Monday, April 4, 2011

हमसफ़र....


ये क्या बकवास कर रहे हो अनवर.....मैं....मैं कैसे तरन्नुम से शादी कर सकता हूं यार.... तुमने मुझे क्या समझ लिया है...देख यार ज़फ़र मैं तेरे हाथ जोड़ता हूं पांव पड़ता हूं...यार मेरी इज्ज़त बचा ले मेरे भाई...मैं ज़िंदगी भर तेरा ये अहसान नहीं भूलूंगा...देख तुझे जो चाहिए....सबकुछ ले-ले यार पर तरन्नुम से निकाह कर ले....अबे कैसी पागलों जैसी बात कर रहा है तू...तू सब जानता है कि मैं शहाना से मुहब्बत करता हूं फ़िर भी....और मक़सूद का क्या...उसी से तो तरन्नुम की शादी तय थी....फ़िर....अरे यार कैसे बताउं तुझे लंबी कहानी है....वो हरामजादा रास्ते से ही कहीं भाग गया....अबे ये क्या मजाक है....ऐसे कैसे भाग गया वो....उसके मां-बाप रिश्तेदार को पकड़...यार देख अगर यही सब होता रहा न तो बहुत देर हो जाएगी....पता नहीं किस जनम का बदला लिया है मक़सूद ने....उसके मां-बाप तो खुद हैरान हैं...
     अब तेरे हाथों मैं ही हमारी इज्ज़त है....रोते हुए ज़फ़र के कदमों में गिर पड़ा अनवर....अपनी इकलौती बहन तरन्नुम को जी-जान से चाहता था वो....जफ़र अनवर का सबसे क़रीबी और गहरा दोस्त था....कई एहसान थे ज़फ़र पर अनवर के........यार जल्दी कर...सोच क्या रहा है.....क्या तरन्नुम खुबसूरत नहीं है....पढ़ी लिखी नहीं है...तू तो सब जानता है....यार वो बात नहीं है...मैं शहाना को क्या जवाब दूंगा....और मैने कभी तरन्नुम को इस निगाह से देखा तक नहीं....निकाह का वक्त हो रहा है शाम होने को है...सब ठीक हो जाएगा मेरे यार....अल्लाह सब ठीक कर देगा...तू एक बार हां तो कर दे.......यार मेरी इज्ज़त का सवाल है भाई.....
   जी कबूल किया मैने....मुबारक हो...मुबारक हो...अंदर ही अंदर घबरा रहा था ज़फ़र....यार ये कहां फंस गया मैं....अब मैं शहाना को.... अपने घरवालों को क्या जवाब दूंगा....चेहरे का रंग उड़ा हुआ था...धीरे-धीरे एक-एक कर सारे रिश्तेदार अपने-अपने घरों को वापस लौट गए....उधऱ ज़फर का बुरा हाल हो रहा था...अपने कमरे में चक्कर काट-काट कर वो परेशान हो गया था.....वो सोच रहा था कि जिस लड़की को ईद पर ईदी देता था वही आज उसकी दुल्हन बन गई है...आप कुछ परेशान नज़र आ रहे हैं....तरन्नुम ने कहा....तुम सो जाओ चुपचाप...क्या तुम नहीं जानती थीं ये सब....तुम मना भी तो कर सकती थीं लेकिन तुमने एक बार भी मना नहीं किया....आखिर मेरा कसूर क्या था कि मेरा तुम्हारे घर आना जाना था बस...इसकी मुझे इतनी बड़ी सज़ा मिलेगी मुझे ज़रा भी इल्म नहीं था....देखो तुम और मैं ज्यादा दिन साथ नहीं रह सकते....पीछे पलटकर कहा ज़फ़र ने....अब तुम रो क्यों रही हो....सो जाओ....
     यार ज़मील उस साले हरामख़ोर मक़सूद को मैं ज़िंदा नहीं छोड़ुगां....उसका पता लगा कि वो आखिर है कहां....अरे होना कहां है.....वो बैठा....नुक्कड़ पर... साले हरामख़ोर तेरे गाल पर पड़े ये दो तमाचे तुझे ताउम्र याद रहेंगे..तेरी वजह से दो ज़िंदगियां बर्बाद हो गईं....जब तुझे शादी करनी ही नहीं थी तो तूने हामी क्यों भरी...गिरेबां पकड़ कर झुझला रहा था ज़फ़र मक़सूद का...छोड़ो ज़फ़र तुम भी इसके जैसे हो क्या...ज़मील ने उसे अलग करते हुए कहा...नहीं यार ये साला दोस्ती के नाम पर कालिख़ है...सिर्फ़ चंद पैसों की ख़ातिर इसने....
   नहीं ज़मील मैं किस मुंह से शहाना के सामने जाउंगा...यार मैने उससे वादा किया था कि नौकरी लगते ही मैं उससे शादी कर लूंगा...फ़िर भी तुझे उससे बात करनी चाहिए....नहीं यार...नहीं..नहीं बात कर के देख...तेरे दिल का बोझ भी हल्का हो जाएगा और सच्चाई जानकर शहाना तुझे माफ़ भी कर सकती है....मैं जानता हूं उसे...यार मुझसे बेहतर कौन जानता होगा उसे....ठीक है मैं कल ही उससे मुख़ातिब होता हूं.....
    शहाना मेरी बात तो सुनो...मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी....चले जाओ यहां से...इससे पहले कि मैं तुम्हारी सरेआम बेइज्ज़ती कर डालूं....एक बार मेरी बात तो सुनो....नहीं सुननी तुम्हारी बात....गेट आउट फ्राम हियर....और अपनी शक्ल आइंदा मुझे मत दिखाना....
    मुंह लटकाए सड़क पर चल रहा था...ज़फ़र...ऐसा क्या गुनाह कर डाला मैने....जिसकी सज़ा मुझे मिल रही है.....यार तू अल्लाह पर भरोसा रख सब ठीक हो जाएगा...देख शायद तेरी किस्मत में तरन्नुम थी शहाना नहीं... कभी-कभी किस्मत में वो सब होता है जो हम नहीं चाहते....ये भी अल्लाह की मरज़ी है....देख अब तरन्नुम को कोई बात मत कहना नहीं तो बेचारी....यार मैं अच्छी तरीक़े से जानता हूं कि उसमें इसका कोई कसूर नहीं है....हम मुसलमानों में शादी से पहले लड़की देखना भी गुनाह करार दिया गया है....ये कहां तक जायज़ है....ज़िंदगी हमें बितानी होती है और फैसला कोई और करता है....क्यों नहीं अनवर ने तरन्नुम से उसकी पसंद के बारे में पूछा....बस मक़सूद जैसे लड़के से उसकी शादी तय कर दी....अब ज़िंदगी भर झेलते रहो....नाइत्तेफ़ाकी तो रहेगी मेरे और तरन्नुम के दरमियान....नहीं यार ऐसा नहीं है....ये सब तुझ पर है तू किस तरीक़े से अपनी ज़िदगी बिताता है....और तरन्नुम कोई बुरी लड़की नहीं है....ये तू अच्छी तरह से जानता है....देख अब तेरी नौकरी भी लग गई है....तुझे ज्यादा परेशान होने की ज़रुरत नहीं.....वक्त पर सब मुनासिब होता जाएगा....तू कब तक माज़ी की बातों का बोझ लिए फिरता रहेगा.....तू सही कह रहा है यार शायद नसीब में यही लिखा था....
   मुझे मुआफ़ कर दो तरन्नुम उस दिन गुस्से में मैने तुम्हे काफ़ी कुछ बुरा भला कह दिया...आपने जो भी कहा जायज़ कहा इसमें आपकी कोई गलती नहीं है....लेकिन मैं आपसे वादा करती हूं कि सारी ज़िंदगी आपकी हमसफ़र बनकर चलूंगी....मुझ पर इत्मीनान रखें आप....कभी भी कोई शिकायत पाएंगे मुझसे....नम आंखों से कह रही थी तरन्नुम.... मुझे एक बार फ़िर से माफ़ कर दो तरन्नुम.....चलो सामान पैक करो हमें कल ही अम्मी-अब्बू के पास गांव जाना है....अब आंसू पोंछ दो जो हुआ सो हुआ सो बेहतर....गले से लगा लिया ज़फ़र ने तरन्नुम को.....

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