Friday, June 10, 2011

कल करे सो आज कर....


जल,जंगल और ज़मीन इन तीन चीज़ों से मिलकर बनी है ये दुनिया। मगर आज ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में कहीं न कहीं इस दुनिया के अस्तित्व पर ही ख़तरा मंडरा रहा है,आधुनिकता की अंधी दौड़ में हर इंसान भागा जा रहा है। आज इंसान अपने फ़ायदे के लिए प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने से भी नहीं चूक रहा है। पूरी दुनिया में हर वक्त न जाने कितने भूकंप,सूनामी,बाढ़ और विपदाऐं आती रहती हैं मगर मनुष्य लालच के फेर में इन सब चीज़ों से मुंह फेर लेता है,भले ही उसे इसका परिणाम भुगतना पड़ जाऐ उसे इसका ग़म नहीं। पिछले दिनों जापान में आई भयानक सूनामी से लाखों लोग मारे गऐ और करोड़ों रुपए की संपति का नुकसान हुआ,लेकिन फ़िर भी मनुष्य प्रकृति के साथ छेड़छाड़ से बाज़ नहीं आ रहा है। आज दुनिया के ज्यादातर इलाकों में घने जंगल मिटते जा रहे हैं इनकी जगह कंक्रीट के जंगलों ने ले ली है,इन जंगलों में आलिशान बंगले,इमारत और माल्स बनाए जा रहे हैं। जंगलों में रहने वाले जानवरों की तादात में भी कमी आ गई है क्योंकि जंगलों के सिकुड़ने की वजह से जानवरों का जीवन संकटग्रस्त हो गया है,फलस्वरुप ज्यादातर जानवर सिर्फ़ किताबों में ही नज़र आने लगे हैं।
       ऐसा नहीं है कि मनुष्य इसके बारे में न जानता हो,हर साल पर्यावरण के नाम पर विश्व की कई सरकारें पर्यावरण और ग्लोबलाइजेशन को लेकर आपस में गहन चर्चा करती हैं,मगर कोई भी ठोस निर्णय नहीं ले पाती हैं। आज धीरे-धीरे पानी की कमी हो रही है इसकी वजह से हिंदुस्तान जैसे विकासशील देश में कई ईलाकों में पानी तक मयस्सर नहीं हो पा रहा है,जिससे न सिर्फ़ वहां रहने वाली आबादी बल्कि जंगली जानवर को पीने का पानी नहीं मिल पा रहा है। कई ईलाकों में नदियां, नाले, पोखर लगभग सूख चुके हैं और उनके फ़िर से भरने की उम्मीद बेहद कम नज़र आ रही है। पर्यावरण संकट की वजह से पूरी दुनिया में वायु भी प्रदुषित हो चुकी है नाईट्रोजन और कई दूसरी विषैली गैसों के वायुमंडल में घुल जाने से कई प्रकार की बिमारियां फैल रहीं हैं जिनमें कैंसर जैसी बिमारियां प्रमुख हैं।लाखों लोग हर साल इन बिमारियों की चपेट में आकर मौत के मुंह में चले जाते हैं।लेकिन कभी भी प्रकृति पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ़ एकजुट नहीं हो पाते हैं,आज हालात ये है कि न तो लोग बाढ़ से अपनी रक्षा कर पाते हैं और न ही सूनामी जैसी आपदा को रोक पाते हैं।
        प्रकृति जब नाराज़ होती है तो उसके आगे किसी का बस नहीं चलता वो फ़िर अपने रास्ते में आई हर रुकावट को दूर करती चली जाती है। उसके कोपभाजन का शिकार बनने के बाद जब हम आंखें खोलकर देखते हैं तो खुद को ठगा सा महसूस करते हैं। कैसे एटम बम,कैसे चांद सितारे,कैसे सेटेलाइट सब के सब लाचार तमाशा देखते रह जाते हैं। तरक्की के नाम पर हम न जाने कितने नदी नालों पर अवैध निर्माण कर डालते हैं मगर हम ये भूल जाते हैं कि ये पानी आख़िर आऐगा कहां से,कहां से होगी साफ़ पानी की पैदाईश। देश के अलग-अलग हिस्सों में धरती फटने की लगातार घट रही घटनाएं हमारे इसी प्रकृति दोहन का कुफल हैं। तेज़ गति से बढ़ रही विकास की रफ्तार ने प्रकृति से लेने के लिए तो हजार तर्क बना लिए, लेकिन उसे लौटाने की व्यवस्था न तो सामाजिक स्तर पर, और न ही सरकारी स्तर पर प्रभावी हो पाई।
       अब भी वक्त है कि प्रकृति के इस कोपभाजन से बचा जाए,जल,जंगल और ज़मीन को अमानत समझकर इसकी देखभाल की जाऐ वरना वे दिन भी दूर नहीं जब मनुष्य इन सब महत्वपूर्ण चीज़ों के लिए तरस जाऐगा। इसके लिए ख़ुद लोगों को आगे आना होगा,पर्यावरण को बचाने के लिए अगर पूरजोर लड़ाई भी लड़ी जाऐ तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। अपने फ़ायदे के लिए हम आने वाली पीढ़ियों को इन सब चीज़ों से जद्दोदहद करते हुए नहीं देखना चाहते,आने वाला कल अगर सुखमय चाहते हैं तो पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान देना ही होगा,तभी प्रकृति के कोपभाजन से बच पाऐंगें अन्यथा नहीं।।.      
        

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