Monday, March 14, 2011

तस्वीर....


नज़र-नज़र में फ़र्क होता है...
यूं हीं नहीं हर कोई बदगुमां होता है।
तुझे एहसास हो तो मिल शायद...
देखना कौन क्या पाता और क्या खोता है।
तेरी तस्वीर मुक्ममल थी मेरे सीने में
मेरे ज़ख्मों पे अब भी कोई हंसता है।

उम्र यूं हीं गुज़ार दी उसने
कभी हंसता तो कभी रोता है।

ग़मों की आंधियों में वो बह न जाए
यही सोचके मेरा दम निकलता है।

वो बात करता है तो,फूल जैसे झड़ते हैं
तेरे एहसास ने ही उसको ज़िंदा रखा है।

कोई जो आए इस पहलू में आलम
मेरे हमदम ने उसे संभाल रखा है।