Friday, April 8, 2011

बोझ....


भईया.....तुम हर वक्त फालतू की बकवास मत किया करो....क्या मैं आफिस नहीं जाता....क्या मैं अपने बच्चे नहीं पाल रहा हूं....किया मैं टेशंन में नहीं जी रहा हूं....फ़िर क्यों आप मुझे ये सब सुनाते रहते हैं....देखो भईया मां को मैने तीन बार अस्पताल में दिखा दिया है....आपसे छोटा हूं इसका मतलब ये नहीं कि आप जो चाहें कहें...अब में ज्यादा नहीं झेल सकता....आप मां को गांव भेज दो या फिर उन्हे अपने पास रख लो जैसा आपकी मरजी....मैं थक चुका हूं.....आप को क्या पड़ी थी मां को यहां बुलाने की अच्छी खासी मां गांव में रह रही थी खेती-बाड़ी की भी देखभाल हो जाया करती थी अब वो भी चौपट हो गई....फोन पर जोर-जोर से अपने बड़े भाई बिरजू से बतिया रहा था मोहन.....दोनों बड़े शहर में अच्छी नौकरी पर थे....गांव में रहने वाली मां के घुटनों में हुई तकलीफ़ के चलते बिरजू मां को गांव से शहर ले आया....कुछ दिन तो ठीक रहा लेकिन धीरे-धीरे मां दोनों भाइयों पर बोझ लगने लगी....
     शहर में हाईसोसाइटी की ढोंगी ज़िंदगी जीने वालों में से एक थे मोहन और बिरजू....पढ़ाई के बाद दोनों की अच्छी नौकरी लग गई....शहरी और अपने आप को मार्डन कहलाने वाली लड़कियों से ही दोनों ने प्यार के नाम पर शादी की....हालांकि मां कहते-कहते थक गई कि दोनों में से एक तो गांव में शादी कर ले ताकि उनके पिताजी का मान रह सके पर दोनों ने अपनी मां की एक न सुनी....और शहर में ही शादी रचा डाली.....दोनों भाई जब-तक पढ़ाई में लगे रहे तो आपस में बड़े ही प्यार से रहते थे....शादी के बाद दोनों की अलग-अलग नौकरी लग जाने से दोनों जुदा हो गए.....
     लेकिन अचानक मां को तकलीफ़ पैदा हो जाने से दोनों के रिश्तों में कड़वाहट आ गई....मां शहर में बोझ बन गई दोनों पर....दोनों आए दिन एक दूसरे पर कटाक्ष करते रहते....और तू संभाल-तू संभाल का खेल खेलते रहते....दोनों की ज़िंदगी इस टेंशन में कट रही थी कि मां को गांव से बुलाया ही क्यों....मोहन का कहना था कि जब मां गांव से शहर आने के लिए राजी नहीं थी तो मां को शहर ले के क्यों आए...और बिरजू मोहन पर इल्ज़ाम लगाता कि मां कि देखभाल का जिम्मा क्या उसने अकेले ले लिया है....
     देख मोहन मेरे भाई....में तेरा दुश्मन नहीं हूं...यार मैं अच्छी तरह जानता हूं कि शहर की कैसी लाइफ़ है....भईया मैं तो आपसे पहले ही कह रहा था मां को गांव के डाक्टर के अलावा किसी की दवाई सूट ही नहीं होती आपने फालतू में ही....अच्छा भला रहती थी मैं गांव में साथ-साथ खेती का अनाज भी आ जाया करता था....कम-से-कम अनाज तो नहीं खरीदना पड़ता था...मां खुद ही बोरियां भिजवा दिया करती थी....यहां तक कि किराया भी मां ही दे दिया करती थी पर आपने सब चौपट कर दिया....अरे अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा....यार देख मां को गांव से मैं लाया था....तू कल मां को गांव छोड़ आ....तेरा जो भी खर्चा लगेगा वो में दो दूंगा....तेरी भाभी भी कह रही थी कि मां कि वजह से दोनों भाईयों में खटास पैदा हो गई है....इसे जल्दी से दूर करो....
     चलो मां जल्दी करो.....बस का टाइम हो गया है....बिटवा हम तो पहले ही कहत रहिन के हमका शहर अच्छा नाहि लगत....मां समझते हुए भी अन्जान बनी रही....ठीक है मां अब....तुम गांव में ही रहो....खेती-बाड़ी तुम ही संभाल सकती हो..हमारे बसका नहीं है ये सब....
     अच्छा मां चलता हूं.....अपना ध्यान रखना....कोई परेशानी हो तो फोन कर लेना.....मां....इस सीजन में होने वाले धान की कुछ बोरियां भिजवा देना...तुम तो जानती हो शहर में चावल कितना मंहगा मिलता है....ठीक है....धीमी आवाज़ में सर हिलाकर रह गई मां....
     कुछ कह तो नहीं रही थी मां.....नहीं कुछ भी नहीं....अच्छा वो धान का क्या हुआ....अब तो अगली फसल पर ही भिजवाएगी मां....ठीक है यार कौन सी जल्दी पड़ी है.....चल चाय पी....

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