Friday, December 31, 2010

वर्तमान परिदृश्य में मीडिया की भूमिका-इंतिख़ाब आलम


(इंतिख़ाब आलम/ नोयडा )
  इलेक्ट्रानिक मीडिया के विस्तार ने जहां एक और विश्वसनियता कायम की है वहीं कई बार ऐसी भी ख़बरें लोगों तक पहुंचाई हैं जिन्हे असंभव माना गया वो चाहे करगिल युद्ध हो या फिर इराक पर अमेरिका के हमले का प्रसारण आज भी कई ऐसे पत्रकार हैं जो अपनी जान की परवाह न करके ख़बरों को आम जनता तक पंहुचाना अपना फ़र्ज समझते हैं। अगर समूचे विश्व की बात की जाऐ तो विश्व में कई पत्रकार ख़बरों को पंहुचाने के फेर में अपनी जान से भी हाथ धो बैठते हैं।
       आज के दौर में जहां हर तरफ रिश्वत और भष्टाचार का माहौल है वहीं अगर कहें कि मीडिया इससे अछूता है तो बेईमानी होगी, लोकतंत्र का चौथा खंभा और सत्ता पलटने में माहिर मीडिया के वर्तमान परिदृश्य पर अगर गौर करें तो पाएंगें कि हर क्षेत्र की तरह इसमें भी प्रतियोगिता का दौर रहा है। इस प्रतियोगिता की वजह से मीडिया आज बेहद मजबूत स्थिति में खड़ा है।हर सिक्के के दो पहलू होते हैं अगर मीडिया कभी-कभी नरम गरम होता है तो इसमें उसकी कोई गलती नहीं है। आज भले ही इंटरनेट का जमाना हो लेकिन फिर भी लोग सुबह-सुबह चाय के साथ अख़बार पढ़ना नहीं भूलते दिन-ब-दिन अख़बार की संख्या में बढ़ोत्तरी होना इस बात का सबूत है कि अभी भी लोगों का मीडिया पर विश्वास कायम है।
      कई मीडिया हाउसों ने सरकार और उसके नुमाइंदों से संबंध बनाने के चक्कर में अपनी प्रतिष्ठा को दांव पर लगा दिया जिसका असर अन्य मीडिया हाउसों पर भी पड़ना स्वभाविक था। आरोप लगाया जाने लगा कि ज्यादातर मीडिया हाउस बडे़ घरानों को फायदा पंहुचाते हैं। हाल ही में नीरा राडिया और उसके संपर्क में आए कुछ बड़े पत्रकारों ने सरकार पर स्वहित के लिए दबाव बनाया जिससे मीडिया की किरकिरी होने लाजिमी था। शक की उंगली हर उस पत्रकार पर उठ रही है जिसके संबंध उच्च बिजनेस घरानों और नेताओं से हैं।
      पेड न्यूज़ को लेकर भी कई बार लोगों ने मीडिया हाउसों पर आरोप लगाए हैं कि ये लोग पैसा लेकर किसी की भी ख़बर दिखा और छाप सकते हैं। इससे भी पत्रकारिता की गरिमा प्रभावित हुई लेकिन किसी ने भी खुलकर इसका विरोध नहीं किया क्योंकि हमाम में सब नंगें थे। प्रतिष्ठा और पद को लेकर अपने संबंध बड़े लोगों से बनाना आम हो गया है। आज हर पत्रकार चाहता है कि उसके संबंध हर बड़े से बड़े नेता से हों ताकि वक्त आने पर वो इसका फायदा उठा सके।
      मीडिया पर आरोप लग रहा है कि वो अब मिशन नहीं रही बल्कि व्यवसाय में तब्दील हो गई है। उसका लक्ष्य सिर्फ़ पैसा और रसूख़ कमाना है आम लोगों से उसे कोई सरोकार नहीं है। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है?...अगर ऐसा होता तो शायद बड़े-बड़े घोटाले और वे सब जिनका मीडिया ने पर्दाफाश कर लोगों को इंसाफ़ दिलाने की कोशिश की वे सब न होता। संभवतया मीडिया आज भले ही पारदर्शी भुमिका में न हो लेकिन अपनी जिम्मेदारी से मुंह तो नहीं मोड़ रहा है।  
        हालिया नीरा राडिया केस में मीडिया के कुछ धुरंधरों का नाम सामने आया,लगा कि शायद दाल में कुछ काला जरुर है। लेकिन गहराई में अगर उतरा जाए तो बात आईने की तरह साफ हो जाती है कि आख़िर क्यों बड़े पत्रकार नेताओं या बड़े लोगों से संपर्क बनाने में दिलचस्पी दिखाते हैं। एक बात और कि अगर वे ऐसा न करें तो फिर उन्हे बड़ा पत्रकार कहेगा कौन?
            समाज में मीडिया का रसूख़ रहा है और रहेगा इसमें कोई नई बात नही है लेकिन क्या मीडिया की जिम्मेदारी नहीं बनती कि वो खुद को भी बदले। अपने पेशे से इंसाफ़ करे लोगों को सही हक़ीक़त से रुबरु कराऐ। उन सब चीजों को नज़रअंदाज़ करे जो उसके लिए मुनासिब नहीं है। अगर ऐसा हो तो मीडिया की सही तस्वीर लोगों के सामने आयेगी और मीडिया पर न केवल लोगों का विश्वास कायम होगा बल्कि उसे इज्जत भी मिलेगी।
                        (लेखक  नोयडा स्थित चैनल वन के हेड ऑफिस में कार्यरत हैं )

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