तेरी तस्वीर मुक्ममल थी मेरे सीने में
मेरे ज़ख्मों पे अब भी कोई हंसता है।
उम्र यूं हीं गुज़ार दी उसने
कभी हंसता तो कभी रोता है।
ग़मों की आंधियों में वो बह न जाए
यही सोचके मेरा दम निकलता है।
वो बात करता है तो,फूल जैसे झड़ते हैं
तेरे एहसास ने ही उसको ज़िंदा रखा है।
कोई जो आए इस पहलू में ‘आलम’
मेरे हमदम ने उसे संभाल रखा है।