Thursday, March 3, 2011

कौन करे आग़ाज़....


घोटालों पे घोटाले.... सरकार मस्त...जनता पस्त... बजट में कोई भी ख़ास बदलाव नहीं...फ़िर पकड़ाया झुनझुना....पेट्रोल मंहगा गाड़ी सस्ती....गरीबी हटाओ नहीं जनाब गरीबों को ही हटा दो...न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी....ऐसी ख़बरें आए दिन सुनते-सुनते हमारे कान पक गए....लेकिन आम जनता को तो आदत पड़ गई है सबकुछ झेलने की... मंहगाई झेल सकती है...गरीबी झेल सकती है...बेरोजगारी... सबकुछ... जी हां सबकुछ....तो फ़िर क्या किया जाए। कुछ नहीं.. कोसा जाए चाय की दुकान पर चाय का गिलास पकड़ कर सरकार पर कटाक्ष किया जाए...एक दुसरे से भिड़ा जाए...तू कांग्रेसी...तू बीजेपी...तू वाम दल वाला....तेरी पार्टी ऐसी...तेरी वैसी....चाय ख़त्म किस्सा ख़त्म...जब तक चाय चली तब तक चर्चा चली...चल मेरे भाई तू अपनी गली मैं अपनी गली...फ़िर मिलेंगें....ख़ुदा हाफ़िज़
     आजादी के 65 साल बाद भी हमने अपने हक को पहचानना नहीं सीखा,क्यों पहचाने हमें क्या पड़ी है जब हर काम रिश्वत से हो जाए तो फ़िर क्यों फालतू की टेंशन ली जाए... दो रिश्वत निकालो काम...पहले मेरा काम हो जाए बाकी भाड़ में जाएं ये मानसिकता बन चुकी है हमारी। कभी भी हम ये नहीं सोचते कि इसका हमारी ज़िंदगी पर क्या असर पड़ने वाला है। एक दिन ऐसा भी आता है जब हम ख़ुद अपने ही जाल में फंस जाते हैं हमारा काम बिगड़ जाता है तो लगते हैं कोसने सरकार और उसके नुमाइंदों को। क्यों भई क्यों न लें रिश्वत जब तुमने ही इसकी लत उन्हे लगाई अब इसमें बुरा क्या है। अब अपने पर बन आई तो लगे कोसने।  
     राजा एक लाख नब्बे हज़ार करोड़ रुपए का घोटाला करके भी चैन की बंसी बजा रहे हैं। लेकिन एक ग़रीब एक रोटी को चुरा ले तो उसका कोई पुरसाने हाल नहीं वो चोर है। लेकिन राजा क्या है....सुखराम क्या है...कोड़ा क्या है....ये चोर नहीं महाचोर है...जो आम लोगों के खुन-पसीने से कमाई हुई दौलत को अपना समझ कर लूटने में लगे हुए हैं। कितनी बेशर्मी से ये लोग जेल में रहकर अपनी कारगुज़ारियों पर पर्दा डाल देते हैं वो किसी से भी छिपा नहीं है। इन लोगों ने मुल्क को इतना लूट लिया है कि अगर ये पैसा इनके खाते में न होता तो शायद सोने की चिड़िया कहलाने वाला हिंदुस्तान वास्तव में सोने की चिड़िया हो गया होता, लेकिन घोटालों,भष्ट्राचार और रिश्वत की आदत के चलते हिंदुस्तान बदनाम है। करे कोई भरे कोई,इन लोगों के किए का ख़ामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ता है। कभी प्याज़ मंहगी होती है तो कभी टमाटर कभी तेल मंहगा तो कभी रोजाना इस्तेमाल की चीज़ें।    
     आज हमारे मुल्क में करोड़ों लोगों को दो जून की रोटी तक मयस्सर नहीं और सरकारी दावे बढ़चढ़ कर सुनने को मिल जाएंगें। नरेगा से लेकर अंत्योदय योजना सब की सब भष्ट्राचार की चादर में लिपटी हुईं। क्या किसी को भी भूख से बिलबिलाते ग़रीब का पेट नहीं दिखाई देता ? वोट मांगने के लिए ग़रीब सबसे पहले माईबाप, लेकिन चुनाव जीतते ही हम आपके हैं कौन ? लाखों लोग सड़कों पर अपनी ज़िंदगी जीने को मजबूर हैं और नेता और अधिकारियों के कई जगह बंगले होने के बावजुद भी उनका पेट खाली है। इतनी बुरी नज़र हो गई है कि वक्त आए तो नदी नालों पर भी अपना हक जमा लें। खुलेआम दोनों हाथों से लूट सको तो लूट का धंधा बना दिया गया है।
     दरअसल इसमें हम लोग भी काफ़ी हद तक कसूरवार है,एक तो हम नेता ही ऐसे चुनते हैं। दूसरा ये कि हमें किसी भी बात का सब्र नहीं, हमें दुसरे की परेशानी अब अपनी परेशानी नहीं लगती। एक दूसरे से आगे निकलने की होड़,स्टेट सिंबल तनाव,जलन कुछ ऐसी चीज़ें हैं जो हमें धरातल की तरफ़ ले जा रही हैं। हमें न तो अपने अधिकारों का पता है, न ही अपने वजूद का,बस भागे जा रहें हैं आधुनिकता की चमक-दमक में,हमारे मां-बाप हमारी राह देख रहे हैं और हम अपना वक्त माल्स और सिनेमा में बिता रहे हैं। कुल मिलाकर कहें तो ख़ुदगर्ज़ हो गए हैं हम। हमें बस अपने से ही मतलब है दुसरा मरता रहे हमें क्या? हम तो भई ऐसे हैं ऐसे रहेंगें।
    आग़ाज़ हमें ही करना होगा हमें बुलंद करनी होगी अपनी आवाज़,मिस्र के लोगों ने एकजुट होकर हुस्नी मुबारक को गद्दी छोड़ने को मजबूर कर दिया तो फ़िर हमारे देश के निकम्मे नेता किस खेत की मूली हैं। एकजुट होना ही होगा अपने हक के ख़िलाफ़ आवाज़ उठानी ही होगी। पहले खुद को बदलना होगा फ़िर बदलाव की आंधी से शायद कोई न बच पाए। एक नई आजादी की ज़रुरत है हमें आज....कोशिश तो कर ही सकते हैं....आग़ाज़ तो करें....

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