Friday, December 31, 2010

वर्तमान परिदृश्य में मीडिया की भूमिका-इंतिख़ाब आलम


(इंतिख़ाब आलम/ नोयडा )
  इलेक्ट्रानिक मीडिया के विस्तार ने जहां एक और विश्वसनियता कायम की है वहीं कई बार ऐसी भी ख़बरें लोगों तक पहुंचाई हैं जिन्हे असंभव माना गया वो चाहे करगिल युद्ध हो या फिर इराक पर अमेरिका के हमले का प्रसारण आज भी कई ऐसे पत्रकार हैं जो अपनी जान की परवाह न करके ख़बरों को आम जनता तक पंहुचाना अपना फ़र्ज समझते हैं। अगर समूचे विश्व की बात की जाऐ तो विश्व में कई पत्रकार ख़बरों को पंहुचाने के फेर में अपनी जान से भी हाथ धो बैठते हैं।
       आज के दौर में जहां हर तरफ रिश्वत और भष्टाचार का माहौल है वहीं अगर कहें कि मीडिया इससे अछूता है तो बेईमानी होगी, लोकतंत्र का चौथा खंभा और सत्ता पलटने में माहिर मीडिया के वर्तमान परिदृश्य पर अगर गौर करें तो पाएंगें कि हर क्षेत्र की तरह इसमें भी प्रतियोगिता का दौर रहा है। इस प्रतियोगिता की वजह से मीडिया आज बेहद मजबूत स्थिति में खड़ा है।हर सिक्के के दो पहलू होते हैं अगर मीडिया कभी-कभी नरम गरम होता है तो इसमें उसकी कोई गलती नहीं है। आज भले ही इंटरनेट का जमाना हो लेकिन फिर भी लोग सुबह-सुबह चाय के साथ अख़बार पढ़ना नहीं भूलते दिन-ब-दिन अख़बार की संख्या में बढ़ोत्तरी होना इस बात का सबूत है कि अभी भी लोगों का मीडिया पर विश्वास कायम है।
      कई मीडिया हाउसों ने सरकार और उसके नुमाइंदों से संबंध बनाने के चक्कर में अपनी प्रतिष्ठा को दांव पर लगा दिया जिसका असर अन्य मीडिया हाउसों पर भी पड़ना स्वभाविक था। आरोप लगाया जाने लगा कि ज्यादातर मीडिया हाउस बडे़ घरानों को फायदा पंहुचाते हैं। हाल ही में नीरा राडिया और उसके संपर्क में आए कुछ बड़े पत्रकारों ने सरकार पर स्वहित के लिए दबाव बनाया जिससे मीडिया की किरकिरी होने लाजिमी था। शक की उंगली हर उस पत्रकार पर उठ रही है जिसके संबंध उच्च बिजनेस घरानों और नेताओं से हैं।
      पेड न्यूज़ को लेकर भी कई बार लोगों ने मीडिया हाउसों पर आरोप लगाए हैं कि ये लोग पैसा लेकर किसी की भी ख़बर दिखा और छाप सकते हैं। इससे भी पत्रकारिता की गरिमा प्रभावित हुई लेकिन किसी ने भी खुलकर इसका विरोध नहीं किया क्योंकि हमाम में सब नंगें थे। प्रतिष्ठा और पद को लेकर अपने संबंध बड़े लोगों से बनाना आम हो गया है। आज हर पत्रकार चाहता है कि उसके संबंध हर बड़े से बड़े नेता से हों ताकि वक्त आने पर वो इसका फायदा उठा सके।
      मीडिया पर आरोप लग रहा है कि वो अब मिशन नहीं रही बल्कि व्यवसाय में तब्दील हो गई है। उसका लक्ष्य सिर्फ़ पैसा और रसूख़ कमाना है आम लोगों से उसे कोई सरोकार नहीं है। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है?...अगर ऐसा होता तो शायद बड़े-बड़े घोटाले और वे सब जिनका मीडिया ने पर्दाफाश कर लोगों को इंसाफ़ दिलाने की कोशिश की वे सब न होता। संभवतया मीडिया आज भले ही पारदर्शी भुमिका में न हो लेकिन अपनी जिम्मेदारी से मुंह तो नहीं मोड़ रहा है।  
        हालिया नीरा राडिया केस में मीडिया के कुछ धुरंधरों का नाम सामने आया,लगा कि शायद दाल में कुछ काला जरुर है। लेकिन गहराई में अगर उतरा जाए तो बात आईने की तरह साफ हो जाती है कि आख़िर क्यों बड़े पत्रकार नेताओं या बड़े लोगों से संपर्क बनाने में दिलचस्पी दिखाते हैं। एक बात और कि अगर वे ऐसा न करें तो फिर उन्हे बड़ा पत्रकार कहेगा कौन?
            समाज में मीडिया का रसूख़ रहा है और रहेगा इसमें कोई नई बात नही है लेकिन क्या मीडिया की जिम्मेदारी नहीं बनती कि वो खुद को भी बदले। अपने पेशे से इंसाफ़ करे लोगों को सही हक़ीक़त से रुबरु कराऐ। उन सब चीजों को नज़रअंदाज़ करे जो उसके लिए मुनासिब नहीं है। अगर ऐसा हो तो मीडिया की सही तस्वीर लोगों के सामने आयेगी और मीडिया पर न केवल लोगों का विश्वास कायम होगा बल्कि उसे इज्जत भी मिलेगी।
                        (लेखक  नोयडा स्थित चैनल वन के हेड ऑफिस में कार्यरत हैं )

Friday, December 24, 2010

सूचना अधिकार को लेकर भ्रम न पाले


सूचना अधिकार कानून के अमल में आने से एक ओर जहां लोगों को पहली बार लगा कि वास्तव में यह तो क्रांतिकारी कदम है। इस कानून की वजह से चंद सालों में ही लोग जान गए कि सुचना के अधिकार के तहत सरकारी कार्यालयों से कोई भी जानकारी बड़ी ही आसानी से मांगी जा सकती है। इसका सबसे बड़ा फ़ायदा उन लोगों को हुआ जिनकी आवाज अभी तक अनसुनी कर दी जाती थी। वो समझ ही नहीं पाते थे कि आख़िर देश का सरकारी महकमा कर क्या रहा है। इस कानून में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि देश के आम और ख़ास लोगों को वो सब जानकारी जो वो चाहते हैं दी जाऐं, साथ ही अगर महकमा इसमें असफ़ल रहता है या सूचना देने में हीलाहवाली करता है तो संबधित अधिकारी पर जुर्माना भी लगाया जाए।
        दरअसल सरकारी महकमा आम लोगों को जिस तरीके से काम निकलवाने के लिए दफ़्तरों के चक्कर कटवाता है उससे लोग बेहद खफ़ा होते हैं। सरकारी चपरासी से लेकर बड़े अफ़सर सभी जनता का आवाज़ को अनसुना कर देते हैं। लेकिन इस कानून की वजह से उनके कानों का मैल कुछ हद तक साफ हुआ है। सरकारी कर्मचारी जान गऐ कि अब बात पहले जैसी आसान नहीं है। लोगों में जागरुकता आ रही है, कोई भी सादे काग़ज पर दस रुपए के भुगतान पर संबंधित आफ़िस से जानकारी मांग सकता है।
       
       हालिया घोटाले सामने आने पर सरकार भी इस कानून से डर गई लगती है। लेकिन एक आरटीआई एक्टविस्ट होने के नाते में कहना चाहता हूं कि लोगों को कोई भी भ्रम नहीं पालना चाहिए अगर सरकार शुल्क में बढ़ोत्तरी करने के मूड में है तो कर दे लेकिन इससे कम से कम हमें अपना अधिकार तो मिलेगा ही। भले ही सरकार की मंशा सूचना अधिकार को सीमित करने की हो लेकिन फिर भी वो इसे समाप्त नहीं कर सकती। 250 शब्दों में अपनी अपील करने की जो बात सामने आ रही है तो उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ने वाला क्योंकि कम शब्दों में भी प्रभावशाली बात की जा सकती है। 
                                           

Friday, December 17, 2010

सिफा़रिश......


बेहद परेशान था उत्पल...रोजाना के धक्के खाकर परेशान हो चुका था....साला.... मीडिया के चक्कर में कहीं पागल न हो जाऊं...मीडिया बिल्कुल बांसुरी की तरह...बाहर से सुरीली..लेकिन अंदर से उतनी ही खोखली...देखो एक बात तो है उत्पल.... अगर तुम्हारा मीडिया में कोई लिंक नही है तो फिर तुम कुछ नहीं कर सकते क्योंकि....जब तक तुम अंदर इंट्री नहीं कर पाओगे तब तक कुछ भी नहीं हो सकता.....प्यार से समझा रहे थे उसके मकानमालिक....लिंक बनाओ...पर कैसे अंकल....कैसे भी... खड़े रहो मीडिया के दरवाज़े पर कभी तो किसी की नज़र पड़ेगी तुम पर.....ठीक है......
      रात को नींद नहीं आ रही थी उसे....अगर इंस्टिटयूट वाले कुछ कांन्टैक्ट करा देते तो शायद आज ये दिन न देखना पड़ता....लेकिन कुछ भी हो काम तो मीडिया में ही करना है....बस एक बार....सोचते-सोचते सो गया उत्पल......
       अगले दिन नहा धो कर निकल पड़ा अपनी मंज़िल की ओर....चैनल पीपीएन के गेट पर जैसे ही पंहुचा सिक्योरिटी वालों ने रोक लिया.....हां भईया....किनसे मिलना है....एडीटर से....वो तो अभी नहीं आए....कब आएंगें....मालूम नहीं.....ठीक है.....बुझे मन से बाहर निकल आया उत्पल.....तभी उसकी नज़र सामने से आ रही एक खुबसूरत लड़की पर पड़ी.....वो सीधे गेट पर पंहुची और गार्ड से कुछ कहा और चैनल के अंदर घुस गई....उत्पल देखता रह गया....
       अरे गाड़ी निकालो भई एडीटर साहब आ रहे हैं....गार्ड चिल्लाया...चौंका उत्पल...साला झूठा....अभी तो कह रहा था कि एडीटर नहीं है...अब क्या आसमान से उतर आया.....एडीटर के जाते ही.....अरे तुम तो कह रहे थे कि....एडीटर साहब नहीं हैं वो तो थे....तुम किसलिए आए हो....गार्ड ने पूछा... जोब के लिए....कोई सिफ़ारिश...नहीं... तो भईया फिर हिंया आपका कोई काम होने वाला नहीं.....पर यार कुछ तो बताओ....अरे आप किसी की सिफ़ारिश ले आओ....किसकी....किसीकी भी....जो एडीटर को जानता हो....
       अंकल कोई मंत्री है आपकी जानपहचान में.... हां है.....सुधीर साहब हैं अपने राज्य से ही हैं बस अंकल मुझे उनसे मिलवा दो....पर हुआ क्या...अंकल बिना सिफ़ारिश के बहुत मुश्किल है.....ठीक है में ही कुछ करता हूं......
       सर...राजन जी हैं एडीटर.....एक मिनट.....अरे शर्मा जरा पता लगाओ कि पीपीएन चैनल का एडीटर कौन है.....सर...राजन करके हे कोई.....नंबर लगाओ...ठीक है...सर....लिजिए सर....लाइन पर है....सुधीर बोल रहा हूं.....अरे सर कैसे हैं आप.....कोई सेवा.....कल एक बंदा आएगा आपके पास जरा देख लेना....बिल्कुल सर...बिल्कुल....भेज दिजिए....जाओ बेटा....पांव छूकर निकल पड़ा उत्पल.....
हां किनसे मिलना है....राजन जी ने बुलाया है....एक मिनट.....ठीक है....आईए मेरे साथ....बैठो ....कैसे हैं मंत्री जी...जी अच्छे हैं....क्या काम कर सकते हो... जो भी आप कहें .....ठीक है न्यूज़ डेस्क संभालो....रवि इनको काम बता दो....ठीक है सर....
       सारे रास्ते सोचता रहा....उत्पल... लेकिन उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था...काश ये सब बिना सिफ़ारिश से होता तो काम करने में मजा आता....एडीटर बदला ते हम भी बदले.....खैर....

      

मान्यता प्राप्त......

नए-नए पत्रकार बने थे चौबे जी...कविता भी खूब लिखा करते थे...थोड़ा बहुत अख़बार वगैरह में काम मिल जाता तो अपने आपको धन्य समझते...कटिंग काट कर मुहल्ले के लोगों को दिखाते....आसपास के लोगों पर रौब झाड़ते कि उनकी जान-पहचान बहुत लम्बी है...अब किसी ने उन्हे बता दिया कि अगर आप फुलटाईम पत्रकारिता करने लगो तो आप को सरकार की और से बहुत सुविधाऐं मिलेंगी.....यहां तक की रोड़वेज़ की बसों में भी फ्री आजा सकते हो....

अच्छा ये तो बड़ी अच्छी बात है.....

     अगले दिन चौबे जी....चढ़ गए बस में....अचानक चौबे जी की नज़र सामने की सीट के ऊपर लिखे मान्यता प्राप्त पत्रकारपर पड़ी....चौबे जी फूलके गप्पा हो गए.....चौड़े हो के बैठ गए सीट पर.... थोड़ी देर बाद कंडक्टर चौबेजी के पास आया.....टिकट.....पत्रकार हैं....अबे कैसा पत्रकार.... चुपचाप टिकट ले.....वरना उतार दूंगा बस से.....खिसिया के रह गए चौबेजी.....अरे कहा न पत्रकार हैं.....अबे तू कौन सा मान्यता प्राप्त पत्रकार है....तेरे जैसे आंडू-पांडू कितने आते हैं रोजाना...टिकट तो ले नहीं रहा ऊपर से रौब झाड़ रहा है....लेता है टिकट या रुकवाऊं बस....अब चौबेजी सोच में पड़ गए...पीछे से आवाज़ आई....हां भईया आजकल तो हर कोई झोलाछाप लिखने वाला भी अपने आपको पत्रकार कहलवाता है.....
    ये लो...कंडक्टर....को घूरते रह गए चौबे जी....मामला टांय-टांय फिस्स हो गया भाई...मन में बुदबुदाए...चौबेजी....
     भाई साब ये बताओ कि जो मान्यता प्राप्त पत्रकार होते हैं वो क्या सच में..... कंडक्टर से धीमे से बोले चौबेजी..... हां तो क्या..... लेकिन वो इस बस में चढेंगें ही क्यों.....हमें क्या ट्रेनिंग फालतू में दी जाती है.....हमको सब बताया जाता है....और अगर तुम मान्यता प्राप्त पत्रकार होते तो अपनी सीट पर बैठते यहां ड्राईवर के पीछे नहीं.....समझे.....समझ गऐ भईया.....ये लो स्टेशन भी आ गया तुम्हारा..... चलो.....टेढे होकर उतर गए चौबेजी.....

Thursday, December 16, 2010

तासीर........


लाखों में तुने मेरा इंतख़ाब किया....
ख़ुदा का शुक्र है कि तुने ये एहसान किया...
में जी रहा था अब तक गर्दिशों में कहीं
मैं जानता हूं तू है... तो सबकुछ है यहीं
न उजाले की थी उम्मीद मुझे..
न रोशनी का ही सबब......
मेरी तन्हाई में जो....तुने रुख़सार किया...
तेरा करम है तुने एतबार किया.....
न मेरी मंजिल थी कोई.... न कोई रहबर
न आरजू थी कोई... न ही कोई इश्रत
अब तो जीने में कोई शिकवा नहीं....
तेरा साया है तो फ़िर कोई गिला भी नहीं.....



Wednesday, December 15, 2010

एहसास.....


काली जुल्फें...आंखें कत्थई....
होंठ शबनमी...लगते हैं....
दूर कहीं एक उजला चेहरा
पास से हमदम लगते हैं....
रातें लम्बी....बात मुख़्तसर..
देखते हैं..उनको जी भर....
बस ये उनका कहना है...
कोई तो है जो अपना है...
कभी तो ख़ुशबू महकेगी
कभी तो चांदनी फैलेगी...
बात यहीं तक हो तो शायद
वो सह लेते हैं इंतिख़ाब
तु जो कह दे बात सही है
तेरा हर अल्फ़ाज़ सही है...
कोशिश अब मुमकिन है कि
मैं न हो जाउं आवारा कहीं..
तेरा साथ मिले तो शायद
मैं न बन जाउं नूर कहीं......



खुदा के लिए......

'खुदा के लिएकितनी बेहतर फिल्म है इस्लाम को जानने के लिए....मेरा साफ मानना है कि अगर इस्लाम के बारे में जानना है तो सबसे बेहतर अगर कुछ है तो वो है कुरान शरीफ़....कुरान को पढ़ने के बाद आसानी से जाना जा सकता है कि इस्लाम क्या है....दो शब्दों में कहूं तो इस्लाम अमन का पैगाम है....इंसानियत के नाम पर अगर कोई इस दुनिया में अव्वल है तो वो सिर्फ़ और सिर्फ़ मुहम्मद साहब हैं....वो इस लिए कि एक तो उनके पास दुनियावी मसलों के जवाब हर वक्त मौजुद रहते थे....कितने ही लोग और साहिबा उनके पास आते और बेहिचक अपने सवालात उनके सामने रखते.....हुजू़र बड़ी साफ़गोई और नरमाई के साथ उनके सवालों का जवाब देते......
       आज कुछ लोगों की वजह से इस्लाम की ग़लत तस्वीर पेश कर दी गई है....लेकिन अगर इस तस्वीर की हकी़क़त जाननी है तो कुरान को पढ़ना ही होगा....उसके बाद कोई बात की जाए तो बेहतर है....कुछ लोगों का मानना है कि इस्लाम तलवार के बल पर फैला है....लेकिन मुझ जैसे लोगों का मानना है कि अगर ऐसा होता तो शायद तस्वीर दूसरी होती....कई लोग कहते हैं कि फलां चीज इस्लाम में हराम है...अब हराम है या हलाल ये कैसे पता चले.... तो इसके लिए आपको उस बारे में जानना बेहद जरुरी बन पड़ता है....यूं ही बिना बात के कुछ भी कह देना नामुनासिब है.....
       मेरे कई अच्छे दोस्त गैर-मुस्लिम हैं....मेरे एक दोस्त जो सिविल की तैयारी कर रहे हैं और इंशाल्लाह एक दिन जरुर आई.ए.एस बनेंगें...को मैने हिंदी की कुरान दिलवाई.....उन्होने एक दिन मुझसे कहा कि एक दिन उनके कोई रिश्तेदार उनके घर आऐ और पूजा करने की जगह पर कुरान देखकर चौंक पडे़....और कहा कि इसे यहां क्यों रखा है तो मेरे अज़ीज दोस्त ने उन्हे टका सा जवाब दिया कि जितनी अहमियत मेरी नज़र में गीता की है उतनी ही कुरान की भी है.....
       मेरा मानना है कि हमें सब धर्मों की इज्जत करनी चाहिए....क्योंकि इस्लाम इंसानियत पर बहुत जोर देता है....अगर हम इंसानियत को भूल गए तो समझो हम अपने धर्म को ही भूल गए....कुरान में कहीं भी ये नहीं लिखा है कि किसी मासूम की जान लो....किसी को नुकसान पंहुचाओ...किसी की बुराई करो....झूठ बोलो....बल्कि अल्लाहताला को ये सब बेहद नागवार गुजरता है.....अल्लाह का हम शुक्रिया अदा करना चाहिए कि उसने हमें खाने-पीने की बेशुमार चीजें नवाजीं... कि अगर हम चौबीस घंटों खाते भी रहें तो शायद ख़त्म न हों....उसने हमें वो सब अता किया जो हमें जिंदगी गुज़ारने के लिए चाहिए....बेशक सारी तारीफ़ अल्लाह के लिए ही हैं.....

Tuesday, December 14, 2010

लम्हा...............


 पकडूं में उनका हाथ और साये को थाम लूं
रुख़सती का वक्त है, बस उनका नाम लूं
बागे-ए-वफ़ा में जिन्दगी गुज़ारी थी उम्रभर
छूटा नहीं था कोई भी लम्हा तेरे बगैर
ये कौन सी है जुस्तजू ये कौन सा है फ़ैसला
ये कौन सी है आरजू़ ये कौन सा हौंसला
आज भी तुम यक़ीनन हो वही 'इंतिख़ाब'
लब भले ख़ामोश हैं कह रहा है आफ़ताब
तुम हमेशा साथ हो तो में रहूंगा बेफिक्र
में तुम्हारी शायरी तुम मेरा अस्क़ाम हो
जो भी हो अब वायदा ये हो ऐ नाज़नीन
तुम मेरी और में तुम्हारा हूं अशफ़ाक़

सब माया है....


 सब माया है,सब ढलती फिरती छाया है। जी हां कितनी खूबसूरती से गाया है अताउल्ला खां इसाख़िलवी ने... माया यानि पैसा.... हाय पैसा... कैसे कमाऐं पैसा...बाप बड़ा न भैया सबसे बड़ा रुपैया...पागल है दुनिया पैसे के लिए...तेजी से भाग रहे समय में हर कोई चाहता है कि कैसे ज्यादा से ज्यादा माया इकट्ठा की जाऐ ताकि हमें भौतिक सुख मिल सके...आज के दौर में ज्यादा दौलत कमाना स्टेट सिंबल बन गया है....हर कोई एक दूसरे से ज्यादा पैसा कमाकर समाज में अपनी झूठी शान दिखाना चाहता है....हालांकि आज के दौर में दिक्कत इस बात कि है कि लोगों में सब्र कम है..वो किसी भी बात का इंतजार नहीं करना चाहते...उन्हे लगता है कि फटाफट पैसा कमाओ और समाज में रुतबा बढ़ाओ...अधिकतर लोग ये मानते हैं कि पैसा कमाने के कई शार्टकट तरीके भी हैं जिन्हे आजमाकर आसानी से पैसा कमाया जा सकता है...लेकिन क्या उस पैसे में बरकत होगी सोचने वाली बात है...
       संतोष परम् धनंजीवन में अगर संतोष यानि सब्र नहीं तो कुछ भी नहीं आप लाख़ पैसा कमा लें...लेकिन अगर आपको सब्र नहीं तो उस पैसे का कोई फायदा नहीं है...जिंदगी इतनी लंबी नहीं कि आप सबकुछ आसानी से हासिल कर लें आपको लगातार मेहनत करने की आदत होनी चाहिए....मेहनत से कमाया हुआ पैसा कभी भी नुकसान नहीं पंहुचा सकता....लोग अक्सर ये कहते हैं कि फलां काम में उन्हे नुकसान हो गया...अगर दिमाग पर जोर डालें तो आसानी से बात को समझ सकते हैं...लेकिन इंसान की फितरत ही ऐसी है कि वो समझ कर भी नासमझ बना रहता है....माना कि पैसे से आप वो सब खरीद सकते हैं जो आपको पसंद है लेकिन क्या सुख और चैन खरीद सकते हैं...नहीं ना तो फिर किस बात की जद्दोजहद किस बात की टेंशन....
       आपको आज भी पुराने जमाने के कई लोग ऐसे मिल जाऐंगें जो कहते हैं कि उनके जमाने में पैसे को इतनी तवज्जो नहीं दी जाती थी....लेकिन आज के दौर में पैसे की अहमियत इसलिए भी बढ़ गई है कि आज हमने अपने जीने के ढंग को ही बदल दिया है....हमने हर चीज को पैसे से आंकना शुरु कर दिया है...रिश्तों नातों को भी हम अब पैसों से आंकने लग गए हैं...हमारा कोई रिश्तेदार अगर गरीब है तो उसकी सबसे पहले मदद करना हमारा फ़र्ज भी है और जिम्मेदारी भी...लेकिन हमने ऱिश्तों की दीवार अब इतनी उंची कर दी है कि रिश्ते दरकने लगे हैं....
        जिंदगी में कई उतार चढ़ाव के बावजूद भी कई ऐसे लोग आपको मिल जाऐंगें जिनके पास पैसा तो है लेकिन इज्जत नहीं लोग उन्हे गाली देते नहीं थकते...वहीं कई लोग ऐसे भी हैं जो अपनी इज्जत को ज्यादा एहमियत देते हैं...उन्हे कोई परवाह नहीं होती वो हर किसी से बडी़ ही आसानी से मिलते हैं...यही कारण है कि लोग उनकी इज्जत करते हैं....पैसा हो लेकिन इतना... जो आदमी चैन से अपनी जिंदगी गुजार सके...चूंकि चैन से जिंदगी गुजारने वाले सही मायनों में असली जिंदगी जीते हैं....

Monday, December 13, 2010

जरा सुनिए....तो....


मुहल्ले के चार-छे: आवारा लोंडों के साथ चचा बतुलै अपना अनुभव बांटने में लगे थे...में अपने आफिस निकल ही रहा था कि उनमें से एक ने चचा को मुझे आता देख इशारा कर दिया... चचा जानी दुश्मन की स्टाइल में मुझ पर झपट पडे़....अरे..चचा...ये क्या...मैं अभी आफिस जा रहा हूं....वापसी में आकर तुम्हारी गप सुनुंगा...गप....चचा तैश में आ गए...अच्छा तो तुम भी अब अपने आपको मुगले-आज़म समझने लगे हो....अरे....चचा लेट हो रहा हूं....और ये क्या जरा अपनी उमर का लिहाज़ तो कर लिया करो....इन आवारा लोंडों के साथ फालतू की बकवास करते रहते हो दिनभर.... कहूं क्या जाके चाची से...इतना सुनते ही चचा कुछ नरम हो गए....चलो बे...ढक्कनों भागो यहां से...उल्लू की दुम दिन भर चचा को रेडियो समझते रहते हैं....कसम उड़ानझल्ले की....पर चचा आजकल तो तुम्हारी बल्ले-बल्ले होगी....क्यों मेरी क्या पिक्चर हिट हो गई है जो तुम....अरे चचा कैसी बात करते हो एकदम फालतू...अरे में 3G स्पेक्ट्रम घोटाले की बात कर रहा हूं.... सुना है इसमें तुम्हारा भी शेयर था....अरे मिंया जरा होश की बात किया करो एक तो में वैसे ही कर्ज में डूबा पड़ा हूं उपर से तुम.....पर हां सरकार कोई भी हो एक ही थाली के चम्मच हैं....अब कांग्रेस बीजेपी को कोस रही है कि उसी के राज में ये घोटाला हुआ वहीं बीजेपी कह रही है कि घोटालों की सरदार रही कांग्रेस अपना दामन पतिव्रता नारी की तरह पाक साफ बता रही है....अभी कल ही मेरी कपिल सिब्बल से बात हुई....बस चचा रहने दो...अबे सुनो तो सही.....नहीं चचा....फिर कभी.....बाय....चचा खिसिया उठे...और धम्म से टूटी खटिया पर पांव फैलाकर बैठ गए.....

वर्तमान परिदृश्य में मीडिया की भूमिका.....

इलैक्ट्रानिक मीडिया के विस्तार ने जहां एक और विश्वसनियता कायम की है वहीं कई बार ऐसी भी ख़बरें लोगों तक पहुंचाई हैं जिन्हे असंभव माना गया वो चाहे करगिल युद्ध हो या फिर इराक पर अमेरिका के हमले का प्रसारण आज भी कई ऐसे पत्रकार हैं जो अपनी जान की परवाह न करके ख़बरों को आम जनता तक पंहुचाना अपना फ़र्ज समझते हैं। अगर समूचे विश्व की बात की जाऐ तो विश्व में कई पत्रकार ख़बरों को पंहुचाने के फेर में अपनी जान से भी हाथ धो बैठते हैं।
       आज के दौर में जहां हर तरफ रिश्वत और भष्टाचार का माहौल है वहीं अगर कहें कि मीडिया इससे अछूता है तो बेईमानी होगी, लोकतंत्र का चौथा खंभा और सत्ता पलटने में माहिर मीडिया के वर्तमान परिदृश्य पर अगर गौर करें तो पाएंगें कि हर क्षेत्र की तरह इसमें भी प्रतियोगिता का दौर रहा है। इस प्रतियोगिता की वजह से मीडिया आज बेहद मजबूत स्थिति में खड़ा है।हर सिक्के के दो पहलू होते हैं अगर मीडिया कभी-कभी नरम गरम होता है तो इसमें उसकी कोई गलती नहीं है। आज भले ही इंटरनेट का जमाना हो लेकिन फिर भी लोग सुबह-सुबह चाय के साथ अख़बार पढ़ना नहीं भूलते दिन-ब-दिन अख़बार की संख्या में बढ़ोत्तरी होना इस बात का सबूत है कि अभी भी लोगों का मीडिया पर विश्वास कायम है।
      कई मीडिया हाउसों ने सरकार और उसके नुमाइंदों से संबंध बनाने के चक्कर में अपनी प्रतिष्ठा को दांव पर लगा दिया जिसका असर अन्य मीडिया हाउसों पर भी पड़ना स्वभाविक था। आरोप लगाया जाने लगा कि ज्यादातर मीडिया हाउस बडे़ घरानों को फायदा पंहुचाते हैं। हाल ही में नीरा राडिया और उसके संपर्क में आए कुछ बड़े पत्रकारों ने सरकार पर स्वहित के लिए दबाव बनाया जिससे मीडिया की किरकिरी होने लाजिमी था। शक की उंगली हर उस पत्रकार पर उठ रही है जिसके संबंध उच्च बिजनेस घरानों और नेताओं से हैं।
      पेड न्यूज़ को लेकर भी कई बार लोगों ने मीडिया हाउसों पर आरोप लगाए हैं कि ये लोग पैसा लेकर किसी की भी ख़बर दिखा और छाप सकते हैं। इससे भी पत्रकारिता की गरिमा प्रभावित हुई लेकिन किसी ने भी खुलकर इसका विरोध नहीं किया क्योंकि हमाम में सब नंगें थे। प्रतिष्ठा और पद को लेकर अपने संबंध बड़े लोगों से बनाना आम हो गया है। आज हर पत्रकार चाहता है कि उसके संबंध हर बड़े से बड़े नेता से हों ताकि वक्त आने पर वो इसका फायदा उठा सके।
      मीडिया पर आरोप लग रहा है कि वो अब मिशन नहीं रही बल्कि व्यवसाय में तब्दील हो गई है। उसका लक्ष्य सिर्फ़ पैसा और रसूख़ कमाना है आम लोगों से उसे कोई सरोकार नहीं है। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है?...अगर ऐसा होता तो शायद बड़े-बड़े घोटाले और वे सब जिनका मीडिया ने पर्दाफाश कर लोगों को इंसाफ़ दिलाने की कोशिश की वे सब न होता। संभवतया मीडिया आज भले ही पारदर्शी भुमिका में न हो लेकिन अपनी जिम्मेदारी से मुंह तो नहीं मोड़ रहा है।  
    

Saturday, December 11, 2010

काबिलियत...

जल्दी करो.....प्राइम टाईम में ही ये स्टोरी चलनी चाहिए...एडीटर ने जोर देते हुए कहा....कैप्चर कर रहे...टोनी पर रनडाउन प्राडयूसर चिल्लाया...अबे जल्दी कर.. वहां बैठकर क्या....गाना गा रहा है....बस सर दो मिनट..अबे दो मिनट के बच्चे मेरी नौकरी खाएगा क्या...साले अगर मेरी नौकरी पर आंच आई तो समझ ले तू गया...टीक है सर बस हो गया.....शाम को बैचेनी की हालत में घर लौटा टोनी....साली क्या नौकरी है बिल्कुल चूतिया टाइप...काम भी करो और गाली भी खाओ....रात को बिस्तर पर भी दिमाग में आफिस की बातें याद आ रही थीं....
      हाय जल्दी...हाय जल्दी...रोज रोज की जल्दी से उकता गया टोनी....उसे लगने लगा कि आखिर कब तक ये सब चलता रहेगा....सब्र करने की भी हद होती है...उसे न जाने क्यों आज नींद नहीं आ रही थी....रोजाना तो उसे बिस्तर पर लेटते ही नींद आ जाती है पर आज....नींद का नाता जैसे उससे टूट गया था....पुराने ख़्यालों में खो गया टोनी...
       अरे झा साहब कैसे हैं आप....और सुनाईये क्या सब चल रहा है.... बस सर दुआऐं हैं आपकी.....आजकल तो मीडिया में छा गए हो....बस सर ये सब आप जैसों के साथ का असर है.....सर आजकल टोनी क्या कर रहा है....वही मेडिकल की तैयारी....सर अगर आप चाहें तो उसे मीडिया कोर्स करवा सकते हैं.....फ्यूचर बड़ा ही ब्राईट है आने वाले टाइम में....
     काश पापा को झा साहब ने सलाह न दी होती...तो में आज इस गंदगी से बच जाता....कुछ दिन और तैयारी कर लेता तो शायद आज डाक्टर बन गया होता पर....
सारी रात टोनी के दिमाग में टेंशन चलती रही....छोड़ दूंगा में ये सब....इससे अच्छा है कि में कहीं टयूशन ही पढ़ाउं.....कोई बिजनेस....कई सवाल एक के बाद एक उसके दिमाग में कौंध रहे थे....अब अगर किसी ने कुछ कह दिया तो साले की मां-बहन एक कर दूंगा....गुस्से से भर उठा....टोनी....
     अरे टोनी क्या बात है....कुछ हुआ क्या ....नहीं यार....बता तो सही...बस यार...रहने दे....फिर कभी बताउंगा.....
     अरे टोनी इसे फटाफट कैप्चर कर दे मुझे स्टोरी तैयार करनी है.....रिपोर्टर ने कहा ठीक है सर.....और सुन जरा जल्दी.....ठीक है....साले सब के सब को जल्दी.... ये साले पैदा होते वक्त भी कह रहे होंगे जल्दी....घोंचू कहीं के.....तभी रनडाउन प्राडयूसर ने कहा...टोनी एक काम कर जल्दी से ये टेप कैप्चर कर दे...सर वो रिपोर्टर ने.....अबे पहले मेरा काम कर समझे....
    अरे हुआ कैप्चर....रिपोर्टर आकाश ने लगभग चिल्लाते हुए कहा.....नहीं सर वो...वो क्या....साला यहां बैठकर क्या करते हो.....प्राइम टाइम में स्टोरी चलनी है...और तुमने अभी तक कैप्चर तक नहीं किया.....
अबे....चुप कर मादरचो......साले तेरे बाप का नौकर हूं क्या.....मशीन हूं में....चार हाथ हैं मेरे....साले जिसको देखो जल्दी...जल्दी...और तू कौन होता है मुझे हड़काने वाला....साले.... तेरे बारे में सब जानता हूं में.....सिफारिश से टिका है तू यहां.....वरना तेरी कोई औकात नहीं......दिनभर गाड़ी में सोते हो....टांसफर लाके देते हो.....फिर कहते हो जल्दी कर....क्या हुआ.....रनडाउन प्राडयूसर ने कहा....सर ये.....रिपोर्टर ने कहा....अबे चल तू निकल यहां से साले तू कल मेरी नौकरी खाने की बात कर रहा था ना....अब देखना कौन किसकी नौकरी खाता है.....
         अगले ही दिन......सर ये मेरी रिजाईन लेटर.....पर टोनी क्या हुआ बस सर बहुत हो गया .....चैन से जीना चाहता हूं में......काश मेरे पापा को.....पूरी बात एडीटर को बता दी टोनी ने.....
    अगले दिन टोनी....असाइंनमेंट पर बैठा था.....और रनडाउन प्राडयूसर.....पीसीआर में टीपी चला रहा था....
       
    
      
 

Friday, December 10, 2010

कसम


तेरी आंखों की कसम...तुझे न भूलूंगा
तेरी मुहब्बत में हर जख़्म सह लूंगा
जो आए आंधियां में रोक लूंगा
तेरे लिए ऐ सनम हर दर्द सह लूंगा
मुझे मालूम है तेरी कसमें
जो साथ दे तू मेरा
में हर जंग जीत लूंगा...

Tuesday, December 7, 2010

खोया-खोया चांद


चचा बतूलै का मुड आज कुछ उखड़ा सा लग रहा था....मुझे देखते ही घूरने लगे...थोड़ी देर बाद चुप्पी तोड़कर बोले अब तुम क्या सरकारी आदमी हो जो तुमसे बैर करुं....चचा क्या बात है..चची ने बेलन छाप दिए क्या....अबे बात क्या होगी....मेरा दिमाग खराब हो रिया है....कसम उड़ानझल्ले की....क्यों चची ने आज.....अबे चुप कर.....जब देखो चची...चची...क्या चची..चची लगा रिया है.....बात दरअसल यूं है कि देश में रिश्वत और भष्ट्राचार बढ़ता ही जा रिया है.....लेकिन कोई कुछ करने को तैयार नहीं दिख रिया है....राजा ने इतने पैसे हजम कर लिए कि उसकी चौदह पुश्ते आराम से बैठ कै खाएं तो भी खजाना कम न हो.....बात तो एकदम सही है चचा...पर तुम ही कुछ क्यों नहीं करते हम सब तुम्हारे पीछे हैं.....ये बात सुनते ही चचा अपनी औकात में आ गए.....धमाका छाप तंबाकू मुंह के अंदर डालते हुए.....टूटी खटिया पर यूं उचक के बैठे मानो....सरकार इनकी ही बन गई हो......अब फैंकने की बारी चचा की थी....अरे में तो कै रिया हूं कि ऐसी सरकार किस काम की जो अपनी जनता की बार-बार हजामत करती रहे.....मैने कल ही प्रधानमंत्री को फोन लगा कै कैया कि बहुत हो गया सरदार जी अब तो .....डारेक्ट फोन मिला डाला चचा तुमने......पांडू चिल्लाया....और तो क्या.....तो फिर क्या कहा उन्होने चचा....मैने कहा....अबे कैना क्या था.....कैया कि चिंता मत करो....चचा....जल्द ही सरकार इस मामले पर एक कमेटी बैठाएगी.....बस चचा रहने दो.....बहुत हो गई...ये कमेटियां.....मेरी समझ में इनका झोलझाल नहीं आता....तुम ही.लगे रहो....में निकल पड़ा....चचा खिसिया उठे....और मेरा हाथ पकड़ कर कहने लगे.एक बात और में इसके खिलाफ भूख हड़ताल पे बैठने जा रिया हूं....अपनी चची से कईयो कि रात को तीन बजे खाना लेके आ जावे.....ठीक है...चचा...और ये भी कह दूंगा कि खाने में जहर मिला के ले आए...कब तक पकते रहेंगें तुमसे.....कहकर में जोर से भागा......
                                                     आलम इंतिख़ाब

Monday, December 6, 2010

ख़ामोशी


किसी के लब जो ख़ामोश हों
बात कह जाते हैं..........
कहीं अजनबी भी कभी...
अपने हो जाते हैं.......
सलीका हो तो चलूं तेरे साथ वरना
हम तो बात पर ही....
मुतमईन हो जाते है....
वे तारे झोली में फैलाके दे रहे थे मुझको
हाथ फैलाउं भी तो कैसे....
वे जख़्म भी दे जाते हैं...
मेरी जरा सी भी बात उन्हे गंवारा नहीं
वो हर बात में अपनी ही कहे जाते हैं..
मेरा तसव्वुर है...या फिर मेरा माज़ी अपना
कोई उन्हे समझाए तो वो क्यूं बड़बडाते हैं...
                      आलम इंतिख़ाब





हौंसला

मैने सुना कि तुम रात सो नहीं पायी....
सारी रात देखती रहीं मेरा ही ख़्वाब
चेहरे पे तुम्हारे दिखाई दी.......
शबनम की कुछ बूंदें.....और चमक
ये क्या मेरा नसीब था या फिर.....
तुम्हारा बेपनाह हुस्न.......कुछ भी हो..
अब जब राज खुल ही गया...तो फिर
मुझसे नजर क्यों चुरा रही हो.......क्या
हौंसला नहीं है....कुछ कह पाने का.....
क्या हौंसला नहीं है....जमाने से लड़ जाने का
देखो शाम ढलने को है....शमां जलने को है..
कुछ तो कह दो...ताकि मैं भी देख सकूं...
तुम्हारा ख्वाब..में सोना चाहता हूं सारी रात...
                          आलम इंतिख़ाब अंसारी

आपबीती......

लेखन का शौक बचपन से ही था। आए दिन कुछ न कुछ लिखने की आदत ने अख़बार से दोस्ती करा दी...आखिर अख़बार ही वो जरिया था जिसमें लेखन के जरिए लोगों तक अपनी बात पंहुचाई जा सकती थी। 1997 में अमर उजाला में और अंत में छोटा लेकिन प्रभावशाली लेख छपा...लोगों ने पढ़ा तो हौसलाअफ़ज़ाई की...और लिखने की प्रेरणा मिली..समय बीतता गया मैं लिखता गया...आखिर कुछ अच्छे लोगों की सलाह पर जर्नलिज्म को अपनाने की सोची। लगता था कि कितना अच्छा पेशा है आम लोगों की आवाज़ बनने का इससे अच्छा कोई दूसरा पेशा नहीं....यही सोचकर जामिया मिल्लिया इस्लामिया नई दिल्ली से जर्नलिज्म का डिप्लोमा किया।
         जब तक पढ़ाई चलती रही तब तक तो सब ठीक-ठाक रहा लेकिन जैसे ही कोर्स पूरा किया और इंटर्नशिप करनी चाही तो पता चला कि अगर आपके चैनल और अख़बार में लिंक नहीं हैं तो आप इंटर्नशिप तो क्या अंदर घुस भी नहीं सकते। कई महीने चैनल और अख़बार के दफ़्तरों के चक्कर काटने के बाद इंटर्नशिप मिली। मन में तय था कि काम पूरी ईमानदारी और मेहनत से करना है। कोई भी काम मिले करना है तो करना है...आज उसी का फल है कि में एक न्यूज चैनल में काफी कम समय में ही असि.प्राडयूसर बन गया हूं। रोजाना मेरे मन में कई नये आइडियाज आते हैं और मेरी कोशिश है कि एक बेहतर काम को अंजाम दिया जाए।
         चूंकि जर्नलिज्म में लेखन बहुत महत्वपूर्ण है इसलिए लेखन का प्रभावशाली होना बेहद आवश्यक है। चाहे टी.वी.हो या अख़बार बिना प्रभावशाली लेखन के आप ज्यादा दूर नहीं जा सकते। मेरी आज भी कोशिश होती है कि कुछ न कुछ लिखता रहूं..बड़े और अच्छे लोगों से दोस्ती के कारण ही में अपना काम बेहतर ढंग से कर रहा हूं। मैने अपने सामने कई ऐसे लोगों को देखा है जिन्होने इस फील्ड को अलविदा कह दिया। और फील्ड से इतर ये पूरी मेहनत मांगता है...  
           

Friday, December 3, 2010

औंस


नंगे पांव औंस पे चलना
उनका संवरना उनका मचलना
मौसम भी ये कैसा मौसम
शायद मिलना और बिछड़ना
देखा उनको सुबह सवेरे
रात कटी न कटे न अंधेरे
लब पे तबस्सुम जुल्फ़ घनी सी
आंखों मे काजल रुत बदली सी
देख के उनको रुक जाए मौसम
अब तो शायद फिर जाए मौसम
        आलम इंतिख़ाब........

Wednesday, December 1, 2010

ख़्वाब


 ख़्वाब देखा है मैने...ख़्वाब ही था शायद
वो तुम ही तो थीं..मटमैली चादर ओढ़े हुए
याद है मुझे मेरा ख़्वाब जब तुम
मेंहदी लगे हाथों से चुल्लू भर कर
पी रहीं थीं चश्मे का पानी....
और मुझे देखकर आया जब
तुम्हारे होठों पर हल्का सा तबस्सुम
लगा जैसे आसमां आ गया हो जमीं पर
मुझे मालूम है कि तुम हो कहीं पर
कैसे और किनसे कहूं अपना ख़्वाब
मुझे मालूम है हंसेंगें लोग मेरी तन्हाई पर
और कहेंगें तुम कहीं पागल तो नहीं
जानता हूं में ये अच्छी तरह
कुछ ख़्वाब होते हैं झूठे तो कुछ सच्चे भी
काश ऐसा हो के मेरा ख़्वाब भी सच्चा निकले...
                          आलम इंतिख़ाब

Saturday, November 27, 2010

पप्पू पास हो गया....


बिहार विधानसभा चुनाव को देखकर लगता है कि अब आम जनता को आसानी से उल्लू नहीं बनाया जा सकता,अब तक कभी जातिवाद के नाम पर तो कभी मंदिर-मस्जिद के नाम पर पार्टियां आम पब्लिक को वोट बैंक समझती थीं। लेकिन देश का सबसे पिछड़ा राज्य घोषित बिहार इस बार सुर्ख़ियों में छा गया। चुनाव तो बिहार में भी इससे पहले होते आए हैं लेकिन बिहारी के नाम पर लोगों को छेड़ने वालों के मुंह वहां कि जनता ने बंद करवा दिए उन्होने जता दिया कि वे अब किसी के भी झांसे में आने वाले नहीं हैं। आप बेहतर जानते हैं कि इस देश में वोट डालने में अधिकतर ग्रामीण तबका आगे रहता है। उन्हे उम्मीद होती है कि नये नेता और नई सरकार उनके हित में कुछ काम कर सकेगें... मगर अफसोस कि नेता और पार्टियां उनके विकास के लिए न तो कोई काम करते हैं न ही चुनाव जीतने के बाद उनसे कोई सरोकार रखते हैं। बिहार में भी वर्षों से ऐसा ही चला आ रहा था जनता उब चुकी थी। चिंदी चोर जैसे दिखने वाले नेता सिर्फ अपना खजाना भरने में ही जुटे रहते थे, लेकिन इस बार वहां की जनता ने उन नेताओं के मुंह पर जोरदार तमाचा मारा जो उन्हे केवल वोटबैंक समझ रहे थे।
         बिहार चुनाव में आम जनता की इसलिए भी तारीफ करनी चाहिए कि उन्होने जाति धर्म से उपर उठकर विकास को वोट दिया। आसानी से समझा जा सकता है कि अगर विकास होगा तो फायदा हर किसी को होगा,विकास के काम अगर होंगे तो पूछकर नहीं होंगे कि ये हिंदु का इलाका है या ये मुसलमान का। खास बात ये रही कि बीजेपी से गठबंधन के बावजूद भी आम मुसलमानों ने जेडीयू को वोट दिए आखिर उन्हे भी तो विकास चाहिए...उन्हे भी सड़क,रोजगार,शिक्षा चाहिए। अपने भड़काउ भाषणों के लिए मशहुर नरेंद्र मोदी और वरुण गांधी जैसों को भी बीजेपी ने बिहार नहीं भेजा जिसका फायदा आखिर उन्हे ही मिला रिजल्ट आने पर वे खुद ताज्जुब में थे।
          कारण साफ है जनता समझ गई है कि अब फालतू बातों का कोई महत्व नहीं है अगर समाज के साथ कदम मिलाकर चलना है तो विकास को चुनना ही होगा। इस चुनाव से जाहिर होता है कि लोगों की विकास में कितनी दिलचस्पी है। हमें उम्मीद करनी चाहिए कि गुजरात,बिहार की तरह अन्य राज्यों में भी जनता विकास को ही चुनें ताकि उनका मुस्तकबिल(भविष्य) बेहतर हो सके।

Friday, November 26, 2010

फैंको मगर प्यार से

चचा बतूलै बेहद खुश नजर आ रहे थे....लगता था आज उनकी सारी चिंताए दूर हो गई हों....मुझे देखते ही बोले और सुनाओ लल्ला....क्या सब चल रहा है....आजकल किसकी मां-बहन एक करने जा रहे हो....क्या मतलब चचा....अरे...तुम मीडिया वाले मतलब बहुत पूछते हो.....हैं......एक तो तुमने अपने चारा छाप पहलवान को हरवा दिया उपर से मतलब हमसे पूछ रहे हो.....लेकिन मैं समझा नहीं चचा क्या बक रहे हो....अब फैंकने की बारी चचा की थी....अबे सुना है लालू बहुत टेंशन में चल रहा है....उसने नितिश से वादा किया था कि उनकी मेहरारु यानि पूज्यनिय भाभी रबड़ी मलाई....मेरा मतलब है...राबड़ी देवी..को अगर हरा दिया तो वो उसकी टांग के नीचे से निकल जाएंगें...अब उन्हे लग रिया है...कि जनता को नितिश ने क्या पाठ पढ़ा दिया....जो उनकी मां-बहन एक हो गई.....वो तो अब तक जनता को उल्लू बना रहे थे इस बार जनता ने उन्हे उल्लू बना दिया.....पर चचा...तुम तो.....अबे पके हुए अमरुद....मैं क्या...मैं तो पैलेई कै रिया था....और तुम मीडिया वालों ने भी तो.....अरे चचा हमारा काम है...जनता को जागरुक करना.....हमने पहले ही बतला दिया था कि इस बार लालू एंड कंपनी की......समझ गया....चचा चिल्लाए....मैं भी तो कै रिया था पर मेरी कोई सुने तब न....अरे चचा....तुम सबको अपनी ही तो सुनाते रहते हो किसी की सुनते भी हो.....चचा ने धमाका छाप तंबाकू मुंह में डालते हुए कहा....हैं...में तो कै रिया हूं....जनता अब समझदार हो गई है.....सोच समझ के ही वोट देती है....चचा अब लाइन पर थे....कि मैने उन्हे छेड़ डाला.....पर चचा सुना है...तुमको भी मुहल्ले से निकाले जाने की बात चल रही है....लोगों का कहना है कि चचा शरद पवार की तरह खूब पकाते हैं....अबे हमें कौन माई का लाल मुहल्ले से निकाल सकता है....है किसी में इतना दम....हैं...हे चचा जनता में है जब जनता जागती है तो तुम जैसों की हवा बंद हो जाती है.........हैं......जब जनता का दिमाग फिरता है तो उसे सामने कोई भी हो नजर नहीं आता....समझे....हैं.....बैग उठाकर में तो चलता बना.....