Wednesday, February 23, 2011

तरक्कीपसंद बनें मुसलमान..........


मौलाना गुलाम मौहम्मद वस्तानवी के दारुल-उलूम देवबंद के ओहदे पर बने रहने की बात जानकर मेरे दिल को बेहद खुशी हुई.दारुल-उलूम देवबंद से न जाने कितने हाफ़िज-ए-क़ुरआन और मुफ़्ती निकले हैं....दुनियाभर में दारुल-उलूम की प्रतिष्ठा काहिरा के बाद दूसरे नंबर पर है...ज़ाहिर सी बात है कि इसकी बुनियाद इतनी मजबूत है कि कोई भी इसकी बराबरी करने के लिए सौ बार सोचेगा....यूपी के सहारनपुर के छोटे से कस्बे देवबंद में स्थित इस इदारे की अपनी एक अलग ही पहचान है...देवबंद की पहचान ही है दारुल-उलूम....रोजाना यहां हजारों लोग आते है...कितनी ही ज़माते निकलती हैं यहां से....अल्लाहताला के रहमोकरम से कभी भी यहां कोई बात सुनने को नहीं मिली लेकिन बिजनौर के रहने वाले मरहूम मोहतमीम मुर्गुबुर्रहमान साहब के इंतकाल फ़रमा जाने के बाद गुजरात के रहने वाले और तरक्की पसंद मौलाना गुलाम मौहम्मद वस्तानवी को इस बेहद प्रतिष्ठत इदारे की बागडोर सौंपी गई।
      दारुल-उलूम देवबंद के मोहतमीम का ओहदा संभालते ही उनके मुख़ालफ़ियों ने उनके खिलाफ़ साजिश रचनी शुरु कर दी....उनके गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर दिए गए एक बयान को हंगामाखे़ज बना दिया....और आज की मीडिया ने बिना सोचे समझे उस बयान को इतना हाइप कर दिया कि मौलाना ने चुप्पी साधना ही बेहतर समझा....उनकी इस चुप्पी को उनकी कमजोरी समझा गया...लेकिन आज मज़लिसे-शूरा की मीटिंग में दूध का दूध और पानी का पानी हो गया....एक बार फ़िर से वस्तानवी को दारुल-उलूम की बागडोर सौंप दी गई....
     क्या वस्तानवी जैसे तरक्कीपसंद लोगों की मुख़ालफ़त करना ज़ायज है...अगर वो मुल्क के पिछड़े मुसलमानों को आगे बढ़ने की राह दिखाते हैं तो वे क्या बुरा करते हैं...आजादी के 65 साल बाद भी देश का आम मुसलमान तरक्की से महरुम है तो क्या ऐसे में वस्तानवी जैसे लोगों की हिमायत नहीं की जानी चाहिए....अगर वो मुसलमानों को भी तालीमयाफ़्ता बनाना चाहते हैं तो इसमें बुरा क्या है....चंद सियासतदां बिल्कुल भी नहीं चाहते कि मुसलमान भी पढ़लिखकर आगे बढ़ जाएं क्योंकि अगर ऐसा हो गया तो फ़िर उनकी सियासत तो चौपट हो जाएगी।
       अब वक्त आ गया है कि हमें आपस में मिलकर इन ताक़तों से जोरशोर से लड़ना चाहिए अपनी क़ौम को आगे बढ़ाने की कोशिश मे जुट जाना चाहिए क्योंकि वो सुबह कभी तो आएगी....

  

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