Thursday, June 30, 2011

अक्स.....


1..वो अक्सर यूं अंधेरे में चुपचाप जीते हैं,
के गोया मर्ज़ हो उनको निस्बते-मुहब्बत का....
वो आधी रात को उठके यूं रोते हैं अकेले में,
के गोया दर्द हो उनको ज़माने से उम्रभर का...

2..ये इश्क न होता जो कभी यार न होता....
न प्यार ही होता न ऐतबार ही होता....
उसे न आंसूओं की समझ न रंज किसी का..
मुद्दत गुज़ार लेने से कोई अपना नहीं होता...


3..ज़िंदगी के कुछ लम्हे यूं ही गुज़र गए,
फ़िर से तेरी याद में आंसू निकल गए....
तन्हाईयों को वफ़ा की उम्मीद थी मग़र,
जो ज़ख्म थे हरे वो फ़िर से भर गए


4..ज़रा सोच लिजिए एक बार फ़िर से,
क्यों हो इतने परेशां तुम अपने दिल से....
वो तो ख़ुशबू है उसे हवा में घुलना था...
.क्यों तुम बेदार हो अपने घर से......
उसको अब तक मयस्सर नहीं तेरा साया...
वो तो जी लेता है तेरी याद को याद करके....


5..गुजिश्ता कुछ दिनों से वो नहीं सो पाऐ सारी रात,
उन्हे महसूस होता यूं के कोई आया है उसके पास...
उसकी आंखों में जो तस्वीर कुछ धुंधली सी दिखती है....
यही वजह है कि है वो उसकी परेशानी का बाइस है.....


6..दिल से जो जुड़ा उस दिन वो शख़्स है कहां,
नज़रे जो चुरा रहा है वो अक्स है कहां.....
ये सारी उल्फ़तें तो मुकद्दर की बात है,
अंजाना ही सही पर वो खोया है अब कहां....
तस्वीरों में तो शायद मिल जाऐगा कहीं,
पर मेरे अल्फ़ाजों में आवाज़ है कहां.....


7..तुम क्या जानो इस दिल में हैं दर्द छिपे कितने,
तन्हाई में आख़िर देखो मर्ज़ छिपे कितने.....
अंधियारों में जीते हो तुम आफ़ताब की बातें करते हो,
सच्चाई तो ये है कि तुम ख़ुद से बेहद डरते हो......

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