Monday, May 2, 2011

आंतकवाद का जिम्मेदार कौन?


पाकिस्तान के ऐबटाबाद में एक शानदार हवेली में छुपकर रह रहे अलकायदा के प्रमुख ओसामा बिन लादेन को एक हमले में अमेरिकी फौज ने मार गिराया। क़रीब दस सालों से आंतक का पर्याय बन चुके ओसामा बिन लादेन को अमेरिका ने ढुंढने में ही सालों लगा दिए,अफ़गानिस्तान की पहाड़ियों से लेकर पाकिस्तान के हर उस कबाईली इलाके में ओसामा को खोजा गया जहां उसके मिलने की गुंजाइश थी,पर अफ़सोस कि वो अमेरिका को हर बार चकमा देता रहा। अगर कहा जाए तो अकेले ओसामा और उसके साथियों ने अमेरिका की नाक में दम कर दिया,और उसको हर बार की तरह ठेंगा दिखाते रहे।जार्ज बुश से लेकर बराक ओबामा तक से अमेरिका और उसके हमसाया मुल्क सवाल दर सवाल पूछते रहे कि आख़िर ओसामा को ज़मीन खा गई या आसमां निगल गया। हर बार की तरह अमेरिका अपने लोगों को भरोसा देता रहा कि जल्द ही ओसामा का काम तमाम कर दिया जाएगा। ऐसा नहीं था कि अमेरिका को शक नहीं था कि ओसामा पाकिस्तान के इर्द-गिर्द हो छुपा हो सकता है,लेकिन पाकिस्तान पर उसकी मेहरबानी न जाने क्यों बनी रही। पाकिस्तान भी अमेरिका की चापलूसी करके उसे हर बार भरोसा दिलाता रहा कि ओसामा उसके मुल्क में नहीं है,और अगर है तो फ़िर उसे मार दिया जाएगा।
     ओसामा के पाकिस्तान में मारे जाने से एक बात तो साफ़ तौर पर जाहिर हो गई कि पाकिस्तान दहशतगर्दी को बढ़ावा देने में सबसे आगे है। उसे खुद नहीं मालुम कि उसके यहां कितने दहशतगर्दाना संगठन काम कर रहे हैं। ओसामा के मारे जाने के बाद पाकिस्तान से शायद हर मुल्क सवाल करेगा,इसमें सबसे आगे अमेरिका ही होगा। हालांकि अमेरिका खुद हैरत में है कि पाकिस्कान में ओसामा को होने के बावजूद भी पाकिस्तान लगातार उसे बहलाता रहा। आशंका तो ये भी की जा रही है कि पाकिस्तानी खुफ़िया ऐजेंसी आईएसआई को सब मालुम था,उसे ये भी मालुम था कि ओसामा कहां और कब से यहां पनाह लिए हुए है। अगर ऐसा न होता तो शायद अमेरिका की नज़रों से ओसामा का अबतक बचना नामुमकिन था,क्योंकि 9/11के हमले के बाद अमेरिका ओसामा को ज़ख्मी जानवर की तरह ढुंढ रहा था। और इस अभियान को लेकर उसने न जाने अपने कितने सैनिक और अरबों डालर पानी की तरह बहा दिए।अमेरिका ओसामा को अपना नंबर वन का दुश्मन मानता था,साथ ही अमेरिका अपनी जनता को बार-बार ये भरोसा भी दिलाता रहता था कि ओसामा को वो जल्द ही ढूंढ निकालेगा और उसे उसके किए की सजा देगा।
     अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने व्हाइट हाउस में ओसामा के मारे जाने के बाद अपनी पीठ थपथपाते हुए ऐलान किया कि दहशत के बादशाह का ख़ात्मा हो चुका है,और जो अमेरिका कहता है वो कर दिखाता है। लेकिन इस बीच बराक ओबामा भूल गए कि ओसामा को इतना बड़ा दहशतगर्द बनाने में जिसका सबसे बड़ा हाथ है वो खुद अमेरिका है। सऊदी अरब का एक कारोबारी कैसे अमेरिका की शह पर दुनिया का सबसे मोस्टवांटेड आंतकी बन गया खुद अमेरिका भी हैरान था। अमेरिका को शायद गुमान भी नहीं होगा कि उसकी आस्तिन का सांप जिसे ख़ुद उसने दूध पिलाकर पाला पोसा वो उसे ही डस लेगा। दरअसल अमेरिका अपने फ़ायदे के लिए किसी भी हद तक जा सकता है ये शायद कम लोग ही जानते हैं। आंतकवाद को लेकर हो-हल्ला मचाने में उसका कोई सानी नहीं,लेकिन दूसरे मुल्कों में जब आंतकवादी हमला होता है तो अमेरिका सिर्फ़ झूठी तसल्ली देकर पल्ला झाड़ लेता है।
      हिंदुस्तान की आर्थिक राजधानी मुंबई में हुए 26/11 के हमले के बाद अमेरिका ने भारत को झूठी तसल्ली के अलावा कुछ नहीं दिया,यहां तक कि खुद बराक ओबामा हिंदुस्तान की यात्रा पर भी आऐ और मुंबई भी गए,पर अफ़सोस उन्होने एक बार भी खुलकर पाकिस्तान को नहीं चेताया। सारी दुनिया जानती है कि हिंदुस्तान आंतकवाद से पीछा नहीं छुड़ा पा रहा है। ये नाग रह-रहकर उसे डसता रहता है। पर कभी भी अमेरिका ने खुलकर इसकी निंदा नहीं की,उसने कभी भी पाकिस्तान को चेतावनी नहीं दी कि भारत में दहशतगर्दी को बढ़ावा न दे और आंतकवादियों की घुसपैठ न कराऐ। अब जब ओसामा पाकिस्तान में ही मारा गया है तो नि:संदेह ये बात कही जा सकती है कि आंतकवादियों को पनाह देने में पाकिस्तान का कोई सानी नहीं है। खुद पाकिस्तान भी हैरान है कि क्या से क्या हो गया। तोतली जबान में ही सही वो अमेरिका को सफ़ाई दे रहा है कि उसे नहीं मालुम था कि ओसामा उसके यहां छुपा बैठा है। लेकिन इससे उसका झूठ छुपने वाला नहीं,अमेरिका सबकुछ जानते हुए भी अंजान नहीं था। वो जानता था कि ओसामा जैसे न जाने कितने आंतकी पाकिस्तान में पनाह लिए हुए हैं इसलिए उसने पाकिस्तान पर भरोसा न करके खुद ही इस आपरेशन को अंजाम दिया। अब खिसियानी बिल्ली की तरह पाकिस्तान सफ़ाई दे रहा है कि अमेरिका ने बिना इजाज़त के इस आपरेशन को अंजाम दिया,और अब वो इसकी शिकायत यूएनओ में दर्ज कराएगा।
      ओसामा बिन लादेन को भले ही मार गिराया गया हो लेकिन एक सवाल हर किसी के जेहन में कौंध रहा है कि ठीक अमेरिका में होने वाले चुनाव से ऐन पहले इस आपरेशन को अंजाम दिया गया ऐसा क्यों और किस वजह से किया गया,क्या इसमें कोई अमेरिकी पालिसी है या फ़िर ये सामान्य प्रकिया। लेकिन जहां तक बात ओबामा की है तो वो अपनी लोकप्रियता में आई कमी से हैरान हैं,अमेरिका का राष्ट्रपति बनते ही उन्होने जो वादे किए उसमें वो कहीं भी खरे नहीं उतर सके,पिछले साल अमेरिका में छायी आर्थिक मंदी से जब अमेरिका में लाखों लेग बेरोजगार हो गए और साथ लोगों के लाखों डालर डूब गए तब बराक ओबामा कुछ दिनों के लिए सबकुछ भूल गए थे। वो ये भी भूल गए थे कि अमेरिका की फौज अफ़गानिस्तान और पाकिस्तान में ओसामा को ढूंढने में लगी है। लोगों ने सवाल किया कि अरबों डालर युद्ध के नाम पर बहाना कहां कि समझदारी है।
     अगले साल अमेरिका में राष्ठ्रपति के चुनाव होने वाले है,ओबामा ऐलान कर चुके हैं कि वो अगला चुनाव भी लड़ेगें,पर किस मुद्दे पर खुद उन्हे भी नहीं मालुम। अब कुछ ऐसा होना चाहिए जिससे वो फ़िर से अपना झंडा लहरा सकें,उन्होने रणनीति बनानी शुरु कर दी कि कैसे वापस रिंग में लौटा जाए। अब उनकी डूबती नैय्या कोई पार लगा सकता था तो वो सिर्फ़ ओसामा बिन लादेन ही था,शक था लेकिन पुख़्ता सबूत नहीं। अमेरिकी खुफ़िया ऐजेंसी सीआईए को जैसे ही मालुम हुआ कि ओसामा के पाकिस्तान में ही छुपे होने की उम्मीद है,ओबामा की बांछें खिल गईं। ओबामा ने मौके को हाथ से न जाने दिया और कैसे भी हो ओसामा को मार गिराने का हुक्म दिया साथ ही ये हिदायत भी दी कि पाकिस्तान को इसकी कानों-कान भी ख़बर नहीं होनी चाहिए। किस्मत ने उनका साथ दिया और अमेरिकी फौज ने बिना पाकिस्तान की मदद के ओसामा को ढेर कर दिया और उसे दफ़नाने में इतनी जल्दबाजी दिखाई जितनी कि इराक में सद्दाम हुसैन को फ़ासी पर लटकाने में दिखाई थी।
     अब भले ही पाकिस्तान अमेरिका को लाख सफ़ाई दे कि उसे ओसामा के छुपे होने की कोई ख़बर नही थी,भले ही अमेरिका उसे कहे कुछ न लेकिन अब शायद पाकिस्तान पर भरोसा करना जायज़ नहीं है। लगे हाथ भारत को भी अपना पत्ता खोल देना चाहिए उसे जोर-शोर से ये मांग दोहरानी होगी कि मुंबई हमले को मुल्जिम उसके यहां पनाह लिए हुए हैं और सरेआम घुम रहे हैं। पाकिस्तान पर दबाव बनाने का ये अच्छा मौका है भारत को इसे किसी भी सूरत में गंवाना नहीं चाहिए.अब जब पूरी दुनिया को सबूत मिल गया है कि पाकिस्तान में ओसामा ही नहीं न जाने कितने आंतकी पनाह लिए हुए हैं और फल-फूल रहे हैं।        

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