Friday, April 29, 2011

दरमियां.....


कब तक क़याम रहेगा जनाब का देहली में....यही दो रोज़....गुजिश्ता काफ़ी रोज़ से सोच रहा था कि देहली में आपसे मुख़ातिब होउं लेकिन मसरुफ़ियात की वजह से आपसे न तो मुलाकात हुई और न ही कोई गुफ़्तगु.....अब सोच रहा हूं के देहली में क़याम के दौरान आपसे मिलकर पुरानी यादों को एक बार फ़िर से ताज़ा कर लिया जाऐ.....जी बेहतर....कब तशरीफ़ ला रहे हैं जनाब देहली में.....आइंदा हफ़्ते....जी बेहतर... आपका यहां कोई बड़ी ही बेसब्री से इंतज़ार कर रहा है.....कौन है...ज़रा हमें भी तो मालुम चले....बस इसे सीक्रेट ही रहने दें...जब आप ख़ुद मुख़ातिब हों तो कहिए...फ़िर भी ज़रा बताओ तो सही..... कम-अज़-कम इस बहाने आप हमारे ग़रीबख़ाने पर कुछ दिन तो क़याम कर पाऐंगें..... अरे कालेज के दिनों में एक तुम ही तो थे जिसने मेरी ज़िंदगी को बदलने में अहम रोल अदा किया.....तो ठीक है देहली रवाना होने से क़ब्ल में आपको इत्तला कर दूंगा....बेहतर-बेहतर....अल्लाह हाफ़िज़....
     तनवीर से ऐहसान की बड़ी दोस्ती थी....ये दोस्ती उस वक्त परवान चढ़ी जब तनवीर और ऐहसान देहली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया में कैंटिन में मिले...दोनों की मुलाकात मरियम ने करवाई थी....तनवीर मास काम कर रहे था और ऐहसान फ़ाइन आर्टस का कोर्स...तनवीर के अब्बा का देहली में एक्सपोर्ट का काम था....किसी हीरो से कम नहीं था तनवीर.. कालेज के दिनों में मरियम और तनवीर एक दूसरे के काफ़ी क़रीब थे....लेकिन फाइन आर्ट में होने की वजह से ऐहसान और मरियम का आपस में काफ़ी मिलना जुलना होता था। वक्त गुज़र रहा था और तनवीर के अब्बा उसका शादी को लेकर फ़िक्रमंद होने लगे थे...चूंकि तनवीर की अम्मी की तबियत अक्सर नासाज़ रहती थी....मरियम से जब तनवीर ने शादी के बारे में बताया तो उसने इंकार कर दिया वो अभी शादी नहीं करना चाहती थी....लेकिन तनवीर को शादी की जल्दी थी....ख़ैर बात आई गई हो गई....तनवीर को लगा कि कहीं मरियम ऐहसान की वजह से तो शादी से इंकार नहीं कर रही.....तनवीर ऐहसान से कटने लगा....मरियम और ऐहसान को साथ-साथ देखकर वो सुलग जाता..उसे लगता कि राह का रोड़ा ऐहसान ही है....और एक दिन तनवीर ने सबके सामने ऐहसान को ख़री-खरी सुना दी.....ऐहसान हैरानगी से तनवीर को देखता रह गया...उसे समझ ही नहीं आया कि आख़िर माज़रा क्या है....वो कभी मरियम की तरफ़ देखता तो कभी तनवीर की तरफ़....मरियम भी वहां से दबे पांव निकल गई....ऐहसान ने ख़ामोश रहकर ही तनवीर को जवाब दे दिया..... खैर तनवीर की शादी रिहाना से हो गई....शादी में ऐहसान का न होना....इस बात का सबूत था तनवीर और ऐहसान के रिश्ते कितने तल्ख़ हो चुके थे....हालांकि ऐहसान खुद नहीं समझ पा रहा था कि तनवीर को आख़िर हो क्या गया है...उधर ऐहसान कोर्स पूरा कर दुबई निकल गया....वक्त बीतता गया लेकिन कभी हिंदुस्तान न आना हुआ.....अरे मरियम कैसी हो...जी रही हुं आप बताऐं....मुझे मुआफ़ कर दो मरियम उस दिन मैं बहक गया था....मुझे लगा शायद तुम्हारे और ऐहसान के दरमियान कुछ....कितने ग़लत थे तुम.....अरे मुझे शादी नहीं करनी थी....तो तुमने ऐहसान को क्यों बदनाम किया....सिर्फ़ इसलिए कि वो मेरे साथ कोर्स करता था....मुझे एक बार प़िर मुआफ़ कर दो मरियम मैं..... उससे रहा न गया दोस्ती की ख़ातिर उसने ऐहसान के वालिद से उसका फोन नंबर लिया...और फ़िर दो दोस्त आपस में ऐसे बात करने लगे जैसे उनके दरमियान कुछ हुआ ही न हो....तुम बिल्कुल नहीं बदले ऐहसान और तुम भी तो नहीं बदले तनवीर....यार मुझे मुआफ़ कर दो....मैने तुम्हारा दिल दुखाया है.....अच्छा ये बताओ शादी की अभी तक या नहीं....अभी तक तो नहीं ....फ़िर ठीक है.....क्यों क्या हुआ...अरे यार मरियम....मरियम वो मरियम...हां यार ...वो तेरे इंतज़ार मैं कुंवारी बैठी है अबी तक...अबे कैसी बातें करता है.....जोर से हंसकर गाड़ी मैं बैठ गऐ दोनों ....और बता सिर्फ़ दो दिन के लिए ही आया है यार....ऐसे कैसे चलेगा..तेरी भाभी और बच्चे कितनी बेसब्री से तेरा इंतज़ार कर रहे हैं....शायद तुझे नहीं मालुम....बातों बातों में कब घर आ गया मालुम ही नहीं चला....ये रेहाना है...हमारी शरीके-हयात और ये तुफैल और ये नाजिश....बेटे अंकल को सलाम करो....कैसी हैं भाभी आप....जी अच्छी हूं....अच्छा फ्रेश हो जाओ...फ़िर नाश्ता करते हैं....ओके.....उसके बाद तुम्हे किसी से मिलवाना भी है...किससे....मरियम से अमां रहने दो मियां....एक पेंटर की ज़िंदगी में कोई रंग नहीं होता....क्या फ़ायदा...नहीं यार ऐसी बात नहीं फ़िर भी तेरा क्या जाता है.....ठीक है.....मरियम कोई मिलने आया है आपसे कौन....जाओ....गार्डन में हैं खुद ही मिल लो....मैं यहीं रुकता हूं....अरे.....ऐहसान तुम....इतने दिनों बाद....अचानक.....कैसी हैं आप....बस जी रही हूं.....आप कैसे हैं....देख लो....जबसे आप जामिया से गये...लगता मानो सारी रौनक ही चली गई....ऐसा नहीं है...ये सब आपको लगता है.....क्या कर रहीं हैं आजकल.....जामिया मे ही पढ़ा रही हूं.....बहुत ख़ुब....कैसा है दुबई......बहुत उम्दा....कभी याद भी नहीं किया आपने....जी बस मसरुफ़ियात....मालुम हुआ बहुत मसरुफ़ रहते हैं आप.....जी नहीं ऐसी बात नहीं....ये ख़ास आपके लिए.....बहुत ख़ुबसूरत है....इसे देखकर लगता है इसे तुमने ही बनाया है.....तुम्हे कैसे मालुम....देखो ये....जब हम साथ में पेंटिंग्स बनाया करते थे तो तुम इस जगह....यो निशानात छोड़ दिया करते थे.....शादी कर ली....नहीं अभी तक नहीं...क्यों कोई मिली नहीं दुबई में नहीं बहुत मिलीं लेकिन तुम जैसी नहीं.....मजाक अच्छी कर लेते हो.....ये सच है.....मुस्कुरा भर दी मरियम....मरियम पैसा शोहरत बहुत कमा ली लेकिन सुकूं नहीं कमा पाया....तुम शायद नहीं जानती कि तनवीर की एक काल से मैं कितना खुश हुआ...भागा चला आया इससे मिलने....लेकिन तनवीर ने तो.....कोई बात नहीं मरियम गुस्से में हमें इसने जो कहा था.....वो सब मैं भुला चुका हूं आख़िर अच्छे दोस्त क़िस्मत से जो मिलते हैं.....ख़ैर छोड़ो....ये बताओ तुमने शादी क्यों नहीं की क्या तुम्हे भी कोई नहीं मिला...मैं तलाकशुदा हूं ऐहसान...ठंडी सांस भरते हुऐ...मरियम ने कहा....बिजली सी दौड़ गई......क्या हुआ....ऐहसान....मैं कुछ समझा नहीं तुम्हारे जैसी लड़की को कोई तलाक क्यों देगा भला.....मैं ये जानकर हैरां हूं कि....तुम जैसों को कितनी तकलीफ़ों का सामना करना पड़ता है.....मैं माज़ी को भूल चुकी हूं ऐहसान....मेरे ज़िंदगी अब सिर्फ़ टाइमपास है और कुछ नहीं....मेरी ज़िंदगी बेरंग हो चुकी है.....मैं नहीं चाहती की किसी और से शादी करके मैं अपना माज़ी याद करुं....मुझसे भी नहीं....नहीं तुमसे भी नहीं.....मैं अब शादी नहीं करना चाहती....हम अच्छे दोस्त हैं...और मैं चाहती हूं कि हमारी ये दोस्ता ताक़यामत क़ायम रहे.....ठीक है.....हल्की मुस्कुराहट लेकर अलविदा कह गया ऐहसान....नहीं यार मुझे शाम की फ़्लाइट से ही निकलना है....कुछ ज़रुरी काम आन पड़ा है इंशाल्लाह फ़िर आउंगा....मुझे जल्दी से एयरपोर्ट छोड़ दो.....
       


















  

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