Monday, May 23, 2011

संवेदना…..


पहाड़ काट के सड़क बनाई,पेड़ काटकर छानी
फ़िर भी काम न आया देखो,पानी और जवानी
रोज़-रोज़ के अंधियारे में जीना मरना कैसा
बदले मौसम रुत भी बदले,हवा चले सुहानी
जंगल में ये मंगल कैसा,है कैसा है ये शोर
बात-बात पर मुंह ताके हैं,है किसका ये ज़ोर
ख़ुद ही किस्मत बदलेगी जब,हो मजबूत इरादा
कितने आए कितने गये पर वादा ही रहा वादा
जो भी बातें करनी हों वो करके देखो तुम
इस पहाड़ की रौनक पर क्यों नज़र लगाओ तुम
सारी नदियों पर तुमने कितने बांध बना डाले
पानी की अविरल धारा को कितने पैमाने दे डाले
चंद रुपयों की ख़ातिर तुमने,किया कैसा खिलवाड़
रोजाना ही आते यहां भुकंप और जंजाल
अब भी शायद सूरत बदले जो तुम बदलो आज
फ़िर से शुरु करो पहाड़ों का समुचित विकास    

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