Monday, July 11, 2011

अमीर-ग़रीब...

अमीरों के मियां दुश्मन भी ज़रा कम ही होते हैं,
ग़रीबों के तो हर दुश्मन वक्त-बे-वक्त होते हैं।
अमीरों की तो हर मुश्किल आसां सी होती है,
ग़रीबों की हर मुश्किल परेशां सी होती है।
अमीरों का बड़ा दुश्मन खुद अमीरी है,
ग़रीबों का बड़ा दुश्मन ख़ुद ग़रीबी है।
अमीरों के ज़रा शौक कुछ बड़े से होते हैं,
ग़रीबों के तो शौक कुछ अलग से होते हैं।
वो जीते हैं अमीरी में,वो जीते हैं ग़रीबी में
परेशां वो भी होते हैं,परेशां ये भी होते हैं।
अमीरों की परेशानी का हल तो हो भी जाता है,
ग़रीबों की परेशानी का कोई हल नहीं मिलता।
अमीरों के सीने में ज़रा सा दिल धड़कता है,
ग़रीबों के सीने में बड़ा सा दिल धड़कता है।
वो जीते हैं अकेले में,वो जीते हैं अंधेरे में,
वो चीज़ों को चख़ते हैं,उन्हे चीज़ें मयस्सर नहीं।
वो सोते हैं महलों में,वो सोते हैं सड़कों पे,
वो नींद से हैं कोसों दूर,वो भरपूर सोते हैं।
उनके काम हैं आसां,उनके कुछ अलग से हैं,
वो मरने से डरते हैं,वो रोज़ाना ही मरते हैं।

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