Saturday, April 2, 2011

समझौता....


नज़रें क्यों चुरा रही हो मुझसे....इसमें तुम्हारी क्या ख़ता थी....शायद उपरवाले ने हमारा मिलना फ़िर से मुकर्रर किया था सो आज यहां मुलाकात हो गई....देखो जो हो गया सो हो गया अब माज़ी की बातों पर आंसू बहाना कहां तक मुनासिब है....ख़ैर छोड़ो ये बताओ....कैसी हो तुम....अच्छी हूं आप कैसे हैं.....बस देख लो जी रहा हूं.....तुम्हारी यादों में.....तुम बिल्कुल नहीं बदले....वही मजकिया लहज़ा बरकरार रखे हो अभी तक....इसे हमेशा बरकरार रखना....आंखों में आंसू लिए कह रही थी मरियम...सुना है तुम बहुत बड़े शायर बन गए अब लोगों से कम ही मिलते-जुलते हो....कभी हमारे ग़रीबख़ाने पर भी तशरीफ़ ले आओ....बिल्कुल...वक्त मुनासिब रहा तो ज़रुर आउंगा.....वैसे अब कहां हो....हैदराबाद में....अरे सुनिए ज़रा इधर आइए....ये हैं मेरे ख़ाविंद अकबर इनका एक्सपोर्ट का बिजनेस है....जी बेहद ख़ुशी हुई आपसे मिलकर....कभी आइएगा....जी ज़रुर....मैं निकलता हूं मरियम, इंशाअल्लाह फ़िर कभी मुलाकात होगी...ठीक है....अल्लाह हाफ़िज़....
     अचानक मरियम से यूं मुलाकात हो जाएगी....आतिफ़ ने कभी सोचा न था....गाड़ी तेजी से सड़क पर दौड़ रही थी,पुराने ख़्याल आंखों के आगे चहलकदमी करने लगे....कालेज में मरियम की ख़ुबसूरती के कायल थे सभी,हर कोई चाहता था कि मरियम से दोस्ती की जाए....कितने आशिकमिजाज़ लड़के दिनभर उसे देखकर आंहे भरते रहते थे....लेकिन मरियम इन सबसे बेफ़िक्र थी....उन दिनों कालेज में हुए अंज़ुमन में आतिफ़ की शायरी पर फ़िदा हो गई थी मरियम...जहां सभी मरियम पर फिदा थे मरियम आतिफ़ पर फिदा थी।अक्सर अपनी दोस्तों से आतिफ़ की शायरी के बारे में गुफ़्तगु करते करते वो कब दिन गुज़ार देती उसे खुद पता नहीं चलता। अरे अज़मल मुझे आतिफ़ से एक बार मिलवा दो प्लीज़....मुझे उनसे कुछ शेरो-शायरी सीखनी है...
     ये हैं मि.आतिफ़ और जनाब ये हैं आपकी जबरदस्त फैन मरियम ये यहीं जामिया में उर्दू की पढ़ाई कर रही है....जी आपसे मिलकर हमें बेहद खुशी हुई....अज़मल बता रहे थे कि आपको भी शेरो-शायरी का काफ़ी शौक़ है...जी थोड़ा बहुत....होना चाहिए....बिल्कुल होना चाहिए शेरो-शायरी हमारे दिलों को जोड़ने का काम करती है...शेरो-शायरी के बहाने धीरे-धीरे क़रीब आ गए आतिफ़ और मरियम...
     ये क्या कह रहें हैं अब्बू आप.....अभी मुझे शादी नहीं करनी....मुझे पढ़ाई करनी है....शादी अभी नहीं होगी....पढ़ाई के बाद होगी हम फिलहाल तुम्हारा रिश्ता पक्का कर रहे हैं....पर अब्बू आपको इतनी भी क्या जल्दी है....देखो ज्यादा बकवास मत करो ख़ानदान बहुत अच्छा है....कारोबारी लोग हैं ऐसे रिश्ते बार-बार नहीं मिलते और जब वो लोग खुद ही तुम्हे अपनाना चाहते हैं तो फिर परेशानी क्या है आखिर शादी तो हमें तुम्हारी करनी ही है....आज नहीं तो कल....क्या बकवास कर रही हो तुम...गाल पर एक करारा तमाचा मारते हुए मरियम के अब्बू का गुस्सा सातवें आसमान पर पंहुच गया....क़त्ल कर दूंगा में तुम्हारा और उस दो टके के शायर का...प्यार करती हो....अरे इसे प्यार कहते हैं...असली प्यार तो शादी के बाद होता है....ख़बरदार जो उस शायर के बच्चे से आज के बाद मिलीं तो दोनों को वहीं दफ़न कर दूंगा...समझी....
     मरियम देखो जो तुम्हे मुनासिब लगे वही करो...अपने अब्बू की बात मान लो शादी के लिए हां कर दो क्या फायदा उनकी दुआ की बजाए बद्दुआ मिले....डरपोक हो तुम...बिल्कुल डरपोक....तुम मुझसे सच्चा प्यार करते ही नहीं थे...तुम समझा करो मरियम डरपोक नहीं हूं मैं....क्या ये मुनासिब है कि हम अपने खानदान की रज़ामंदी के ख़िलाफ़ कोई भी ऐसा कदम उठाएं जिससे हमें परेशानी का सामना करना पड़े....लेकिन मैं तुमसे प्यार करती हूं....कैसे जी पाउंगी मैं तुम्हारे बगैर....अब तो जीना ही होगा...मेरे वालिदेन गुज़र गए तो क्या मैं जी नहीं रहा....ज़िंदगी जीना ही है....चाहे जैसे भी हो....हमें जीना ही पड़ेगा चाहे कितने ही समझौते करने पड़ें....सर एयरपोर्ट आ गया....गाड़ी की सीट से हवाई जहाज तक की सीट तक पुराने ख़्याल उसके ज़ेहन में लगातार कौंध रहे थे...मरियम का खूबसूरत चेहरा और मख़मली आवाज़ उसके कानों में अब भी गुंज रही थी....डरपोक हो तुम...बिल्कुल डरपोक....
          

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