Saturday, January 1, 2011

कुछ लेते क्यों नहीं......


अरे चचा क्या हाल हैं....कुछ लेते क्यों नहीं....मजाक के मूड में मैने चचा को छेड़ डाला...अबे लेना क्या है...ससुराल वालों से पेले ही करजा लिये बैठा हूं कसम उड़ान झल्ले की...तो चुकाते क्यों नहीं...अबे तू कौन होता है मेरा पजामा खींचने वाला....में आपका शुभचिंतक हूं चचा...चिंतक अबे वो क्या...अरे मतलब...आपका चहेता...हैं...चचा खुश हो गऐ...चचा नया साल आ गया है इस साल कौन-कौन सी कसमें खाई हैं तुमने...भईया मे तो इस साल लोगों को सच ही बताया करुंगा....हैं....पर चचा तुम तो हर साल यही कसमें खाते रहते हो...इरादे बांधते हो सोचते हो तोड़ देते हो...कहीं ऐसा न हो जाऐ कहीं वेसा न हो जाऐ...अबे हिंदी में बोल...चचा चिल्ला उठे...और मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरी का इस्तेमाल मुझ पे न किया कर...लेकिन चचा वो तो में...अच्छा ये बताओ..गुजिश्ता साल कैसा रहा...अरे रहना कैसा था बस तुम जिंदा हो...नऐ साल में हमें पकाने के लिऐ...क्या मतलब...मतलब हमारा नालेज बढ़ाने के लिए...हूं...इतना सुनकर चचा उचक कर टूटी खटिया पर बैठे और धम्म से धमाका छाप तंबाकू मुंह में डालते हुऐ बोले..लेकिन लल्ला ये साल घोटालों के लिऐ भी जाना जाऐगा...क्या जमकर घोटाले हुऐ इस साल...जाते-जाते शिवराज पूरी लोगों को चूना लगा गया...हां वो तो है चचा... पर इससे तुम्हे क्या तुम तो बैंक में खाता खुलवाते ही नहीं...अबे ऐसी बात नहीं है कई दफ़ा घर आऐ हैं बैंक वाले... कहने लगे चचा हमारे बैंक में भी डाल दो आठ दस करोड़....पर मैने साफ़ मना कर दिया.. कैया कि भईया हिंया के बैंको का कोई भरोसा नई कब सरकार बदल जाऐ....मे तो स्विस बैंक में ही पैसे डालता हूं कसम उड़ानझल्ले की.....हां चचा सही कै रहे हो जेब में नहीं आने और अम्मा चली भुनाने...बस करो चचा नये साल का पहला दिन है....आज तो कम फैंक लो....चचा खिसिया कर रह गऐ....में बाज़ार निकल पड़ा.....

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