Monday, April 11, 2011

दलाल...


कैसी बात कर रहे हैं सर....मुझपे यकीन नहीं है....क्या... एकदम हो जाएगा ...पक्का हो जाएगा सर.. बस आप टेंशन लेना छोड़ दिजिए....नोटों की गड्डियां अपने बैग में समेटते और कुटिल मुस्कुराहट चेहरे पर लाते....नेता चमनलाल को पूरी डिलिंग पानी दे रहा था...संतोष....अच्छा सर निकलते हैं....आफिस पंहुचकर फोन करते हैं....एडीटर साब काम पक्का होना चाहिए नहीं तो चमनू नेता को तो आप जानते ही हैं....साला इतना हरामी है कि सड़क पर कुर्ता फाड़ने में भी देर नहीं लगाएगा....बरसों से जानता हूं हरामी है नं वन का.....हमारा क्या.... सर ये लिजिए...चाय मंगवा लिजिए वर्मा जी अब....बिल्कुल...क्यों नहीं....देखो संतोष किसी को भी कानोंकान ख़बर नहीं होनी चाहिए कि हम चमनू के लिए काम करते हैं....अगर किसी को पता चल गया तो...अग्रवाल लात मार के निकाल बाहर करेगा....करने दिजिए न सर....साला इतना कमा चुके हैं कि....चुप करो यार तुम...दीवारों के भी कान होते हैं.....ठीक है सर में निकलता हूं.....
     पत्रकार के नाम पर दलाल था संतोष....कोई भी कैसा भी काम हो चुटकी बजाते ही निकलवा देता....कौन सा नेता औऱ बड़ा अफ़सर नहीं जानता उसे....महज चंद सालों में ही....वो करोड़पतियों में शामिल हो गया....उसने पत्रकारिता में अपनी दबंगई दिखा रखी थी...नेता चमनलाल अपने इलाके से अपने नालायक और गुंडागर्दी के लिए मशहूर बेटे को उपचुनाव में लड़वा रहा था,इसके लिए उसने अपने बेटे की छवि बदलने का ठेका दिया था संतोष को….अपनी रिपोर्टिंग से माहौल को चमनू के पक्ष में करवा दिया संतोष ने....कह रहे था न सर जीत आपकी ही होगी....मान गए संतोष...दम है वाकई तुझमें...खुशी के मारे फूल कर गप्पा हो रहा था....चमनू
     ये क्या किया तुमने संतोष....सारी ताकत झौंक दी उस गुंडे रजनू के लिए...आख़िरकार जीतवा ही दिया तुमने उसे.....रहने दो यार...मुझे ज्यादा डीलिंग-पानी मत दो...अच्छी तरह जानता हूं मैं....क्या-क्या नहीं किया था मैने ईमानदारी के लिए पर क्या मिला मुझे...ताने...फटकार...ज़िल्लत..और तुम भी तो मेरे संघर्ष के दिनों के साथी हो...कौन जानता है तुम्हे आज....चार अख़बार तो छोड़ो मैग़जीन के मालिक तक ने तुम्हे नौकरी नहीं दी....पीटते रहो ढोल ईमानदारी का....देखो अगर आज पत्रकारिता करनी है तो ये सब तो करना ही पड़ेगा....मिशन नहीं है ये बिजनेस है....बिजनेस...समझे....लो पियो....मैं नहीं पीता...तुम अच्छी तरह जानते हो फिर भी....ख़ैर....ये बताओ...अख़बार निकलवा दूं एक तुम्हारा...नहीं कोई ज़रुरत नहीं है...बस यही तो एक कमी है तुझमें....कभी भी किसी का सहारा नहीं लेगा....अबे यूं ही घुट-घुट के मर जाएगा एक दिन.....मेरी एक बात मान ये सब छोड़ दे मेरे भाई....मेहनत कर अपनी ज़िंदगी संवार...देख आज आख़िरी बार कह रहा हूं...इसके बाद शायद ही मैं तुझे मिल पाउं......बस-बस रहने दे...ठीक है...मैं निकलता हूं...जा-जा... जी अपनी ईमानदारी वाली ज़िंदगी जी....अपने जिगरी दोस्त नितिन को शराब के नशे में जोर-जोर से चिल्लाते हुए...कह रहा था संतोष....लेकिन कहीं-न-कहीं खुद उसे महसूस हो रहा था कि ये सब ग़लत है जो वो कर रहा है....आखिर क्या सोचकर आया था वो पत्रकारिता में...यही न कि वो लोगों की मदद करेगा....हर शख़्स की मदद करेगा जो.. उससे जो बन पड़ेगा सब करेगा मग़र...
          अचानक सौम्या ने आवाज़ दी....कितनी पी ली रात को...आफ़िस नहीं जाना है क्या....हड़बड़ाकर उठ बैठा संतोष....ये क्या कर रहे हो संतोष कहीं तुम पागल तो नहीं हो गए....अब तक पागल था मैं वर्मा जी....पर अब नहीं मैं न सिर्फ़ यहां से रिजाइन दे रहा हूं बल्कि इस पेशे को ही छोड़ रहा हूं....कहां जाओगे....गांव...क्या रखा है गांव में... बहुत कुछ....वो सब जो यहां हासिल नहीं किया जा सकता...एक बार ओर सोच लो संतोष.....वर्माजी....संतोष ने सोच लिया है....इतना कि शायद ताउम्र न सोच सके.....चलता हूं.....
         

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