Saturday, August 13, 2011

और उसने रोते हुए जर्नलिज्म छोड़ दिया...


सर...एक आप ही हैं जिन्होने मुझे इस दलदल से बाहर निकालने में मदद की,वरना मैं तो इसमें धंसती ही चली जा रही थी। चार साल हो गए सर लेकिन मेरी इंक्रीमेंट तो छोड़ो आने-जाने तक का नहीं दिया जाता...चार साल में चार जगह रही पर सभी जगह हालात एक जैसे हैं...इतनी पोलिटिक्स होती है कि मैं बयां नहीं कर सकती...शुक्र है कि आपने मेरी मदद की और अब मैं शायद अच्छी और सुकून वाली ज़िदगी गुज़ार सकूंगी...एक ही सांस में न जाने कितनी बात बोल गई वो और उतनी बार शुक्रिया अदा भी किया,उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट के साथ-साथ मीडिया और इससे जुड़े लोगों से मिली कड़वाहट साफ़ नज़र आ रही थी। जितना दुख उसे इस फिल्ड को अलविदा कहने का हो रहा था उतनी ही खुशी उसे अपने भविष्य को लेकर हो रही थी।
      पिछले साल ही वो यहां काम करने आई थी...एक साथ पूरा प्रोग्राम संभालने के साथ कई दूसरे काम में भी महारत हासिल थी उसे...मेहनती और काम को लेकर जुनुनी भी...कभी-कभी काम को लेकर सीनियरों से भी भिड़ जाती...उसे देखकर लगता था कि वो अपनी ज़िदगी में एक अच्छी जर्नलिस्ट साबित होगी...मुझसे मिलती तो हमेशा सुख-दुख की बात किया करती न जाने क्यों अक्सर मुझे चाय पिलाने के बहाने अपनी बातें और प्रोग्राम को और बेहतर करने से लेकर अंदरखाने की पालिटिक्स के बारे में बतियाया करती...वक्त गुज़र रहा था लेकिन कहीं न कहीं उसे अंदर से एक डर सताता रहता था,और वो डर था कभी भी नौकरी से निकाले जाने का...लड़की जात होने और घर से दूर होने की वजह से भी कभी-कभी सीनियरों के कहे मुताबिक़ काम करती मग़र उसी रोज़ बैचेन भी हो जाती थी...उसकी बैचेनी का असर उसके चेहरे पर साफ़ पढ़ा जाता था...सर पता है कल मेरी शिकायत कर दी किसी ने एडीटर से...और एडीटर बिना सच्चाई जाने मुझे काफ़ी सुना रहा था...सर चार साल हो गए हैं मुझे काम करते हुए...क्या बुरा है और क्या भले मैं भी समझने लगी हूं...पर समझ नहीं पा रही हूं कि अच्छा काम करने पर कुछ लोगों को जलन किस बात की होती है...मैं चुपचाप हैरान उसकी बातों को सुन रहा था...उसकी बातों में मुझे अपना अक्स नज़र आ रहा था...कभी मैं भी...पर आज हालात ने मुझे कितना बदल दिया मेरे सामने कुछ भी हो जाऐ मुझे कुछ असर जैसे होता ही नहीं...हैलो...सर कहां खो गए आप...कहीं नहीं...हां...बताओ..सर मेरा पैसा बढ़ाया नहीं अभी तक.. जब मैं जोब पर आई थी तो कहा गया था कि जल्द ही पैसा बढ़ा दिया जाऐगा मग़र अभी तक कोई रिस्पोंस नहीं मिला बस आश्वासन ही मिल रहा है...
     अरे कैसी हो तुम...बस सर अच्छी हूं... इतनी उदास क्यों हो, क्या हुआ...चलो चाय पीने चलते हैं...नहीं सर मेरा मन नहीं है...अरे चलो तो सही...मुझे कुछ बात करनी है तुमसे...बुझे मन से मेरा दिल रखने के लिए चाय की दुकान तक आ गई वो, मग़र आज चाय जैसे उसे ज़हर लग रही हो...अरे क्या हुआ...कुछ बताओ तो सही...सर मैने जर्नलिज्म छोड़ने का फैसला कर लिया है...पर क्यों...नहीं सर मुझे लगता है कि मैं आगे नहीं बढ़ पाउंगी...जिस सोच को लेकर मैने इस फील्ड में क़दम रखा था...वो शायद कभी पूरी नहीं हो पाऐगी...आप चाहे जितना भी अच्छा काम कर लो...लोग आपको जीने नहीं देंगें...और रही सही कसर पूरी कर देते हैं वो लोग जो दिन भर सीनियरों के तलवे चाटकर अपनी नौकरी बचाने में लगे रहते हैं...
     मैं हैरान उसे देखता रह गया...जो लड़की जर्नलिज्म के लिए मरने-मिटने को तैयार रहती थी वो ऐसा फैसला क्यों ले रही है...क्या ये मेरे लिए संकेत तो नहीं...क्योंकि मुझे भी अंदर से ये इसकी कड़वी सच्चाई और नंगेपन के बारे में मालुम था मग़र...आख़िर इन सात सालों में क्या हासिल कर पाया मैं...क्या मैं भी सीनियरों के तलवे चाटूं या फिर गंदी पालिटिक्स शुरु कर दूं...मग़र ये तो मेरी फ़ितरत मैं नहीं...अंदर से सहम गया मैं...सर एक बात और है इस फील्ड में... आप चौबिसों घंटे तनाव में जीते हैं...क्या फ़ायदा ऐसी नौकरी का...कभी छुट्टी लेने का मन हो तो नहीं मिलती...संडे को जब दुनिया आराम और इंज्वाय करती है तो हमें उस दिन भी काम करना होता है...मैं तो ठान चुकी हूं सर...बहुत हो गया...उब चुकी हूं मैं...क्या सोचकर आई थी मैं...पर...उसकी आंखों से आंसू टपकने लगे...
    




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