Sunday, March 13, 2011

तड़प...


यक़ीनन तड़प तेरे सीने में भी होगी
मुझसे बिछड़ जाने की....
यूं ही तो कोई जाम नहीं छलकता
य़ूं ही तो कोई पैमाना नहीं झलकता।
गुजिश्ता कुछ दिनों से तुम सो नहीं पायीं
मेरी आवारगी और अपनी तन्हाई में।
सोचते-सोचते रात कब काट लेती हो
तुम्हे इसका इल्म हो न हो पर मुझे तो है।
मुझे मालुम है तुम्हारी सारी बेचारगियां
आख़िर तुम किस-किस से लड़ती।
और वो कमबख़्त वक्त ही ऐसा था जब
तुमने और हमने अपनाई अलग-अलग राहें।
ख़ैर,कोई बात नहीं खुशी तो है इस बात की है
कि तुम ज़िंदा हो यक़ीनन मेरे दिल में हमेशा के लिए....