Saturday, July 2, 2011

तस्वीर...


कुछ दिनों क़ब्ल ही मेरा अफ़रोज़ से तलाक हुआ था...वो ज़िंदगी को अपने ढंग से जीना चाहती थी और मैं अपने ढंग से...हालांकि कालेज की दोस्ती कब प्यार में तब्दील हो गई थी ये मुझे मालूम ही नहीं चला था...अफ़रोज़ की खूबसूरती पूरे कालेज में मशहूर थी...मैं उन दिनों रिसर्च के सिलसिले में कालेज में नया-नया आया था...उन्ही दिनों कैंटीन में कॉमन फ्रेंड के ज़रिए मेरी उससे मुलाकात हुई...उसकी आंखों में कुछ अलग सी कशिश थी जो मुझे उसकी और खींच ले गई...रिसर्च पूरी होने के बाद मैने नौकरी ज्वाइन कर ली...अब वक्त था कि मैं अफ़रोज़ से शादी के बारे में खुलकर बात कर सकूं...मैं उस वक्त हैरान रह गया जब मैंने कॉफी केफै़ हाउस में उसे शादी के लिए प्रपोज़ किया और वो फौरन मान गई...उसके वालिद ने भी फौरन हमारी शादी के लिए रज़ामंदी दे दी...पर अफ़सोस हमारी ये शादी ज़्यादा दिनों तक नहीं चल सकी....इसकी क्या वुजूहात रहीं मैं खुद आज तक नहीं समझ पाया...जो लड़की मेरे बिना एक पल भी नहीं रह सकती थी वो मुझसे इतनी ख़फ़ा हो गई मैं खुद भी समझ नहीं पाया....छोटी-छोटी बातों को लेकर वो अक्सर झगड़ती,छोटी सी बात का तिल का ताड़ बना देती...मुझ पर शक करती...रात को देर से आने पर मुझसे हजारों सवालात करती मैं उसकी इन बातों से आजिज़ आ चुका था....बेहतर तो ये था कि मैं कुछ रोज़ के लिए उसे अकेला छोड़ देता ताकि मैं उसे समझने का मौका दे देता....आख़िर ऐसा करके भी कोई नताइज़ हासिल नहीं हुआ...वो और ज़्यादा आग-बबूला हो गई...मैं अम्मी के पास कुछ दिन की छुट्टी लेकर क्या गया उसने हंगामा बरपा कर दिया....मेरी अम्मी खुद इस बात से परेशान हो गई...हद तो ये हो गई कि वो बिना बताए वहीं आ गई और अम्मी पर फ़िकरे कसने शुरु कर दिए....इसी गुस्से में मैने एक जोर का तमाचा उसके मुंह पर जड़ दिया...आखिर एक हद होती है...वो फौरन वहां से पांव पटकती हुई चली गई...अम्मी ने काफ़ी समझाने की कोशिश की पर उसके सर पर तो जैसे भूत सवार था...उसने किसी की नहीं सुनी...
      मेरे घर में कदम रखते ही वो मुझ पर बरस पड़ी...मैं ठान चुका था कि अब पानी सर से उपर हो चुका है....उसने मुझसे तलाक का मुतालबा किया...मेरे पांव के नीचे से ज़मीन खिसक गई....मैं पूरी रात सो नहीं पाया....आख़िर माज़रा क्या है मैं समझ नहीं सका...वो क्यों मुझसे इतनी बेरुख़ी से पेश आती थी..मैं जान नहीं पाया...दोनों की ज़िंदगी में अब कुछ भी बाकी नहीं रह गया था...तलाक लेना ही मुनासिब था...अदालत ने हमारी तलाक पर अपनी मुहर लगा दी....दोनों ने अपना अपना रास्ता अख़्तियार कर लिया...कुछ दिन अम्मी मेरे साथ रही तो अकेले रहने का अहसास नही रहा मग़र अम्मी के जाते ही घर काटने को दौड़ता...नौकरी कर के किसी तरह पूरा दिन को कट जाता मगर रात का क्या करुं....कैसे कटेगी...यही सोचकर दिल घबरा उठता था...
       अचानक मेरा तबादला हो गया....थोड़ी राहत मिली...नई जगह नए लोग...अफ़रोज़ को भूलना इतना आसान नहीं था...रह-रहकर मुझे उसकी बातें याद आती थीं...मैं खुश था कि नए शहर मैं नई ज़िदगी को अपने ढंग से जी सकुंगा...हर इतवार अपनी आपा के पास चला जाता उसके बच्चों के साथ मेरा दिल बहल जाता था....आपा मेरे लिए गुपचुप तरीके से लड़की की खोजबीन कर रही थी...इसका इल्म हो गया था मुझे....आपा देखो अब में शादी नहीं करुंगा...क्यों नहीं करोगे क्या सारी उम्र ऐसे ही....हां आपा...ऐसे ही....क्या सिला मिला मुझे शादी करके...एक पल भी अफ़रोज़ ने नहीं सोचा कि तलाक के बाद मुझ पर क्या गुज़रेगी...देखो...नहीं आपा...मैने कह दिया न...कहकर मैं अपने घर चला आया....
     ये आपके अंडर में काम करेंगी....इनकी पूरी रिपोर्ट हर महीने पेश करेंगे आप...और यकीनन बेहतर काम निकलवा सकेंगें इनसे...जी बेहतर...बैठिए...क्या नाम है तुम्हारा...जी सायमा...देखो अपने काम पर ज़्यादा ध्यान देना...मुझे कोई भी शिकायत नहीं मिलनी चाहिए...ठीक है...जी...जाओ अब काम करो...
     सर..आप मुझे ऐसे क्यों घूर रहे हो...क्या मतलब....सर मैं....बदतमीज़...तुम्हे घूर कर क्या करुंगा मैं...चली जाओ अपने केबिन में...आइंदा इस तरीके की बात की तो खैर नहीं...अरे मैने अचानक तुम्हे देख लिया तो क्या हर्ज़ है...इसे तुम घूरना कहती हो....सारी सर...सारी की बच्ची...न जाने क्यों...सायमा ने मुझे अफ़रोज़ की याद दिला दी...एक बार उसने भी कैंटीन में मुझसे कहा था....तुम मुझे घूर क्यों रहे हो....क्या मेरी नज़र ही ऐसी है...शाम को आइने में गौर से अपना चेहरा और अपनी आंखें देख रहा था मैं....घंटों आइने के आगे खड़ा रहा...फोन की घंटी बजने पर ही मेरी नज़र आईने से हटी....ये क्या हो रहा है मुझे...कहीं मैं...नहीं-नहीं ऐसा नहीं हो सकता...डाक्टर साहब मेरी आंखे चेक करें...लोग मुझे अक्सर कहते हैं कि मैं उन्हे घूरता हूं....ये आपका वहम है...और कुछ नहीं...जब भी कोई आपसे मज़ाक मैं कुछ कहता है तो आप उसे संजीदा तौर से ले लेते हैं....ऐसा न करें...जी..शुक्रिया....
      सर आप फिर से मुझे घुर रहे हैं....मैं हैरान था...मैं तुम्हे क्यों घूरुंगा भला...मुझे तुममे कोई दिलचस्पी है ही नहीं...सर मैं तो मज़ाक कर रही थी...आपसे कल भी मज़ाक किया तो आप बुरा मान गए....नहीं ऐसी कोई बात नहीं....और फ़िर एक दिन...अरे सायमा कहां है....सर पता नहीं...कहां रहती है वो...मालुम नहीं...कहां...पगली तुम्हे इतनी तेज़ बुख़ार है और तुमने बताया तक नहीं...आपा कुछ दिनों के लिए सायमा यहीं रहेगी जब तक इसकी तबियत ठीक नहीं हो जाती....लेकिन इसके खानदानवालों को तो फोन कर दो....आपा वो सहारनपुर में रहते हैं...एक-दो दिन लगेगें आने में...ठीक है....मैं आफ़िस निकलता हूं शाम को आउंगा....कैसी है अब सायमा थोड़ी बेहतर है पहले से सर....
       और फ़िर शाम को...कैसे बिमार हुईं तुम....आपा ने पूछा...इनके घुरने से...मुझे आग लग गई....कहीं ये पागल तो नहीं....तू तो कह रहा था कि अब मुझे लड़कियों में कोई दिलचस्पी नहीं है...तो फ़िर ये क्या है...आपा पागल है ये...जब देखो यही सवाल करती रहती है....और फ़िर बाद में माफ़ी भी मांग लेती है....मुझे नहीं मालुम इसे ये बिमारी कब से है...चलो खैर खाना खा लो....एक भी निवाला मेरे मुंह में नहीं जा रहा था...गुस्से के मारे...अजीब पागल लड़की है..कहीं भी कुछ भी बोल देती है....तभी उसके अहलेखाना भी आ पंहुचे....आपने हमारी बेटी का ख़्याल रखा इसका आपका बहुत-बहुत शुक्रिया....हम लफ़्ज़ों में बयां नहीं कर सकते कि इस अंजान शहर मैं भी कोई किसी का हो सकता है....
       आइंदा अगर तुमने घूरने वाली बात किसी के सामने कही तो समझ लेना..अरे मैं तुम्हे क्यों घुरूंगा भला...तुम शायद नहीं जानती कि मेरा तलाक हो चुका...कितना दर्द सहा है मैने अपनी गुजिश्ता ज़िदगी में...अपनी सारी हक़ीकत शुरु से आख़िर तक उसके सामने बयां कर डाली मैने...कब वक्त बीत गया पता ही न चला...सर मुझे माफ़ कर दो....मैंने आपका दिल दुखाया है....आप इतने नेक इंसान हैं ये मुझे उस दिन मालुम हो गया था जब आप डाक्टर को लेकर मेरे घर आऐ थे....आप का मेरा तो कोई रिश्ता भी नहीं है....और आप और मैं तो ज़्यादा घुले-मिले भी नहीं फ़िर भी आपने बिना ये सब जाने मेरी सेहत का कितना ख़्याल रखा मैं ताउम्र नहीं भूल सकुंगी ये सब....
      आप कल ही ज्वाइन कर लें तो बेहतर होगा....जी सर मैं रात को ही देहली निकल जाउंगा रात को नहीं शाम तक निकल जाओ...ठीक है...सर...ठीक है आपा अपना ख़्याल रखना....आता-जाता रहूंगा....कैसी नौकरी है तुम्हारी हर छह महीने में तबादला हो जाता है....और सायमा का क्या....क्या मतलब सायमा का क्या...अरे मुझे उससे क्या लेना...वो अपनी ज़िदगी में खुश है...और मैं खुश रहने की कोशिश कर रहा हूं....अब फिर से तुम्हे देहली मैं अफ़रोज़ की याद नहीं आऐगी...आपा वो मेरा माज़ी बन गई है....मुझे अपना मुस्तक़बिल देखना है...चलता हूं....एक मिनट ठहरो...वो देखो तुम्हारा मुस्तक़बिल सामने खड़ा है....अचानक नज़र गई तो सामने सायमा खड़ी थी...आपा पागल हो क्या मुझे ये मज़ाक पसंद नहीं....जाते-जाते मेरा मूड ऑफ मत करो....मेरे इतना कहते ही सायमा मुझसे लिपट गई....मुझे छोड़कर मत जाइऐ सर....मैं आपसे बिना मर जाउंगी...जी नहीं पाउंगी आपके बगैर...आप जैसा भी कहेंगें मैं वैसा ही करुंगी...अरे छोड़ो मुझे ये क्या पागलपन है...मैं तुमसे शादी नहीं कर सकता...क्यों...आख़िर क्या कमी है मुझमें..कोई कमी नहीं है पर अब मैं अपनी ज़िदगी अकेले ही जीना चाहता हूं....अकेले...अकेले ज़िदगी जी लोगे तुम...अभी तो जवान हो....बुढ़ापे का क्या...और कब एक पंख से पक्षी उड़ा है आसमान में...कब तक आख़िर कब तक.... किसी एक के जाने से ज़िदगी तो नहीं रुक जाती.... सायमा के चेहरे पर नज़र जाते ही मेरा गुस्सा काफ़ूर हो गया....मैं कितना ग़लत था आपा...कमी मुझमें भी तो होगी जो अफ़रोज़ ने मुझे छोड़ा पर शायद सायमा तुम्हे ताउम्र न छोड़ पाऐ...आपा ने ठंडी आह भरते हुए कहा...क्योंकि इसकी आंखों में सच्ची मुहब्बत नज़र आयी है मुझे....अब जाओ और जल्द ही वापस आना....तुम्हे एक से दो करना है....जी ज़रुर....मैं मुसकुराकर एयरपोर्ट के लिए निकल पड़ा....
            

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