Friday, July 8, 2011

तस्वीर...


मेरे क़रीब से वो बिछड़ा कुछ इस तरह
पानी से जैसे दाग़ धुलता हो जिस तरह
कितनी मसर्रत थी मुझे उसके क़रीब से
वो आंधियों में मिलता था फानुस की तरह
मेरी तो ज़िदगी है एक खुली किताब सी
उसकी भी ज़िदगी में खुला अहसास था
वो वादियों में मिलके तबस्सुम सा लापता
मैं हैरां था कि दिल में कोई रंज़ो-ग़म न था
ऐ काश कोई उन तक मेरा ये पैग़ाम दे
जो हो सके तो लौटके ये पयाम दे
ग़र हो क़याम चार दिन इस ज़िदगी में भी
तस्वीर बदल जाऐगी इस मयक़दे की भी



No comments: