Saturday, October 30, 2010

उभरता समाज और सिसकती हिन्दी

हिन्दी इतनी बेचारी क्यों ? सवाल कई बार जेहन में आता है कि हमारे देश की संवैधानिक भाषा और हिन्दुस्तान के 45 फीसद लोगों की जुबां से निकलने या बोली जाने वाली हिन्दी हाशिए पर क्यों डाल दी गई है। क्या इसमें सरकार दोषी है या फिर दोषी वे लोग हैं जो खाते तो हिन्दी की हैं और राग अंग्रेजीयत का गाते हैं। हिन्दीभाषी बुद्धिजीवी वर्ग सिर्फ हिन्दी के सेमिनारों या हिन्दी दिवस तक ही क्यों सिमित रह गया है। देश में आज लाखों किताबें छप रही हैं, लेकिन कमाई के मामले में अंग्रेजी की किताबों का कोई सानी नहीं है।

एक वक्त था जब घरों में हिन्दी बोलना गर्व की बात मानी जाती थी लेकिन आज के दौर में घरों में अंग्रेजी बोलना गर्व की बात मानी जाती है। माना कि अच्छी नौकरी पाने के लिए अंग्रेजी भाषा का जानकार होना जरुरी है लेकिन क्या ऐसे में हम अपनी मातृभाषा को ही भूल जाएं, क्या उसका तिरस्कार करना शुरु कर दें। ऐसा करके हम अपने आने वाली पीढ़ियों को क्या संदेश देना चाहते हैं।

भाषा कोई भी हो उसका सम्मान करना बेहद जरुरी है। क्योंकि भाषा ही लोगों को एकता के सूत्र में पिरो सकती है। और हिन्दी तो ऐसी भाषा है जिसमें कई गुणों का समावेश है। यह न केवल बोलने में साधारण लगती है अपितु हर वर्ग के लोगों को अपनी और आकर्षित कर भी करती है

आज के माहौल में जब लोगों के दरमियां दूरियां बढ़ रही हैं। कुछ राजनीतिक धंधेबाज ऐसे हैं जो हिन्दी की आलोचना कर अपना सिक्का जमाना चाहते हैं। वे भूल जाते हैं कि क्षणिक पल के लिए भले ही उन्हे मीडिया में स्थान मिल जाता हो लेकिन इससे उन्हे उनकी अंतरआत्मा अंदर से जरुर झकझोरती होगी।

हिन्दी को किनारे लगाने में जितनी जिम्मेदार सरकार है उतने ही जिम्मेदार वे लोग जो हिन्दी के नाम पर आऐ दिन हो-हल्ला करते रहते हैं किंतु हिन्दी को बढ़ावा देने और उसके प्रचार-प्रसार के लिए महज खानापूर्ति करते नजर आते हैं। कई सरकारी दफ्तरों में हिन्दी के प्रचार को लेकर बडे़-बडे़ स्लोगन दिखलाई देते हैं लेकिन उस दफ्तर के आफिसर और कर्मचारी अपना कामकाज हिन्दी में करते हों ऐसा कम ही नजर आता है।

भले ही हिन्दी को लेकर कई बार हो-हल्ला मचा हो लेकिन इससे किसी की सेहत पर कोई फर्क नहीं पडता,चाहे वो सरकार हो या हिन्दी का बुद्धिजीवी वर्ग। सबसे अच्छा तो यही है कि पूरे देश में हिन्दी को सम्मानजनक भाषा के तौर पर प्रसारित किया जाऐ। इससे न केवल हिन्दी का विस्तार होगा बल्कि वो एक मजबुत भाषा के रुप में देश में पहचानी जा सकेगी।

इंतखा़ब आलम अंसारी,

चैनल वन,नोएडा

9891220196

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