भाई अकेला पड़ जाएगा.....और कैसे अपनी ज़िंदगी गुज़ारेगा....और मां-बाप के बाद आख़िर वही तो उसकी मां-बाप है....अच्छे ख़ानदान में उसकी शादी कर दी....लेकिन कुछ दिन के बाद दोनों बहनों के सपने टूटने लगे....रिश्ते दरकने लगे....भाई को अपनी ज़िंदगी अपनी बीवी की ज़िंदगी ज्यादा इम्पोर्टेंट दिखाई दी बनिस्पत अपनी बहनों की ज़िंदगी के....उन बहनों की जिन्होने अपनी ज़िदगी अपने भाई के नाम कर दी थी....अपनी अच्छी नौकरियों को ठुकरा दिया था....सिर्फ़ इसलिए कि उनका भाई उनका सहारा बनेगा....लेकिन अफ़सोस....
    ये कोई कहानी नहीं बल्कि हक़ीक़त है....कड़वी सच्चाई है...हमारे ढोंगी समाज की....वो समाज जो आधुनिकता की चकाचौंध में ये भूल गया है कि इंसान का इंसान से हो भाईचारा....अनुराधा और सोनाली 6 माह तक अपने आप को कमरे में कैद करके बैठ गईं....और पड़ोसियों तक को इसकी भनक न लगी.....आख़िर किस दौर में जी रहें हैं हम....क्यों हमारी संवेदनशीलता मर गई है...क्यों हमें किसी का दुख दिखाई नहीं देता....एक इंसान सड़क पर दम तोड़ देता है और हम उसे अपनी आंखों के सामने मरते हुए देखने के बाद ऐसे चले जाते हैं जैसे सिनेमा हाल से कोई फ़िल्म देखकर बाहर निकले हों.....
     बड़े शहरों में फ्लेटी संस्कृति में जीने के आदी हो चुके समाज के ज्यादातर लोगों को किसी से कोई मतलब नहीं....उनका भगवान और भाई सिर्फ़ पैसा और पैसा है....इस पैसे और भागदौड़ वाली ज़िंदगी में न तो उनके पास अपने लिए वक्त है और न ही अपने मां-बाप और रिश्तेदारों के लिए यहां तक की पड़ोसियों तक के लिए भी नहीं....लेकिन शायद वो ये भूल रहे हैं कि वक्त कितना बेरहम है.....वो जितना आगे ले जाता है वहीं वापस लाकर पटक भी देता है....मानवता शायद बड़े और मैट्रो शहरों में मर चुकी है....लोग चाहतें हैं कि कोई उनसे मतलब न रखे...आज एक पड़ोसी अपने दूसरे पड़ोसी का नाम तक नहीं जानता...अगर कोई हादसा होता है तो पड़ोसी सच बताने से इंकार कर देता है इसका क्या मतलब है....इसका मतलब साफ़ है,जब उसने कोई मतलब नहीं रखा तो हम क्यों रखें....अजी हम आपके हैं कौन....
    अनुराधा की मौत ने झकझोर दिया है हम जैसे लोगों को....आख़िर कहां जा रहे हैं हम...क्या सिर्फ़ अपने लिए जीना ही जीना है....असली जीना तो दूसरे के लिए है...एक इंसान दूसरे के लिए अपनी ज़िंदगी दांव पर लगा दे...इससे बड़ा बलिदान और क्या हो सकता है....यही किया है अनुराधा और सोनाली ने....लगा दी अपनी ज़िंदगी अपने भाई के लिए दांव पर....क्या वे शादी करके अपनी ज़िदगी नहीं संवार सकती थीं....क्या उनमें जीने की तमन्ना नहीं थी....क्या वे नहीं जानती थीं कि अगर उनका भाई उनका सहारा बन गया तो वे अपनी ज़िंदगी उसी के सहारे काट देंगी....पर अफ़सोस ऐसा हो न सका....दोनों बहने भाई के उन्हे अकेला छोड़कर चले जाने के ग़म में सदमें में चली गईं.....और क़ैद कर लिया अपने आपको..... इस झूठे समाज से....यहां तक कि उस सूरज से भी जो दुनिया में रोशनी बिखेरता है.....नहीं चाहिए कोई रोशनी....जब रिश्ते ही दरक चुके हैं.....
      अब लाख चीख लें चिल्ला लें...कुछ नहीं हो सकता...क्या अनुराधा वापस लौटकर आ सकती है....नहीं न....तो फ़िर किस बात का हो हल्ला....कमेटी बिठाओ....जांच करो....सब सियासत...झूठी बातें...कोरी बकवास...होना तो ये चाहिए कि ध्यान रखें अपने रिश्तेदारों और पड़ोसियों का...ख़्याल रखा जाए आसपास के लोगों का...लोगों का इंसानियत के नाम पर आपसी मेलजोल बरकरार हो....फ़िर शायद कोई अनुराधा और सोनाली इस तरीक़े से अपने आपको घर में कै़द न कर सके...कोशिश तो की ही जानी चाहिए....उन्हे भी जो सियासतदां है और उन्हे भी जो मैट्रो संस्कृति का हिस्सा हैं...औऱ स्टेट सिंबल की ख़ातिर ही सही..ढोंगी ज़िंदगी जीने के आदी हो चुके हैं.....

Monday, April 11, 2011

दलाल...


कैसी बात कर रहे हैं सर....मुझपे यकीन नहीं है....क्या... एकदम हो जाएगा ...पक्का हो जाएगा सर.. बस आप टेंशन लेना छोड़ दिजिए....नोटों की गड्डियां अपने बैग में समेटते और कुटिल मुस्कुराहट चेहरे पर लाते....नेता चमनलाल को पूरी डिलिंग पानी दे रहा था...संतोष....अच्छा सर निकलते हैं....आफिस पंहुचकर फोन करते हैं....एडीटर साब काम पक्का होना चाहिए नहीं तो चमनू नेता को तो आप जानते ही हैं....साला इतना हरामी है कि सड़क पर कुर्ता फाड़ने में भी देर नहीं लगाएगा....बरसों से जानता हूं हरामी है नं वन का.....हमारा क्या.... सर ये लिजिए...चाय मंगवा लिजिए वर्मा जी अब....बिल्कुल...क्यों नहीं....देखो संतोष किसी को भी कानोंकान ख़बर नहीं होनी चाहिए कि हम चमनू के लिए काम करते हैं....अगर किसी को पता चल गया तो...अग्रवाल लात मार के निकाल बाहर करेगा....करने दिजिए न सर....साला इतना कमा चुके हैं कि....चुप करो यार तुम...दीवारों के भी कान होते हैं.....ठीक है सर में निकलता हूं.....
     पत्रकार के नाम पर दलाल था संतोष....कोई भी कैसा भी काम हो चुटकी बजाते ही निकलवा देता....कौन सा नेता औऱ बड़ा अफ़सर नहीं जानता उसे....महज चंद सालों में ही....वो करोड़पतियों में शामिल हो गया....उसने पत्रकारिता में अपनी दबंगई दिखा रखी थी...नेता चमनलाल अपने इलाके से अपने नालायक और गुंडागर्दी के लिए मशहूर बेटे को उपचुनाव में लड़वा रहा था,इसके लिए उसने अपने बेटे की छवि बदलने का ठेका दिया था संतोष को….अपनी रिपोर्टिंग से माहौल को चमनू के पक्ष में करवा दिया संतोष ने....कह रहे था न सर जीत आपकी ही होगी....मान गए संतोष...दम है वाकई तुझमें...खुशी के मारे फूल कर गप्पा हो रहा था....चमनू
     ये क्या किया तुमने संतोष....सारी ताकत झौंक दी उस गुंडे रजनू के लिए...आख़िरकार जीतवा ही दिया तुमने उसे.....रहने दो यार...मुझे ज्यादा डीलिंग-पानी मत दो...अच्छी तरह जानता हूं मैं....क्या-क्या नहीं किया था मैने ईमानदारी के लिए पर क्या मिला मुझे...ताने...फटकार...ज़िल्लत..और तुम भी तो मेरे संघर्ष के दिनों के साथी हो...कौन जानता है तुम्हे आज....चार अख़बार तो छोड़ो मैग़जीन के मालिक तक ने तुम्हे नौकरी नहीं दी....पीटते रहो ढोल ईमानदारी का....देखो अगर आज पत्रकारिता करनी है तो ये सब तो करना ही पड़ेगा....मिशन नहीं है ये बिजनेस है....बिजनेस...समझे....लो पियो....मैं नहीं पीता...तुम अच्छी तरह जानते हो फिर भी....ख़ैर....ये बताओ...अख़बार निकलवा दूं एक तुम्हारा...नहीं कोई ज़रुरत नहीं है...बस यही तो एक कमी है तुझमें....कभी भी किसी का सहारा नहीं लेगा....अबे यूं ही घुट-घुट के मर जाएगा एक दिन.....मेरी एक बात मान ये सब छोड़ दे मेरे भाई....मेहनत कर अपनी ज़िंदगी संवार...देख आज आख़िरी बार कह रहा हूं...इसके बाद शायद ही मैं तुझे मिल पाउं......बस-बस रहने दे...ठीक है...मैं निकलता हूं...जा-जा... जी अपनी ईमानदारी वाली ज़िंदगी जी....अपने जिगरी दोस्त नितिन को शराब के नशे में जोर-जोर से चिल्लाते हुए...कह रहा था संतोष....लेकिन कहीं-न-कहीं खुद उसे महसूस हो रहा था कि ये सब ग़लत है जो वो कर रहा है....आखिर क्या सोचकर आया था वो पत्रकारिता में...यही न कि वो लोगों की मदद करेगा....हर शख़्स की मदद करेगा जो.. उससे जो बन पड़ेगा सब करेगा मग़र...
          अचानक सौम्या ने आवाज़ दी....कितनी पी ली रात को...आफ़िस नहीं जाना है क्या....हड़बड़ाकर उठ बैठा संतोष....ये क्या कर रहे हो संतोष कहीं तुम पागल तो नहीं हो गए....अब तक पागल था मैं वर्मा जी....पर अब नहीं मैं न सिर्फ़ यहां से रिजाइन दे रहा हूं बल्कि इस पेशे को ही छोड़ रहा हूं....कहां जाओगे....गांव...क्या रखा है गांव में... बहुत कुछ....वो सब जो यहां हासिल नहीं किया जा सकता...एक बार ओर सोच लो संतोष.....वर्माजी....संतोष ने सोच लिया है....इतना कि शायद ताउम्र न सोच सके.....चलता हूं.....
         

Friday, April 8, 2011

बोझ....


भईया.....तुम हर वक्त फालतू की बकवास मत किया करो....क्या मैं आफिस नहीं जाता....क्या मैं अपने बच्चे नहीं पाल रहा हूं....किया मैं टेशंन में नहीं जी रहा हूं....फ़िर क्यों आप मुझे ये सब सुनाते रहते हैं....देखो भईया मां को मैने तीन बार अस्पताल में दिखा दिया है....आपसे छोटा हूं इसका मतलब ये नहीं कि आप जो चाहें कहें...अब में ज्यादा नहीं झेल सकता....आप मां को गांव भेज दो या फिर उन्हे अपने पास रख लो जैसा आपकी मरजी....मैं थक चुका हूं.....आप को क्या पड़ी थी मां को यहां बुलाने की अच्छी खासी मां गांव में रह रही थी खेती-बाड़ी की भी देखभाल हो जाया करती थी अब वो भी चौपट हो गई....फोन पर जोर-जोर से अपने बड़े भाई बिरजू से बतिया रहा था मोहन.....दोनों बड़े शहर में अच्छी नौकरी पर थे....गांव में रहने वाली मां के घुटनों में हुई तकलीफ़ के चलते बिरजू मां को गांव से शहर ले आया....कुछ दिन तो ठीक रहा लेकिन धीरे-धीरे मां दोनों भाइयों पर बोझ लगने लगी....
     शहर में हाईसोसाइटी की ढोंगी ज़िंदगी जीने वालों में से एक थे मोहन और बिरजू....पढ़ाई के बाद दोनों की अच्छी नौकरी लग गई....शहरी और अपने आप को मार्डन कहलाने वाली लड़कियों से ही दोनों ने प्यार के नाम पर शादी की....हालांकि मां कहते-कहते थक गई कि दोनों में से एक तो गांव में शादी कर ले ताकि उनके पिताजी का मान रह सके पर दोनों ने अपनी मां की एक न सुनी....और शहर में ही शादी रचा डाली.....दोनों भाई जब-तक पढ़ाई में लगे रहे तो आपस में बड़े ही प्यार से रहते थे....शादी के बाद दोनों की अलग-अलग नौकरी लग जाने से दोनों जुदा हो गए.....
     लेकिन अचानक मां को तकलीफ़ पैदा हो जाने से दोनों के रिश्तों में कड़वाहट आ गई....मां शहर में बोझ बन गई दोनों पर....दोनों आए दिन एक दूसरे पर कटाक्ष करते रहते....और तू संभाल-तू संभाल का खेल खेलते रहते....दोनों की ज़िंदगी इस टेंशन में कट रही थी कि मां को गांव से बुलाया ही क्यों....मोहन का कहना था कि जब मां गांव से शहर आने के लिए राजी नहीं थी तो मां को शहर ले के क्यों आए...और बिरजू मोहन पर इल्ज़ाम लगाता कि मां कि देखभाल का जिम्मा क्या उसने अकेले ले लिया है....
     देख मोहन मेरे भाई....में तेरा दुश्मन नहीं हूं...यार मैं अच्छी तरह जानता हूं कि शहर की कैसी लाइफ़ है....भईया मैं तो आपसे पहले ही कह रहा था मां को गांव के डाक्टर के अलावा किसी की दवाई सूट ही नहीं होती आपने फालतू में ही....अच्छा भला रहती थी मैं गांव में साथ-साथ खेती का अनाज भी आ जाया करता था....कम-से-कम अनाज तो नहीं खरीदना पड़ता था...मां खुद ही बोरियां भिजवा दिया करती थी....यहां तक कि किराया भी मां ही दे दिया करती थी पर आपने सब चौपट कर दिया....अरे अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा....यार देख मां को गांव से मैं लाया था....तू कल मां को गांव छोड़ आ....तेरा जो भी खर्चा लगेगा वो में दो दूंगा....तेरी भाभी भी कह रही थी कि मां कि वजह से दोनों भाईयों में खटास पैदा हो गई है....इसे जल्दी से दूर करो....
     चलो मां जल्दी करो.....बस का टाइम हो गया है....बिटवा हम तो पहले ही कहत रहिन के हमका शहर अच्छा नाहि लगत....मां समझते हुए भी अन्जान बनी रही....ठीक है मां अब....तुम गांव में ही रहो....खेती-बाड़ी तुम ही संभाल सकती हो..हमारे बसका नहीं है ये सब....
     अच्छा मां चलता हूं.....अपना ध्यान रखना....कोई परेशानी हो तो फोन कर लेना.....मां....इस सीजन में होने वाले धान की कुछ बोरियां भिजवा देना...तुम तो जानती हो शहर में चावल कितना मंहगा मिलता है....ठीक है....धीमी आवाज़ में सर हिलाकर रह गई मां....
     कुछ कह तो नहीं रही थी मां.....नहीं कुछ भी नहीं....अच्छा वो धान का क्या हुआ....अब तो अगली फसल पर ही भिजवाएगी मां....ठीक है यार कौन सी जल्दी पड़ी है.....चल चाय पी....

Wednesday, April 6, 2011

आख़िर क्या बला है....लोकपाल बिल....


देश में लगातार बढ़ रहे घोटालों और रिश्वतख़ोरी से तंग आकर कई लोगों ने एक ख़ास मुहिम शुरु कर दी है,दरअसल सरकार के कई नुमाइंदों के इसमें शामिल होने से मामला ज्यादा संगीन हो गया है। आज आम आदमी को हर जगह सरकारी काम निकलवाने के लिए रिश्वत देनी पड़ रही है,इसके लिए चाहे उसका काम हो या न हो। हमारे देश में लाखों लोग हर साल करोड़ों रुपए का टैक्स देते हैं पर उसका उनको कोई भी फायदा नहीं मिल पाता है,ज्यादातर पैसा नेताओं और बड़े उंचे ओहदों पर बैठे अधिकारी हड़प कर जाते हैं,मामले का खुलासा होने के बाद भी नतीजा सिफ़र ही निकलता है क्योंकि ज्यादातर लोग मामले से बरी हो जाते हैं।
     सरकारी लोकपाल के पास भ्रष्टाचार के मामलों पर ख़ुद या आम लोगों की शिकायत पर सीधे कार्रवाई शुरु करने का अधिकार नहीं होगा. सांसदों से संबंधित मामलों में आम लोगों को अपनी शिकायतें राज्यसभा के सभापति या लोकसभा अध्यक्ष को भेजनी पड़ेंगी.वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के तहत लोकपाल ख़ुद किसी भी मामले की जांच शुरु करने का अधिकार रखता है. इसमें किसी से जांच के लिए अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं है.
        सरकारी विधेयक में लोकपाल केवल परामर्श दे सकता है. वह जांच के बाद अधिकार प्राप्त संस्था के पास इस सिफ़ारिश को भेजेगा. जहां तक मंत्रीमंडल के सदस्यों का सवाल है इस पर प्रधानमंत्री फ़ैसला करेंगे. वहीं जनलोकपाल सशक्त संस्था होगी. उसके पास किसी भी सरकारी अधिकारी के विरुद्ध कार्रवाई की क्षमता होगी.सरकारी विधेयक में लोकपाल के पास पुलिस शक्ति नहीं होगी. जनलोकपाल न केवल प्राथमिकी दर्ज करा पाएगा बल्कि उसके पास पुलिस फ़ोर्स भी होगी.अगर कोई शिकायत झूठी पाई जाती है तो सरकारी विधेयक में शिकायतकर्ता को जेल भी भेजा जा सकता है. लेकिन जनलोकपाल बिल में झूठी शिकायत करने वाले पर जुर्माना लगाने का प्रावधान है.सरकारी विधेयक में लोकपाल का अधिकार क्षेत्र सांसद, मंत्री और प्रधानमंत्री तक सीमित रहेगा. जनलोकपाल के दायरे में प्रधानमत्री समेत नेता, अधिकारी, न्यायाधीश सभी आएँगे.
         लोकपाल में तीन सदस्य होंगे जो सभी सेवानिवृत्त न्यायाधीश होंगे. जनलोकपाल में 10 सदस्य होंगे और इसका एक अध्यक्ष होगा. चार की क़ानूनी पृष्टभूमि होगी. बाक़ी का चयन किसी भी क्षेत्र से होगा.सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल को नियुक्त करने वाली समिति में उपराष्ट्रपति. प्रधानमंत्री, दोनो सदनों के नेता, दोनो सदनों के विपक्ष के नेता, क़ानून और गृह मंत्री होंगे. वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल में न्यायिक क्षेत्र के लोग, मुख्य चुनाव आयुक्त, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, भारतीय मूल के नोबेल और मैगासेसे पुरस्कार के विजेता चयन करेंगे.सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल को नियुक्त करने वाली समिति में उपराष्ट्रपति. प्रधानमंत्री, दोनो सदनों के नेता, दोनो सदनों के विपक्ष के नेता, क़ानून और गृह मंत्री होंगे. वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल में न्यायिक क्षेत्र के लोग, मुख्य चुनाव आयुक्त, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, भारतीय मूल के नोबेल और मैगासेसे पुरस्कार के विजेता चयन करेंगेलोकपाल की जांच पूरी होने के लिए छह महीने से लेकर एक साल का समय तय किया गया है. प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के अनुसार एक साल में जांच पूरी होनी चाहिए और अदालती कार्यवाही भी उसके एक साल में पूरी होनी चाहिए.
       सरकारी लोकपाल विधेयक में नौकरशाहों और जजों के ख़िलाफ़ जांच का कोई प्रावधान नहीं है. लेकिन जनलोकपाल के तहत नौकरशाहों और जजों के ख़िलाफ़ भी जांच करने का अधिकार शामिल है. भ्रष्ट अफ़सरों को लोकपाल बर्ख़ास्त कर सकेगा.सरकारी लोकपाल विधेयक में दोषी को छह से सात महीने की सज़ा हो सकती है और धोटाले के धन को वापिस लेने का कोई प्रावधान नहीं है. वहीं जनलोकपाल बिल में कम से कम पांच साल और अधिकतम उम्र क़ैद की सज़ा हो सकती है. साथ ही धोटाले की भरपाई का भी प्रावधान है.ऐसी स्थिति मे जिसमें लोकपाल भ्रष्ट पाया जाए, उसमें जनलोकपाल बिल में उसको पद से हटाने का प्रावधान भी है. इसी के साथ केंद्रीय सतर्कता आयुक्त, सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा सभी को जनलोकपाल का हिस्सा बनाने का प्रावधान भी है.

Monday, April 4, 2011

हमसफ़र....


ये क्या बकवास कर रहे हो अनवर.....मैं....मैं कैसे तरन्नुम से शादी कर सकता हूं यार.... तुमने मुझे क्या समझ लिया है...देख यार ज़फ़र मैं तेरे हाथ जोड़ता हूं पांव पड़ता हूं...यार मेरी इज्ज़त बचा ले मेरे भाई...मैं ज़िंदगी भर तेरा ये अहसान नहीं भूलूंगा...देख तुझे जो चाहिए....सबकुछ ले-ले यार पर तरन्नुम से निकाह कर ले....अबे कैसी पागलों जैसी बात कर रहा है तू...तू सब जानता है कि मैं शहाना से मुहब्बत करता हूं फ़िर भी....और मक़सूद का क्या...उसी से तो तरन्नुम की शादी तय थी....फ़िर....अरे यार कैसे बताउं तुझे लंबी कहानी है....वो हरामजादा रास्ते से ही कहीं भाग गया....अबे ये क्या मजाक है....ऐसे कैसे भाग गया वो....उसके मां-बाप रिश्तेदार को पकड़...यार देख अगर यही सब होता रहा न तो बहुत देर हो जाएगी....पता नहीं किस जनम का बदला लिया है मक़सूद ने....उसके मां-बाप तो खुद हैरान हैं...
     अब तेरे हाथों मैं ही हमारी इज्ज़त है....रोते हुए ज़फ़र के कदमों में गिर पड़ा अनवर....अपनी इकलौती बहन तरन्नुम को जी-जान से चाहता था वो....जफ़र अनवर का सबसे क़रीबी और गहरा दोस्त था....कई एहसान थे ज़फ़र पर अनवर के........यार जल्दी कर...सोच क्या रहा है.....क्या तरन्नुम खुबसूरत नहीं है....पढ़ी लिखी नहीं है...तू तो सब जानता है....यार वो बात नहीं है...मैं शहाना को क्या जवाब दूंगा....और मैने कभी तरन्नुम को इस निगाह से देखा तक नहीं....निकाह का वक्त हो रहा है शाम होने को है...सब ठीक हो जाएगा मेरे यार....अल्लाह सब ठीक कर देगा...तू एक बार हां तो कर दे.......यार मेरी इज्ज़त का सवाल है भाई.....
   जी कबूल किया मैने....मुबारक हो...मुबारक हो...अंदर ही अंदर घबरा रहा था ज़फ़र....यार ये कहां फंस गया मैं....अब मैं शहाना को.... अपने घरवालों को क्या जवाब दूंगा....चेहरे का रंग उड़ा हुआ था...धीरे-धीरे एक-एक कर सारे रिश्तेदार अपने-अपने घरों को वापस लौट गए....उधऱ ज़फर का बुरा हाल हो रहा था...अपने कमरे में चक्कर काट-काट कर वो परेशान हो गया था.....वो सोच रहा था कि जिस लड़की को ईद पर ईदी देता था वही आज उसकी दुल्हन बन गई है...आप कुछ परेशान नज़र आ रहे हैं....तरन्नुम ने कहा....तुम सो जाओ चुपचाप...क्या तुम नहीं जानती थीं ये सब....तुम मना भी तो कर सकती थीं लेकिन तुमने एक बार भी मना नहीं किया....आखिर मेरा कसूर क्या था कि मेरा तुम्हारे घर आना जाना था बस...इसकी मुझे इतनी बड़ी सज़ा मिलेगी मुझे ज़रा भी इल्म नहीं था....देखो तुम और मैं ज्यादा दिन साथ नहीं रह सकते....पीछे पलटकर कहा ज़फ़र ने....अब तुम रो क्यों रही हो....सो जाओ....
     यार ज़मील उस साले हरामख़ोर मक़सूद को मैं ज़िंदा नहीं छोड़ुगां....उसका पता लगा कि वो आखिर है कहां....अरे होना कहां है.....वो बैठा....नुक्कड़ पर... साले हरामख़ोर तेरे गाल पर पड़े ये दो तमाचे तुझे ताउम्र याद रहेंगे..तेरी वजह से दो ज़िंदगियां बर्बाद हो गईं....जब तुझे शादी करनी ही नहीं थी तो तूने हामी क्यों भरी...गिरेबां पकड़ कर झुझला रहा था ज़फ़र मक़सूद का...छोड़ो ज़फ़र तुम भी इसके जैसे हो क्या...ज़मील ने उसे अलग करते हुए कहा...नहीं यार ये साला दोस्ती के नाम पर कालिख़ है...सिर्फ़ चंद पैसों की ख़ातिर इसने....
   नहीं ज़मील मैं किस मुंह से शहाना के सामने जाउंगा...यार मैने उससे वादा किया था कि नौकरी लगते ही मैं उससे शादी कर लूंगा...फ़िर भी तुझे उससे बात करनी चाहिए....नहीं यार...नहीं..नहीं बात कर के देख...तेरे दिल का बोझ भी हल्का हो जाएगा और सच्चाई जानकर शहाना तुझे माफ़ भी कर सकती है....मैं जानता हूं उसे...यार मुझसे बेहतर कौन जानता होगा उसे....ठीक है मैं कल ही उससे मुख़ातिब होता हूं.....
    शहाना मेरी बात तो सुनो...मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी....चले जाओ यहां से...इससे पहले कि मैं तुम्हारी सरेआम बेइज्ज़ती कर डालूं....एक बार मेरी बात तो सुनो....नहीं सुननी तुम्हारी बात....गेट आउट फ्राम हियर....और अपनी शक्ल आइंदा मुझे मत दिखाना....
    मुंह लटकाए सड़क पर चल रहा था...ज़फ़र...ऐसा क्या गुनाह कर डाला मैने....जिसकी सज़ा मुझे मिल रही है.....यार तू अल्लाह पर भरोसा रख सब ठीक हो जाएगा...देख शायद तेरी किस्मत में तरन्नुम थी शहाना नहीं... कभी-कभी किस्मत में वो सब होता है जो हम नहीं चाहते....ये भी अल्लाह की मरज़ी है....देख अब तरन्नुम को कोई बात मत कहना नहीं तो बेचारी....यार मैं अच्छी तरीक़े से जानता हूं कि उसमें इसका कोई कसूर नहीं है....हम मुसलमानों में शादी से पहले लड़की देखना भी गुनाह करार दिया गया है....ये कहां तक जायज़ है....ज़िंदगी हमें बितानी होती है और फैसला कोई और करता है....क्यों नहीं अनवर ने तरन्नुम से उसकी पसंद के बारे में पूछा....बस मक़सूद जैसे लड़के से उसकी शादी तय कर दी....अब ज़िंदगी भर झेलते रहो....नाइत्तेफ़ाकी तो रहेगी मेरे और तरन्नुम के दरमियान....नहीं यार ऐसा नहीं है....ये सब तुझ पर है तू किस तरीक़े से अपनी ज़िदगी बिताता है....और तरन्नुम कोई बुरी लड़की नहीं है....ये तू अच्छी तरह से जानता है....देख अब तेरी नौकरी भी लग गई है....तुझे ज्यादा परेशान होने की ज़रुरत नहीं.....वक्त पर सब मुनासिब होता जाएगा....तू कब तक माज़ी की बातों का बोझ लिए फिरता रहेगा.....तू सही कह रहा है यार शायद नसीब में यही लिखा था....
   मुझे मुआफ़ कर दो तरन्नुम उस दिन गुस्से में मैने तुम्हे काफ़ी कुछ बुरा भला कह दिया...आपने जो भी कहा जायज़ कहा इसमें आपकी कोई गलती नहीं है....लेकिन मैं आपसे वादा करती हूं कि सारी ज़िंदगी आपकी हमसफ़र बनकर चलूंगी....मुझ पर इत्मीनान रखें आप....कभी भी कोई शिकायत पाएंगे मुझसे....नम आंखों से कह रही थी तरन्नुम.... मुझे एक बार फ़िर से माफ़ कर दो तरन्नुम.....चलो सामान पैक करो हमें कल ही अम्मी-अब्बू के पास गांव जाना है....अब आंसू पोंछ दो जो हुआ सो हुआ सो बेहतर....गले से लगा लिया ज़फ़र ने तरन्नुम को.....

हम भी हैं जोश में....


क्यूं रे चंपू बड़ा उछल रयो थो उस दिन.किस दिन मामू....अरे उस दिन....जब इंडिया ने वर्ल्ड कप जीतो थो....वो..वो.. मैं अपने आप पर काबू न रख पा रयो थो...अबे सारे पटाखे मेरे घर के आगे क्यूं फोड़ रयो थो....मैं कहो न मामू....मैं अपने आप पर काबू न रख पा रयो थो....अरे तेरी ऐसी कम तैसी....अपने घर के गमले न फोड़ सको थो तू...न मामू... इतनो तो काबू थो....पर मामू जानो हो कै सभी खिलाड़ियां नू खुब पैसो दियो है सरकार...हां जानू हूं....कित्तो पैसो दियो है....मैं भी सोच रयो हूं कै...क्रिकेट को अपना कैरियर बना डालूं....किस्मत ने साथ दियो तो अगले वर्ल्ड कप मैं...मैं भी....मैं भी क्या....मैं भी...खेल सकोगों...स्पिन बढ़िया कर लेतो हूं मैं.....जानू हूं कौन सो स्पिन कर लेतो हो....दिन भर आवारागर्दी की स्पिन करतो फिरतो हो....30 का हो गयो हो औऱ मौहल्ले के नए छोरों का सरदार बना फिरतो हो....कुछ काम-धाम तो है नहीं....बस मामू आपको आशिर्वाद चाहियो है....जा अब बहुत हो गयो है....चार साल बाद दूंगो अपनो आशिर्वाद....जब तेरी उमर ही गुजर जाएगी....फूट यहां से...यो तो इंडिया को वर्ल्ड कप जीतने की खुशी में मैने माफ़ कर दियो है वरना........पर मामू एक फायदे की बात तो बताना ही भूल गयो.....क्या...मामू दरअसल ख़बर यो है कै मुझे एक लड़की बहुत पसंद है....पर उसको खूसट बाप न मानो है तो मैं क्या कर सको हूं....अरे उसे अपनी बेटी की किस्मत फोड़नी है जो तुझसे....अरे मामू तुम तो बिल्कुल सही जा रयै हो.....खैर छोड़ो ये बताओ कै....मुहल्ले में होने वाले आईपीएल मेरा मतलब है कि ट्वंटी-ट्वंटी मैच में किस टीम का साथ दै रयो हो....अबे तुझे क्यू बताउं....दिस इज द सीक्रेट...वाह मामू....अंग्रेजी....कब से....चुपकर....चल भाग यहां से......बस मामू....एक बात और....कसम से बात फायदे की है....अच्छा ये बताओ....आईपीएल मैचों के लिए मुहल्ले में बड़ी टीवी का बंदोबस्त कर रयो हूं ताकि लोग आराम से मैचों को आनंद उठा सकें.....क्या कहो हो.....अबे क्या सारे मैचों का ठेका ले लियो है....फिर से मेरे घर के आगे पटाखे फोड़ने को बंदोबस्त कर रयो है.....अच्छा मामू ये बताओ...चंदा कितनो दोगे...कैसो चंदो.....मैच को चंदो....अरे वो तो टीवी पर फ्री में आएगो....तो फिर किस बात को चंदो दूं....इस बार कतई न दूंगों पिछली बार तू और तेरी आवारा टीम ने मुझे बेवकूफ़ बनायो थो....इस बार एक रुपए भी न दूंगों....समझे....मेरे अच्छे मामू....समझा करो हमारी इज्जत को सवाल है....अबे कैसी इज्ज़त....अबे तेरो तो कोई इज्ज़त न है...कितनी बार लड़कियों से पीट चुको हो....मामू पुरानी यादें ताजा मत कराया करो.....सुखद अहसास मिट जाए है....देख अब यहां से निकल ले वरना....वरना क्या....अपनी छोरी से मेरी शादी करवा दोगो.....अबे भागता है कि नहीं...ठीक है...ठीक है....अपने आप पर कंट्रोल कर रयो हूंअच्छा मामू चलते-चलते ये तो बताओ कै....इस बार आईपीएल कौन सी टीम जीतेगी...मुझे क्या पता....हैं....क्रिकेट तो खुबसारा देखो हो....बताने से इंकार कर रयै हो....मामी से जाके कह दूं कै मैचों पर सट्टा....अबे कैसी बातें कर रयो है....सौ-पचास रुपए लग जाने को सट्टो को नाम दे रयो है....बात एक रुपए की भी वही है...जानो हो मामू इस बार के वर्ल्ड कप में पूरे 30 हजार करोड़ रुपए को सट्टो लगो थो....अबे तू क्या अंतरयामी है...सब जाने है...जानू हूं....जानू हूं...तभी तो बता रयो हूं....क्रिकेट मेरी आत्मा में बसो है....हां और तेरी नस-नस में आवारापन भी तो बसो है इसका क्या....मामू ये घुमफिर कर एक ही जगह से गाड़ी क्यों पकड़ो हो....बहुत हो गई....अब देखना आईपीएल के फाइनल के दिन सारी रात सोने न दूंगों....कसम....शरद पवार की....  

Saturday, April 2, 2011

समझौता....


नज़रें क्यों चुरा रही हो मुझसे....इसमें तुम्हारी क्या ख़ता थी....शायद उपरवाले ने हमारा मिलना फ़िर से मुकर्रर किया था सो आज यहां मुलाकात हो गई....देखो जो हो गया सो हो गया अब माज़ी की बातों पर आंसू बहाना कहां तक मुनासिब है....ख़ैर छोड़ो ये बताओ....कैसी हो तुम....अच्छी हूं आप कैसे हैं.....बस देख लो जी रहा हूं.....तुम्हारी यादों में.....तुम बिल्कुल नहीं बदले....वही मजकिया लहज़ा बरकरार रखे हो अभी तक....इसे हमेशा बरकरार रखना....आंखों में आंसू लिए कह रही थी मरियम...सुना है तुम बहुत बड़े शायर बन गए अब लोगों से कम ही मिलते-जुलते हो....कभी हमारे ग़रीबख़ाने पर भी तशरीफ़ ले आओ....बिल्कुल...वक्त मुनासिब रहा तो ज़रुर आउंगा.....वैसे अब कहां हो....हैदराबाद में....अरे सुनिए ज़रा इधर आइए....ये हैं मेरे ख़ाविंद अकबर इनका एक्सपोर्ट का बिजनेस है....जी बेहद ख़ुशी हुई आपसे मिलकर....कभी आइएगा....जी ज़रुर....मैं निकलता हूं मरियम, इंशाअल्लाह फ़िर कभी मुलाकात होगी...ठीक है....अल्लाह हाफ़िज़....
     अचानक मरियम से यूं मुलाकात हो जाएगी....आतिफ़ ने कभी सोचा न था....गाड़ी तेजी से सड़क पर दौड़ रही थी,पुराने ख़्याल आंखों के आगे चहलकदमी करने लगे....कालेज में मरियम की ख़ुबसूरती के कायल थे सभी,हर कोई चाहता था कि मरियम से दोस्ती की जाए....कितने आशिकमिजाज़ लड़के दिनभर उसे देखकर आंहे भरते रहते थे....लेकिन मरियम इन सबसे बेफ़िक्र थी....उन दिनों कालेज में हुए अंज़ुमन में आतिफ़ की शायरी पर फ़िदा हो गई थी मरियम...जहां सभी मरियम पर फिदा थे मरियम आतिफ़ पर फिदा थी।अक्सर अपनी दोस्तों से आतिफ़ की शायरी के बारे में गुफ़्तगु करते करते वो कब दिन गुज़ार देती उसे खुद पता नहीं चलता। अरे अज़मल मुझे आतिफ़ से एक बार मिलवा दो प्लीज़....मुझे उनसे कुछ शेरो-शायरी सीखनी है...
     ये हैं मि.आतिफ़ और जनाब ये हैं आपकी जबरदस्त फैन मरियम ये यहीं जामिया में उर्दू की पढ़ाई कर रही है....जी आपसे मिलकर हमें बेहद खुशी हुई....अज़मल बता रहे थे कि आपको भी शेरो-शायरी का काफ़ी शौक़ है...जी थोड़ा बहुत....होना चाहिए....बिल्कुल होना चाहिए शेरो-शायरी हमारे दिलों को जोड़ने का काम करती है...शेरो-शायरी के बहाने धीरे-धीरे क़रीब आ गए आतिफ़ और मरियम...
     ये क्या कह रहें हैं अब्बू आप.....अभी मुझे शादी नहीं करनी....मुझे पढ़ाई करनी है....शादी अभी नहीं होगी....पढ़ाई के बाद होगी हम फिलहाल तुम्हारा रिश्ता पक्का कर रहे हैं....पर अब्बू आपको इतनी भी क्या जल्दी है....देखो ज्यादा बकवास मत करो ख़ानदान बहुत अच्छा है....कारोबारी लोग हैं ऐसे रिश्ते बार-बार नहीं मिलते और जब वो लोग खुद ही तुम्हे अपनाना चाहते हैं तो फिर परेशानी क्या है आखिर शादी तो हमें तुम्हारी करनी ही है....आज नहीं तो कल....क्या बकवास कर रही हो तुम...गाल पर एक करारा तमाचा मारते हुए मरियम के अब्बू का गुस्सा सातवें आसमान पर पंहुच गया....क़त्ल कर दूंगा में तुम्हारा और उस दो टके के शायर का...प्यार करती हो....अरे इसे प्यार कहते हैं...असली प्यार तो शादी के बाद होता है....ख़बरदार जो उस शायर के बच्चे से आज के बाद मिलीं तो दोनों को वहीं दफ़न कर दूंगा...समझी....
     मरियम देखो जो तुम्हे मुनासिब लगे वही करो...अपने अब्बू की बात मान लो शादी के लिए हां कर दो क्या फायदा उनकी दुआ की बजाए बद्दुआ मिले....डरपोक हो तुम...बिल्कुल डरपोक....तुम मुझसे सच्चा प्यार करते ही नहीं थे...तुम समझा करो मरियम डरपोक नहीं हूं मैं....क्या ये मुनासिब है कि हम अपने खानदान की रज़ामंदी के ख़िलाफ़ कोई भी ऐसा कदम उठाएं जिससे हमें परेशानी का सामना करना पड़े....लेकिन मैं तुमसे प्यार करती हूं....कैसे जी पाउंगी मैं तुम्हारे बगैर....अब तो जीना ही होगा...मेरे वालिदेन गुज़र गए तो क्या मैं जी नहीं रहा....ज़िंदगी जीना ही है....चाहे जैसे भी हो....हमें जीना ही पड़ेगा चाहे कितने ही समझौते करने पड़ें....सर एयरपोर्ट आ गया....गाड़ी की सीट से हवाई जहाज तक की सीट तक पुराने ख़्याल उसके ज़ेहन में लगातार कौंध रहे थे...मरियम का खूबसूरत चेहरा और मख़मली आवाज़ उसके कानों में अब भी गुंज रही थी....डरपोक हो तुम...बिल्कुल डरपोक....