Wednesday, February 16, 2011

सर्कस…..


चचा बतूलै लुंगी उंची किए अपने दो पालतू चमचों के साथ टूटी खटिया पर ऐसे बैठे थे मानो खानदानी नवाब हों...में अपने आफिस के लिए निकल ही रहा था कि एक चम्मच ने मेरी तरफ़ इशारा कर दिया....चचा की आंखों में मुझे देखते ही चमक आ गई....और तेजी की आवाज़ में उचक कर बोले अबे ओ डेमोक्रेसी के चौथे खंभे....कहां कू रिया है...जहन्नुम में... साथ चलोगे....चचा खिसिया गए...चेलों को किनारे करते हुए बोले देखो मुझसे राजा और बावला आई मीन बलवा वाली स्टाइल में बात मत करियो...में बहुत नरमदिल इंसान हूं....मुझे हसीं आ गई...पर चचा राजा से तुम्हे क्या लेना देना अरे कैसे पतरकार हो तुम....राजा और बलवा ने कहा है  हमें क्या सर्कस बना रखा है...3-3 दिन की रिमांड पर लेने से अच्छा है कि एक साथ ही अंदर रखो खाना तो घर से ही आयेगा और कोई क्या उखाड़ लेगा कसम सुखराम की....बिल्कुल दुरुस्त फ़रमाया चचा आपने...एक दम सौलह आने सच...चचा के चेहरे का रंग बदल गया....चेलों की तरफ़ देखकर बोले.....हैं....चेले हंसने लगे....पर चचा देखना राजा और बलवा का कुछ भी होने वाला नहीं...ऐसे कितने आए और गए...सच कहूं चचा अब तुम भी कोई बड़ा सा घोटाला कर डालो...ताकि तुम्हे भी सीबीआई सर्कस बना दे.....चचा का मुंह देखने लायक था...मैं किनारे से खिसक लिया चेले एक बार फ़िर हंस रहे थे.....

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